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बुधवार, 5 अगस्त 2015

साहित्यिक विज्ञापन


आवश्यकता है एक अदद खास मित्र की जो सच में ख़ास हो यानी ख़ास में भी ख़ास हो यानि हमारे लिए वो ख़ास हो और उसके लिए हम .......बस वो और हम .......जिसमे निम्नांकित गुण होने आवश्यक हैं इनके बिना योग्यता प्रमाणित नहीं होगी :

सच्चे मित्र की दुर्लभ परिभाषा का बाकायदा नुमाइंदा हो 

जिसको अर्थ समझाए न जाएँ फिर भी समझ जाए यानि बिना कहे दिल दिमाग को पढ़ जाए 

सबसे जरूरी चीज वो उधर की बात तो इधर कह दे मगर इधर की उधर न कहे 

हमारी भृकुटी के हिलने पर हिलने लगे जिसका आसन ऐसा हो उसका आचरण 

हमारे गलत पर भी सही की मोहर लगा दे और फिर सारी दुनिया से मनवा दे 

हमारे लिए एक पूरा शहर बसा दे जहाँ हमारी चाहतों को मुकाम मिलता रहे यानि कि यानि कि यानि कि हमें महिमामंडित करता रहे , ऐसा वातावरण बना दे , ऐसी हमारी ख्याति में चार चाँद लगा दे कि सबकी नज़रों के चाँद हम ही बन जाएँ 

और सबसे अहम बात वो हमें पढ़े , सराहे , हम से इतर कोई दूजा कवि न उसे नज़र आये 

तब जाकर उसकी योग्यता प्रमाणित होगी और उसे ये सच्चे मित्र का दुर्लभ पद प्राप्त होगा और फिर हम उसे अपना महत्त्वपूर्ण कार्य सौंपेंगे जिसके लिए ये विज्ञापन दिया है :

.........और क्या यूँ ही थोड़े विज्ञापन दिया है , इतनी मगजमारी की है , जानते हो क्यों दिया विज्ञापन ? सिर्फ इसलिए ताकि कोई कह न सके ऊंचाइयों पर पहुँचने पर सभी अकेले हो जाते हैं और सच बात है मुझे किसी पर विश्वास नहीं , जाने कौन किस संगठन से जुड़ा हो और मेरी बात लीक कर दे , आजकल तो संगठनों का बोलबाला है , उन्ही की छाती पर पैर रख बनाए जाते हैं नौसिखिये भी महाकवि ........अरे भाई , रोज देखते हैं यही खेल . वैसे भी आजकल सच्चे मित्र कोई टैग लगाकर तो घूमा नहीं करते और हमें चाहिए एक सच में हमारी तरह सच्चा मित्र जो लट्टू की तरह घूम सके . 

आखिर हमारे भविष्य का सवाल है क्योंकि यहाँ तो मुखौटे लगाए घूम रहे हैं सब ..........यदि किसी को बता दिया कि फलानी जगह से कविता की किताब छपवानी है तो वो ही सबसे पहले जाकर वहां भांची मारेगा और सामने मुंह मियां मिट्ठू बना रहेगा ....... तो क्यों अँधा न्यौतें और दो बुलाएं ......... और सबसे मुश्किल बात होती है एक कवि के लिए खुद अपनी कवितायें सेलेक्ट करना , उसे तो हर कविता में मुक्तिबोध दिखाई देता है तो कहीं निराला तो कहीं महादेवी ऐसे में जरूरी है निष्पक्षता  की , तो उसके लिए जरूरी है कुछ साहसिक कदम उठायें तो साहेबान जिस में ये गुण होगा उसे ही हम अपनी कवितायें दिखायेंगे , पढवायेंगे और उनसे कहेंगे भैये छाँटो इनमे से वो कवितायें जो मुझे साहित्य के आकाश का सबसे चमकता सितारा बना दे तभी तो बन पाएगी एक मुकम्मल पाण्डुलिपि .

बस फिलहाल इतनी कवायद तो पाण्डुलिपि के लिए है ...... आगे काम के हिसाब से तय किया जाएगा कि आपको और मौका दिया जाये या नहीं .

तो जो उम्मीदवार इन योग्यताओं पर खरे उतरने की हिम्मत करते हों वो ही आवेदन करें ...... विचारार्थ का कोई प्रावधान नहीं है .........जो है बस फुल एंड फाइनल है ...........टाइम नहीं है मेरे पास !!!

3 टिप्‍पणियां:

yashoda Agrawal ने कहा…

मैं हूँ न...
एक रोबोट..
बस बैटरी चार्ज करवानी पड़गी रोज
सादर

Navkant Thakur ने कहा…

हा हा हा... बढ़िया है... पर अपेक्षाओं का आकाश तो कर्तव्यों की सीढ़ी से ही हासिल हो सकता है.. एकतरफ़ा अपेक्षाएं तो सिर्फ़ कोई भक्त ही पूरा कर सकता है... मित्रता की तुला को तो दोनों पलड़ो के संतुलन की दरकार होती है...

Satish Saxena ने कहा…

भरे पड़े हैं यहाँ ऐसे , मगर खुल के कौन आता है ये देखने की बात है ! शुभकामनायें