मेरी आँखों में ठहरे सूखे सावन की कसम है तुम्हें ............कभी मत कहना अब "मोहब्बत है तुमसे" ...........बरसों कहूं या युगों कहूं नहीं जानती मगर ये जो आँखों की ख़ामोशी में ठहरा दरिया है न कहीं बहा न ले जाए तुम्हें भी और इस बार सैलाब रोके नहीं रुकेगा चाहे जितने बाँध बना लेना ..............जानते हों क्यों ? क्योंकि मैंने दिल की मिटटी में खौलता तेज़ाब उंडेल दिया था उसी दिन जब तुम मेरी आखिरी ख्वाहिश जानकर भी वो तीन लफ्ज़ ना कह सके , ना ही महसूस सके ...........और अब हाथों में मेहंदी लगाने की रुत नहीं रही जिसे देख सिहर सिहर उठूँ ..........बीती रुत , गिरे पत्ते और सिन्दूरी मोहब्बत वापस नहीं मुड़ा करती हैं ..........जानां !!!
इश्क और जूनून पर्याय हैं एक दूजे के और मैं उनका अर्थ ..........नागफनी सी उग आती हूँ बंजर , रेतीली जमीनों पर भी या कभी डंस लेती हूँ स्वयं ही अपनी रूह की उड़ानों को ..........जज़्ब करने की रुतें नहीं हुआ करती ना ............क्या कर सकोगे कभी तुम मेरी दहकती , भभकती रूह को खुद में जज़्ब और जी सकोगे उसके बाद मुस्कुराकर .............मेरी तरह ? ..............तुमसे एक सवाल है ये ...........क्या दे सकोगे कभी " मुझसा जवाब " ............ओ मेरे !
12 टिप्पणियां:
बहुत उम्दा
adobe reader में कंप्यूटर बोल के पढ़ता है pdf फाइल
भावात्मक अभिव्यक्ति मन को गहराई तक उदेव्लित .आभार . मुलायम मन की पीड़ा साथ ही जानिए संपत्ति के अधिकार का इतिहास संपत्ति का अधिकार -3महिलाओं के लिए अनोखी शुरुआत आज ही जुड़ेंWOMAN ABOUT MAN
ये ऑंखें ...
शुभकामनायें !!!
ओह...जवाब इतना आसान नही होगा. बहुत ही मार्मिक भाव.
रामराम.
bhot khub waaaaaaaaaaah
सुन्दर भावपूर्ण रचना...
अनकही बातों का मंजर मन में उफान सा भर देता है .....
..मन में उमड़ती घुमड़ती हलचल का यथार्थ चित्रण
nice
बहुत बढ़िया
बहुत लाजवाब ,उम्दा प्रस्तुति
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
वाह ।
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