छाती पीट पीट स्यापा करने के इस दौर में
आओ , छाती पीट करें स्यापा हम भी
यूं के नहीं हैं शामिल हम किसी
मज़हब, धर्म या संगठन में
न ही किसी गुट या दल में
और जानते हैं ये सत्य
फिर राजनीति हो या समाज
देश हो या साहित्य
सिवाय स्यापाइयों के
और किसी को नहीं मिला करती तवज्जो की सहूलियतें
शायद हुक्मरानों के कानों में
पड़ जाएँ कर्णभेदी शहनाइयां
और बच जाए एक मसीहा क़त्ल होने से
वर्ना अपने समय की विडम्बनाओं को दोहते दोहते
रीत जायेंगी जाने कितनी पीढियां
नपुंसक से ओढ़े आवरण से खुद को मुक्त करने का समय है ये
कि या तो बजाओ
ढोल ताशे और नगाड़े
कि जिंदा है अभी एक सलीब
यहाँ दुधारी तलवार की तेजी से भी तेज
कट जाया करते हैं मस्तक धड से
नहीं तो
स्यापा करने तक ही सीमित रहेगी तुम्हारी नपुंसकता
यहाँ अपने अपने अर्थ
और अपने अपने स्यापे हैं
जुगाड़ के पेंचों पर जहाँ
खड़ी की जाती है प्रसिद्धि की इमारत
वहाँ दोष ढूँढने वालों पर ही
भांजी जाती हैं अनचाही तलवारें
छिन्नमस्तक की लाशों पर
लगाए जाते हैं जहाँ कहकहे
वहाँ प्रतिबद्धताएं वेश्या सी नोची खसोटी जाती हैं
राजनीति के मर्मज्ञ जानते हैं
क्षेत्र कोई हो
कैसे जुगाड़ के साम्राज्य को किया जाए पोषित
जो उनकी सत्ता रहे निर्विघ्न कायम
स्यापों का क्या है
वे पथ बाधक नहीं
बल्कि उनकी प्रसिद्धि में
चार चाँद लगाने का जुगाड़ भर हैं
जहाँ सभी अपने हैं और सभी पराये
मगर स्यापों में शामिल होना नियति है हमारी
स्यापों में चाहे अनचाहे शामिल होने का रिवाज़
आज के वक्त की एक खुली तस्वीर है ... झाँक सको तो झाँक लो
3 टिप्पणियां:
स्यापा और जुमला जरुरी है .......
खूब लिखा।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (29-08-2015) को "आया राखी का त्यौहार" (चर्चा अंक-2082) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
भाई-बहन के पवित्र प्रेम के प्रतीक
रक्षाबन्धन के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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