इस बार के पुस्तक मेले में इतने स्नेह और सम्मान से पवन अरोडा जी ने अपनी पुस्तक ना केवल भेंट की बल्कि उसके विमोचन का भी हमें हिस्सा बनाया और मैं अपनी मसरूफ़ियतों के चलते पढ नहीं पायी और जब पढ ली तो उसके बाद उस पर लिखे बिना कैसे रह सकती थी सो आज सब काम छोड कर सबसे पहला ये ही काम किया ।
ज्योतिपर्व प्रकाशन से प्रकाशित पवन अरोड़ा की " ज़िन्दगी के पन्ने " वास्तव में ज़िन्दगी की एक सीधी सरल दास्ताँ है जिससे हम सब कहीं न कहीं गुजरते हैं .जहाँ कवि मन ज़िन्दगी को सूक्ष्म दृष्टि से विवेचित करता है और यही कवि की दृष्टि होती है जो भेदों को अभेद्ती है जो साधारण में से असाधारण को खोजती है और व्याख्यातित करती है फिर ज़िन्दगी तो है ही ऐसी शय जिसे जितना खोजो जितना चाहो जितना विश्लेषण करो अबूझी ही लगती है .
"आस्था " कैसे जीवन के संग बढ़ी चलती है की हम सही गलत सोचते ही नहीं बस लकीर के फ़क़ीर बने दौड़ते हैं आँख पर अविवेक की पट्टी बांधे . आस्था की डोर में बढे एक जिंदगी जी कर कब निकल जाते हैं और जान ही नहीं पाते आखिर जीवन है क्या और उसका मकसद क्या है .
"नरक धाम " जीवन की वो सच्चाई है जो इंगित करती है कई स्वर्ग और नरक की अवधारणा को जो हर इंसान चाहता ही की उसे स्वर्ग मिले जबकि ये एक सत्य है जिसे भी स्वर्ग मिला उसे फिर जन्म लेना पड़ा और दुनिया में आकर वो दुःख दर्द झेलना पड़ा जो किसी नरक से कम नहीं फिर क्या फायदा नरक धरती पर हो या आसमान में रहना तो नरक में ही है .
" धर्मयुद्ध " के माध्यम से इंसान की वृत्ति पर कटाक्ष किया है .
धर्म के नाम पर आज खोली दूकान
जहाँ उगलता साँपों जैसी
खुद को कहता
भगवान या कैसा आज का इंसान
एक ऐसी सच्चाई जिसमें फंसकर इंसान क्या कुछ नहीं गँवा देता और हाथ कुछ नहीं आता .
" कौन मैं " खुद को खोजता हर अस्तित्व जिसमें कोई साथ नहीं न दोस्त न माँ , , बाप भाई बहन कोई नहीं एक ऐसी सोच जिसने पा लिया उसे कुछ खोजना बाकी न रहा .
"सवाल उठते हैं मन मैं " हर मन की पीड़ा का अवलोकन है और कुछ प्रश्न हमेशा अनुत्तरित ही रहते हैं या वो कर्मों और भाग्य का लेख बन मूक रह जाते हैं .
इंसानियत का हो रहा कत्लेआम
ऐसे न लगवाओ इसके दाम
कभी तूने भी
सोचा क्या होगा उस माँ का हाल
जिसने जिगर का टुकड़ा खो दिया अपना लाल
"रिश्ते" में रिश्तों के सिमटते आकाश को बखूबी उकेरा है . आज के युग में जब एक दो बच्चे ही हो रहे हैं तो कैसे जान पायेगे वो कोई दूसरा रिश्ता भी होता है और फिर अकेले ही गिने चुने रिश्तों को सहेजना है और न सहेज पाने की स्थिति में गलत कदम उठाना कितना दुरूह होता है उसका आकलन किया है .
" आँखों की भाषा " में चंद शब्दों में पूरा प्रेम का फलसफा गढ़ दिया .
" आओ कहीं आग लगायें " एक कटाक्ष है आज की राजनीती पर कैसे सिर्फ अपनी कुर्सी बचाने के लिए जनता का दोहन किया जाता है .
" आज फिर गूँज उठी आवाज़ " मौत एक शाश्वत सत्य है कि ओर इंगित करती रचना बताती है चाहे कुछ कर लो मगर मौत ने तो आना ही आना है .
" एक इंतज़ार " में एक पिता की भावनायें कैसे बेटी के लिए उमगती हैं उसका खूबसूरत चित्रण है .
" माटी का यह " के माध्यम से ज़िन्दगी की हकीकत बताई है कि ये शरीर मिटटी है और एक दिन मिटटी में ही मिल जाना है बस इसे समझना जरूरी है .
" नेता रुपी नाग " के माध्यम से नेताओं की सोच को परिलक्षित किया है कि वो तुम्हें डँस ले उससे पहले जाग जाओ और सही कदम उठाओ .
