अनगिनत चिंताओं की लेके थाती
'बाट जोहेगी तुम्हारी माँ' कह
नहीं विदा किया तुझे
फिर भी जाने कहाँ से
चिंताओं के बादल घुमड़ रहे हैं
क्योंकि जानती हूँ समय के चक्र को
ये कब बाज आया है
तुम्हें जाना ही होगा एक दिन दूर
अभी तो फिर भी आस जिंदा है
कुछ दिनों की बात है मगर
क्या होगा उस दिन
जब तुम चले जाओगे अपने लिए राह बनाने ...........शायद हमेशा के लिए
दूरियों और नजदीकियों के बीच उलझी
तुम्हारे भविष्य हेतु खुश हूँ
तो दूरियां सशंकित करती हैं
जानती हूँ
आंवल नाल से जुड़े रिश्ते में दूरियों की कोई गुंजाईश नहीं होती
फिर भी
माँ हूँ न
अक्सर हो जाती हूँ सशंकित
जब भी उमड़ता है ख्याल
आने वाले कल में बदल जायेगी तस्वीर
और तुम्हें जाना होगा हमेशा के लिए मुझसे दूर
दिन के कंकडों में से
बीनने को न बची होगी जब कोई आस
एक माँ का क्या जीतेगा तब विश्वास
इंतज़ार में हूँ ...........
6 टिप्पणियां:
आपकी इस पोस्ट को शनिवार, ०४ जुलाई, २०१५ की बुलेटिन - "दिल की बात शब्दों के साथ" में स्थान दिया गया है। कृपया बुलेटिन पर पधार कर अपनी टिप्पणी प्रदान करें। सादर....आभार और धन्यवाद। जय हो - मंगलमय हो - हर हर महादेव।
माँ के ह्रदय की आवाज़
खुद की चिंता भूल बच्चो की परवरिश में रात-दिन खपते हुए बच्चे कब बड़े हो गए, दूर चले गए, इस बारे में कहाँ सोच पाती हैं माँ ....
मर्मस्पर्शी रचना
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (05-07-2015) को "घिर-घिर बादल आये रे" (चर्चा अंक- 2027) (चर्चा अंक- 2027) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
बहुत सुन्दर
एक मां का मन जाने..बच्चों की ही सोचता है हरदम। सुंदर लिखा
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