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गुरुवार, 12 मार्च 2015

ख़ामोशी चुप्पी मौन

ख़ामोशी चुप्पी मौन 
इनका तुमने एक ही अर्थ लगाया 
मगर कभी नहीं आँक पाए वास्तविक अर्थ 
खामोशियों के पीछे जाने कितने तूफ़ान छुपे होते हैं 
चुप्पी के पीछे जाने कितने चक्रवात चला करते हैं 
मौन की आँधियों में भी शोर हुआ करते हैं 

सावधान रहना , मत छेड़ना कभी 
किसी के मौन को 
किसी की ख़ामोशी को 
किसी को चुप्पी को 

क्योंकि 
फिर कुछ नहीं बचेगा बचाने को 

महज वहम है तुम्हारा ख़ामोशी चुप्पी और मौन पर्याय हैं विकल्पहीनता के 

3 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (13-03-2015) को "नीड़ का निर्माण फिर-फिर..." (चर्चा अंक - 1916) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Onkar ने कहा…

सुन्दर रचना

Tayal meet Kavita sansar ने कहा…

पूर्णतया सह्मत हुं