खोये हैं हम ना जाने किस जहान में
आये कोई आवाज़ दे बुला ले उस जहान से
आये कोई आवाज़ दे बुला ले उस जहान से
यूँ तो वापसी की डगर कोई नहीं
बस उम्मीद के तारे पे रुकी है ज़िन्दगी
कतरनों को सीने की जद्दोजहद में
आवाज़ के घुँघरुओं में बसी है ज़िन्दगी
चिलमनों के उस तरफ जो शोर था
दिल में मेरे भी तो कुछ और था
करवट बदलने से पहले कोई दे आवाज़ पुकार ले
बस इसी आरज़ू की शाख से लिपटी खड़ी है ज़िन्दगी
यूं तो जीने के बहाने और भी थे
मेरे गम के सहारे और भी थे
बस खुद को मुबारक देने की चाहत में
उस पार की आवाज़ को तड़प रही है ज़िन्दगी
खोये हैं हम ना जाने किस जहान में
आये कोई आवाज़ दे बुला ले उस जहान से
आये कोई आवाज़ दे बुला ले उस जहान से
10 टिप्पणियां:
बढ़िया है आदरेया-
आये कोई आवाज़ दे बुला ले उस जहान से
...
मार्मिक आवाहन !!
उम्मीद की डोर रहे तो सवेरा जरूर आता है ... कोई आवाज़ जरूर आएगी लौटाने के लिए ...
सुन्दर आवाहन ...
उम्मीद की बेहतरीन अभिवयक्ति.....
बस इसी आरज़ू की शाख से लिपटी खड़ी है ज़िन्दगी
बहुत खूब ... सुंदर प्रस्तुति
बहुत सुंदर सृजन,,,वाह
RECENT POST : अभी भी आशा है,
Phir ekbaar mugdh kar diya!
बहुत सुंदर , मंगलकामनाये
बहुत बहुत सुंदर
एक टिप्पणी भेजें