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रविवार, 2 जून 2013

ओ मेरे !..............3

जरूरी होता है खेत को सींचा जाना भी ऋतु आने पर ............यूं ही नहीं फसलें लहलहाती हैं ............सभी जानते हैं मगर मानता कौन है , करता कौन है ...............चाहे नेह का समंदर ठाठें मार रहा हो , चाहे सुनामी आने को आतुर हो मगर अहम की पोषित तुम्हारी वंशबेल कभी चप्पू उठाने ही नहीं देती  ...........चाहे किनारे नेस्तनाबूद हो जाएँ या नैया भंवर में ही डूब क्यों  न जाए .............एक अहम की कस्सी से तुम खोद ही नहीं पाते बंजर जमीन की  मिटटी को और नहीं रोंप पाते अपनी मनचाही फसल के बीजों को ............वैसे भी यहाँ तो खलिशों के रेगिस्तान की इकलौती मलिका हूँ मैं ...........हाँ , मैं , तुम्हारी चाहतों की कब्रगाह का फूल नहीं जो तोडा , सूंघा और मसल डाला ............जीने के लिए कुछ  रौशनदान बनाए हैं मैंने भी .............तुम्हारी दी बेरुखी से , तुम्हारी बदमजगी से , तुम्हारी बेअदबी से ................हवाये झुलसाने का शऊर बखूबी निभा रही हैं तब से .........जानां !!!

इश्क की कतरनें भी कभी क्या सीं जाती हैं ? और देख मैंने तो पूरा लिहाफ बना डाला ...........चाहो तो ओढ़ लो चाहो बिछा लो चाहो तो इबादत कर लो ..........कहो , कर सकोगे  इबादत , कर सकोगे बुतपरस्ती .......मुझसी ? .............तुमसे एक सवाल है ये ...........क्या दे सकोगे कभी " मुझसा जवाब " ............ओ मेरे !

17 टिप्‍पणियां:

ashokkhachar56@gmail.com ने कहा…

waaaaaaaah

HARE RAM MISHRA ने कहा…

Sichta hai asman ritu ane per ... faslen uhi lahlahati nahi sach ... parantu kishano ke pasine ka keya ...

chahto ke kabragah ke ful bhi ... agar ho mayassar to jindgi tar jayegi ... sach ka viswas ho agar sana hua ... hawayen jhulsa na payengi ...

Isk ki katrano ka lihaf hi to sita aya hun ... asma se akar niche ... butparasti to swarth ka sadhan hi to hai ... kass isk buton se bhi ki ja sakti jaha me ...

Sawalon ke jabab karni hi ho sakti hai ... balthe thale sawal bhukhon ko nahi bhate.....

Kalam ke prati dhrishta ke liye kshama karenge ......

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत ही लाजवाब, शुभकामनाएं.

रामराम.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

इश्क की इस चादर को सहेजना आसां नहीं ... उम्र गुज़र जाती है नहीं मिलती किसी किसी को तो ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

हवाये झुलसाने का शऊर बखूबी निभा रही हैं तब से ....

मन जैसे बूंद बूंद रिस गया ...

pran sharma ने कहा…

LAJWAAB !

pran sharma ने कहा…

LAJWAAB !

रचना दीक्षित ने कहा…

इश्क की कतरनों का लिहाफ एक जबरदस्त सोच. बहुत सुंदर.

Onkar ने कहा…

बहुत खूब

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

तुम सी बुतपरस्ती?????
न न....आसां नहीं....


कमाल लिख रही हो वंदना..

सस्नेह
अनु

Shikha Kaushik ने कहा…

बहुत बेहतरीन

kshama ने कहा…

Tumhare lekhan kee jitnee tareef karun utnee kam hai!

vijay kumar sappatti ने कहा…

ye nayi series mujhe bahut acchi lagi . ek naya dimension hai , aur accha hi likh rahi ho . badhayi

Amrita Tanmay ने कहा…

हाय! ओ मेरे..

sushila ने कहा…

बहुत ही मोहक अभिव्यक्ति ! शुभकामनाएँ वंदना जी।

ASHOK BIRLA ने कहा…

नही महोदया कोई नही देगा अपसा जवाब
वैसे बड़ी गंभीर कविता है

Neeraj Neer ने कहा…

waah bahut sundar.