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शनिवार, 26 अक्तूबर 2013

आवाज़ का भरम

सब कुछ टूटने पर भी 
जोड़े रखना है मुझे 
आवाज़ का भरम 
भाँय भाँय की आवाज़ का होना 
काफी है एक रिदम के लिए 
नहीं सहेज सकती अब 
सन्नाटों के शगल 
क्योंकि जानती हूँ 
सन्नाटे भी टूटा करते हैं………
मगर 
आवाजें घूमती हैं ब्रह्माण्ड में निर्द्वन्द ………. 
आवाज़ कहूं , ध्वनि या शब्द 
जिसका नहीं होता कभी विध्वंस 
इसलिए 
अब सिर्फ आवाज़ को माध्यम बनाया है 
जिसके जितने भी टुकड़े करो 
अणु का विद्यमान रहना जीवित रखेगा मुझे ……मेरे बाद भी 

11 टिप्‍पणियां:

Sumit Tomar ने कहा…

सुन्दर लिखा है वंदना जी..
बधाई..

ये भी क्या कम है की आवाज़ का भरम कायम है,
कहने को साथ भी और कहने को बाद भी..

मेरी दुनिया.. मेरे जज़्बात..

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

स्‍वर अनंत है

Unknown ने कहा…

बेहतरीन लेखन

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत ही बढ़िया

सादर

shalini rastogi ने कहा…

बहुत सुन्दर ... आपकी यह उत्कृष्ट रचना कल रविवार दिनांक 27/10/2013 को ब्लॉग प्रसारण http://blogprasaran.blogspot.in/ पर लिंक की गयी है .. कृपया पधारें औरों को भी पढ़ें |

Jai bhardwaj ने कहा…

आवाज का अवलंबन लेना उचित ही है। उत्तम रचना के लिए आभार वन्दना जी।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

ये भरम नहीं .... जीता जागता एहसास है जो जोड़े रखता है ... लाजवाब एहसास ...

राजीव कुमार झा ने कहा…

बहुत सुन्दर .
नई पोस्ट : कोई बात कहो तुम

Dr. Shorya ने कहा…

बहुत सुंदर

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

लाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

इमरान अंसारी ने कहा…

बेहतरीन और लाजवाब ।