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शुक्रवार, 22 अगस्त 2014

गदर का कारण



चलो बदल लो तुम अपना धर्म अपनी भाषा और मैं भी 
तो क्या संभव होगा तब भी सुकून की करवट लेना 
या चलो ऐसा करो खत्म करो हर धर्म को दुनिया से 
खत्म करो हर भाषा का व्याकरण 
फिर से पहुँचें हम उसी आदिम युग में 
जहाँ न धर्म था न भाषा 
और गुजर जाता था जीवन तब भी शिकार करते करते 
क्या वो सही था 
क्या तब नहीं होती थी हिंसा 
क्या तब नहीं होते थे शिकार 
सोचना ज़रा.....  ओ सभ्य इंसान 


आसान है 
दुनिया मे गदर का कारण 
भाषा और धर्म को बताकर पल्ला झाडना 
क्योंकि 
सबसे सहज सुलभ टारगेट हैं दोनों ही 
मगर मूल में न जाना 
अर्थ का अनर्थ कर देना 
प्रवृत्ति है तुम्हारी दोषारोपण करने की 

हाँ.……  मूल है मानव 
तुम्हारी लालसा , तुम्हारा स्वार्थ , तुम्हारा अहम 
एकाधिकार की भावना से ग्रसित हो तुम 
अपने प्रभुत्व अपने आधिपत्य एकछत्र राज करने की चाहना 
जिसके कारण बन चुका है विश्व एक सुलगता दावानल 
बस एक बार ऊंगली खुद की तरफ़ भी करके देखना 
प्रत्युत्तर मिल जायेगा
फिर न कभी तू भाषा और धर्म को लांछित कर पायेगा 
क्योंकि 
भाषा हो या धर्म 
दोनों ने जोड़ना ही सिखाया है 
मानव की टीस पीड़ा पर मरहम लगाया है 
ये तो मानविक स्वार्थी प्रवृत्ति ने 
भाषा और धर्म को हथियार बनाया है 

किसी भी सभ्यता को दोष देना आसान है जिस तरह 
उसी तरह भाषा और धर्म को 
प्रायोगिक उपकरण बनाना आसान होता है बजाय खोज करने के 
क्योंकि सतही स्पर्शों को ही समझा है तुमने मुकम्मलता 



काजल कुमार का स्टेटस पढ़ ये विचार उभरे स्टेटस था
दुनि‍या में सबसे ज्यादा गदर 
धरम और भाषा ने मचाया है

8 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

ग़दर का मूल कारण अपनी मानसिकता है, हाँ - अति किसी बात की होने पर विरोध ज़रूरी है

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

सचमुच...धर्म तो अब हथियार ही बन चुका है... :(

Satish Saxena ने कहा…

सही है !
मंगलकामनाएं आपको !

Unknown ने कहा…

Bahut hi sachhi aur kadvi baat zahir ki hain Aap ne

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

विचारणीय रचना दी ....

रमा शर्मा, जापान ने कहा…

बहुत सुंदर और सही

Unknown ने कहा…

बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति

Onkar ने कहा…

सही कहा