आज मैंने रखा है ब्रह्मभोज
ब्राह्मणों के लिए नहीं
कहाँ आज वैसे ब्राह्मण बचे
जिनके शाप से शापित हो जाएँ पूरी नस्लें ही
ये भोज है तुम्हारे लिए
सिर्फ तुम्हारे लिए ..... आखिरी बार
भोज की सामग्री में है
इंतज़ार के पीले फूल , गुलाबों की सूखी पत्तियाँ
और मेरी कभी न टूटने वाली आस की महक
शायद अब टूट जाए हर रस्मी दीवार
और तुम पुकार लो एक बार
हो जाए मेरी आखिरी आरजू का तर्पण
और हो जाए मेरी युगों से प्यासी प्यास का अंत
आज आखिरी दिन है
और आखिरी लम्हा
करो विदा मुझे
सुनो
चाहो या न चाहो
मरने पर तो सभी विदा किया करते हैं
और मुझे होना है जीते जी विदा
तुमसे , तुम्हारी याद से , तुम्हारे नाम से
क्या देखा है कभी मेरी तरह
मौत का आखिरी जश्न मनाते किसी को
मोहब्बत ऐसे भी होती है जानां .........
6 टिप्पणियां:
वाह जी अच्छा कहा है.
बहुत खूब , मंगलकामनाएं आपको !!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - बृहस्पतिवार- 26/03/2015 को
हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 44 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,
मोहब्बत ऐसे भी होती है जानां .... :) सुन्दर, संवेदनशील, परिपक्व और Strong..
जाने कैसे पर आज जो भी पढ़ रही हूँ… जानी पहचानी सी भावनांए मिल रही है… सारी कायनात लग गयी शायद इस ब्रह्मभोज़ को सफ़ल बनाने… lol.
वंदना जी ये भावनाए सम्प्रेषण की परकास्ठा है और आप उसमे भी अब्बल है बधाई
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ
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