मेरे मन के मौन आकाश पर
जरूरी तो नहीं टंगे मिलें तुम्हें
हमेशा ही जगमगाते सितारे
ये चाँद की बेअदबी नहीं तो क्या है भला
जो ओढ़कर घूँघट छुपा लेता है चेहरा
और
सितारों के पक्ष सूने पथ पर
करते हैं जब चहलकदमी
नहीं की जातीं संस्तुतियाँ
अमावस की कालरात्रियाँ फर्क करना नहीं जानतीं
फिर मन का मौन हो
या आकाश का पथ सूना ...
जरूरी तो नहीं टंगे मिलें तुम्हें
हमेशा ही जगमगाते सितारे
ये चाँद की बेअदबी नहीं तो क्या है भला
जो ओढ़कर घूँघट छुपा लेता है चेहरा
और
सितारों के पक्ष सूने पथ पर
करते हैं जब चहलकदमी
नहीं की जातीं संस्तुतियाँ
अमावस की कालरात्रियाँ फर्क करना नहीं जानतीं
फिर मन का मौन हो
या आकाश का पथ सूना ...
3 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (15-08-2015) को "राष्ट्रभक्ति - देशभक्ति का दिन है पन्द्रह अगस्त" (चर्चा अंक-2068) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
स्वतन्त्रतादिवस की पूर्वसंध्या पर
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
लो जी हम आ गये 1वाह बहुत सुन्दर्1
प्रभावी अभिव्यक्ति.
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