नहीं तैरती हैं मेरे पानी में जज़्बात की मछलियाँ
जो ख्यालों के उलटने पुलटने से हो जाएँ घायल
नहीं है मेरा पानी नीलवर्णी आकाश सा स्वच्छ
जो तुम कर सको अपने अक्स से धूमिल
नहीं हूँ मैं एक गूंजता हुआ अनहद नाद
जिसकी गुंजार से हो उठो पुलकित आनंदित
हर क्रिया प्रतिक्रिया से परे हूँ
तभी तो
हर प्रतिकार के बाद भी अस्तित्व में हूँ
गर क्या हुआ
जो मैं एक स्त्री हूँ ............
जो ख्यालों के उलटने पुलटने से हो जाएँ घायल
नहीं है मेरा पानी नीलवर्णी आकाश सा स्वच्छ
जो तुम कर सको अपने अक्स से धूमिल
नहीं हूँ मैं एक गूंजता हुआ अनहद नाद
जिसकी गुंजार से हो उठो पुलकित आनंदित
हर क्रिया प्रतिक्रिया से परे हूँ
तभी तो
हर प्रतिकार के बाद भी अस्तित्व में हूँ
गर क्या हुआ
जो मैं एक स्त्री हूँ ............
3 टिप्पणियां:
Ati Sunder
Sunder
बढ़िया है.
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