पृष्ठ

अनुमति जरूरी है

मेरी अनुमति के बिना मेरे ब्लोग से कोई भी पोस्ट कहीं ना लगाई जाये और ना ही मेरे नाम और चित्र का प्रयोग किया जाये

my free copyright

MyFreeCopyright.com Registered & Protected

शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

आखिर अग्निगंधा भी तलाशती है कुछ फूल छाँव के

धूप भी साये की आकांक्षी हो गयी
आखिर कब तक अपना ही ताप सहे कोई
यूँ ही नहीं देवदार बना करते हैं
यूँ ही नहीं छाया दिया करते हैं
उम्र की बेहिसाब सीढियों पर
अनंत से अनंत के सफ़र तक
आखिर ताप भी सुलगता होगा 
अपनी तपिश से .............
उसे भी तो जरूरत पड़ती होगी
कोई आये और सहला दे 
उसके तपते रेगिस्तान को
ड़ाल दे दो बूँद नेह की 
और सारी तपिश भाप बन कर उड़ जाए
यूँ ही नहीं धूप ने साए के आगोश में पनाह ली होगी
आखिर अग्निगंधा भी तलाशती है कुछ फूल छाँव के 

29 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

बिलकुल |
कब तक लगातार तप सकता है कोई-
शीतल तल तलाशे-

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

बड़ी प्यारी सी कविता है...

सदा ने कहा…

बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

Amrita Tanmay ने कहा…

इतनी सुन्दर कविता के लिए बधाई...

vikram7 ने कहा…

sundar prastuti

mridula pradhan ने कहा…

bahut achcha likhin.......

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,

MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...

शेखचिल्ली का बाप ने कहा…

Wah wah kya baat hai ji ...

damdaar mazedar rasili kavita.

Rajesh Kumari ने कहा…

bahut sundar bhavabhivyakti.

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वाह वंदना जी..........

बहुत कोमल सी अभिव्यक्ति....

अनु

कुमार राधारमण ने कहा…

परस्पर निर्भरता में ही जीवन है। इसलिए,क्या धूप क्या छाया-साहचर्य सबको चाहिए।

वाणी गीत ने कहा…

बढ़िया !

Aruna Kapoor ने कहा…

बहुत सुन्दर भावनात्मक रचना!...आभार!

बेनामी ने कहा…

बहुत ही सुन्दर भाव.....वंदना जी ये 'अग्निगंधा' भी कोई फूल होता है क्या ? मुझे पता नहीं है इस बारे में।

संध्या शर्मा ने कहा…

यूँ ही नहीं धूप ने साये के आगोश में पनाह ली होगी...
छाँव की तलाश तो सभी को होती है... गर्मी की तपिश में शीतलता प्रदान करती सुन्दर रचना

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

उसकी तलाश उस धूप से तभी तो बेपरवाह है

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सच है .... बहुत गहरी अभिव्यक्ति ....

शेखचिल्ली का बाप ने कहा…

बहुत से सवालों को हल करते हुए ख़ुद सवाल खड़ा करती हुई बेहतरीन तख़लीक़.
नेह की बूंदें दो ही क्यों ?
जितनी भी हों क़ुबूल होनी चाहिएं.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बेहतरीन रचना..

***Punam*** ने कहा…

और तलाश जारी है॰.....
सुंदर...

Ramakant Singh ने कहा…

beautiful lines ful of emotions and
deep thought near to heart insisting to think .VERY VERY VERY NICE LINES .

Ramakant Singh ने कहा…

beautiful lines ful of emotions and
deep thought near to heart insisting to think .VERY VERY VERY NICE LINES .

Onkar ने कहा…

bahut khoob

PRIYANKA RATHORE ने कहा…

बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

वृजेश सिंह ने कहा…

सुंदर कविता। स्वागत है।

वृजेश सिंह ने कहा…

सुंदर कविता। स्वागत है।

रचना दीक्षित ने कहा…

बहुत गहरी अभिव्यक्ति.

इस सुन्दर कविता के लिए बधाई.

Monika Jain ने कहा…

sundar gahan abhivyakti