आस का बादल
गर झूम के बरसा
इस बरस तो
उग आएँगी खेत में
सरला के ब्याह की किलकारियाँ
माँ की दवा
छोटे के ऑपरेशन का खर्च
दो जून की रोटी
और एक अदद धोती
सरला की माँ के लिए
टकटकी लगाये
तपते आकाश से
बुझा रहा था जीवन की पहेलियाँ
आज फिर सुखिया अपना नाम सार्थक करने को
गुजर गयी उम्र जिसकी
फटी मैली कुचैली धोती में
ओ रे बदरवा आवत हो का !!!
गूँज रहा था स्वर कम्पायमान ध्वनि में
आस विश्वास और अविश्वास के मध्य ...
8 टिप्पणियां:
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज शनिवासरीय चर्चा मंच पर ।।
बहुत बढ़िया
वाह,उत्कृष्ट
सुन्दर रचना...
सुन्दर रचना...
सुन्दर रचना
बुझी आँखों में विश्वास /अविश्वास जीवन देता है या निराशा !
अच्छी रचना !
pyaaraaa.....
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