ये जानते हुए भी
कि अनिश्चित है भविष्य
डर का बायस बन जाता है
'कल किसने देखा '
महज जुमला भर ही साबित होता है
भविष्य की अज्ञानता
बिछुओं के डंक सी
लील लेती है ज्ञान के सारे प्रपत्र
और पूरा जीवन बीत जाता है
महज डर की कंदराओं में भटकते
ओ आड़ी टेढ़ी रेखाएं खींच
चक्रव्यूह रचने वाले
अनिश्चितता के बादलों पर
डर की संज्ञाएँ लिपिबद्ध कर
कहो तो कौन से महाकाव्य का निर्माण किया ?
पग घुँघरू बाँध मीरा नाची रे
और देखो
यहाँ किसी के भी पाँव में घुँघरू नहीं फिर भी नाच रहे हैं सभी ........
कि अनिश्चित है भविष्य
डर का बायस बन जाता है
'कल किसने देखा '
महज जुमला भर ही साबित होता है
भविष्य की अज्ञानता
बिछुओं के डंक सी
लील लेती है ज्ञान के सारे प्रपत्र
और पूरा जीवन बीत जाता है
महज डर की कंदराओं में भटकते
ओ आड़ी टेढ़ी रेखाएं खींच
चक्रव्यूह रचने वाले
अनिश्चितता के बादलों पर
डर की संज्ञाएँ लिपिबद्ध कर
कहो तो कौन से महाकाव्य का निर्माण किया ?
पग घुँघरू बाँध मीरा नाची रे
और देखो
यहाँ किसी के भी पाँव में घुँघरू नहीं फिर भी नाच रहे हैं सभी ........
3 टिप्पणियां:
"सब नाचें बिन घुंघरू के" - सार्थक और सारगर्भित
सटीक और सुन्दर रचना
सार्थक लेखन
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