ये तो सिर्फ कुछ रचनायें ही मैंने समेटी हैं बाकि पूरे काव्य संग्रह में हर कविता में ज़िन्दगी के हर पहलू को समेटने की कोशिश की है . सीधी सरल भाषा में हर पहलू को छूना और उसे व्यक्त करना ताकि मन की बात सब तक पहुँच सके यही पवन अरोड़ा की खासियत है. हर लम्हा लम्हा ज़िन्दगी को खोजने को प्रयासरत पवन अरोड़ा ने काफी रचनायें ज़िन्दगी पर ही लिखी हैं जैसे खोज रहे हों ज़िन्दगी के गर्भ में छुपी हकीकतें और वो मिलकर भी अधूरी हसरत सी तडपा रही हों .
पवन अरोड़ा से आप इस नंबर पर संपर्क कर सकते हैं
M: 09999677033
ज्योतिपर्व प्रकाशन
99,ज्ञान खंड --- 3 , इन्दिरपुरम
गाज़ियाबाद -------- 201012
मोबाइल : 9811721147
9 टिप्पणियां:
वन्दना जी आपने अपनी जिंदगी के बेशकीमती लम्हों से कुछ लम्हे निकाल मेरी लिखी पुस्तक को पढ़ा ..मुझे बहुत ख़ुशी मिली
एक सच जिंदगी का मैं भलि भांति जानता हूँ ..की मैं कैसा लिखता हूँ ...आप जैसे लेखक और अंजू चोधरी ,केदार भाई जो मेरे मित्रवर है उन्हें पढ़ उनका लिखा एक एक शब्द मुझे प्रोत्सहित करता है मैं पवन अरोड़ा आपके और उनकी भांति तो नही लिखता जानता हूँ
यह जरुर कहूँगा यहाँ मैं की मैंने समाज से मिले उन सभी लम्हों को पढ़ा जिया समझा और उतारा जिसमे दुःख सुख को पाया
क्यूंकि वास्तविक जीवन की रेखा वही मिलती है ..कैसे कैसे समाज के रिश्ते दोस्त इंसान मौसम बदलने से पहले मुखोटे लगा रंग बदल लेते है ..मगर जीना यही है इसी समाज रह ..मुझे पढना अच्छा लगता है जीना अच्छा लगता है जो आज मुझे धोखा दे रहा है या दे गया कल किसी और को देता मेरे बदले तो मैं ही सही क्यूंकि मुझे दर्द से रिश्तो से प्यार है जो मेरे संग बने रहते है ख़ुशी आती नही पकडनी पढ़ती है और फिर भाग जाती है मगर यह साथ निभाते है
जो लिखता हूँ यही पाया है ..दिल से लिखता हूँ
शुक्रिया आपका आपने मुझे पढ़ा और प्रोत्सहित किया
वन्दना जी आपने अपनी जिंदगी के बेशकीमती लम्हों से कुछ लम्हे निकाल मेरी लिखी पुस्तक को पढ़ा ..मुझे बहुत ख़ुशी मिली
एक सच जिंदगी का मैं भलि भांति जानता हूँ ..की मैं कैसा लिखता हूँ ...आप जैसे लेखक और अंजू चोधरी ,केदार भाई जो मेरे मित्रवर है उन्हें पढ़ उनका लिखा एक एक शब्द मुझे प्रोत्सहित करता है मैं पवन अरोड़ा आपके और उनकी भांति तो नही लिखता जानता हूँ
यह जरुर कहूँगा यहाँ मैं की मैंने समाज से मिले उन सभी लम्हों को पढ़ा जिया समझा और उतारा जिसमे दुःख सुख को पाया
क्यूंकि वास्तविक जीवन की रेखा वही मिलती है ..कैसे कैसे समाज के रिश्ते दोस्त इंसान मौसम बदलने से पहले मुखोटे लगा रंग बदल लेते है ..मगर जीना यही है इसी समाज रह ..मुझे पढना अच्छा लगता है जीना अच्छा लगता है जो आज मुझे धोखा दे रहा है या दे गया कल किसी और को देता मेरे बदले तो मैं ही सही क्यूंकि मुझे दर्द से रिश्तो से प्यार है जो मेरे संग बने रहते है ख़ुशी आती नही पकडनी पढ़ती है और फिर भाग जाती है मगर यह साथ निभाते है
जो लिखता हूँ यही पाया है ..दिल से लिखता हूँ
शुक्रिया आपका आपने मुझे पढ़ा और प्रोत्सहित किया
वन्दना जी ने किताब की जीतनी तारीफ़ की है
पढ़ना ज़रूरी होगया है...साभार....
पवन अरोड़ा जी की पुस्तक " ज़िन्दगी के पन्ने की "बहुत सुंदर लाजबाब समीक्षा के लिए बधाई,वन्दना जी,,
RECENT POST: जिन्दगी,
आज की ब्लॉग बुलेटिन जेब कट गई.... ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
पुस्तक परिचय आपकी नज़र से अच्छा लगा । आभार
बहुत खूब ... आपने पवन जी से मिलवाया ... इनकी पुस्तक से मिलवाया ... पढ़ने की रूचि जगा दी ... सुन्दर समीक्षा ...
बहुत अच्छा लगा । आभार
Behtareen vimochan kiya hai aapne!
एक टिप्पणी भेजें