धूप भी साये की आकांक्षी हो गयी
आखिर कब तक अपना ही ताप सहे कोई
यूँ ही नहीं देवदार बना करते हैं
यूँ ही नहीं छाया दिया करते हैं
उम्र की बेहिसाब सीढियों पर
अनंत से अनंत के सफ़र तक
आखिर ताप भी सुलगता होगा
अपनी तपिश से .............
उसे भी तो जरूरत पड़ती होगी
कोई आये और सहला दे
उसके तपते रेगिस्तान को
ड़ाल दे दो बूँद नेह की
और सारी तपिश भाप बन कर उड़ जाए
यूँ ही नहीं धूप ने साए के आगोश में पनाह ली होगी
आखिर अग्निगंधा भी तलाशती है कुछ फूल छाँव के
29 टिप्पणियां:
बिलकुल |
कब तक लगातार तप सकता है कोई-
शीतल तल तलाशे-
बड़ी प्यारी सी कविता है...
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
इतनी सुन्दर कविता के लिए बधाई...
sundar prastuti
bahut achcha likhin.......
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...
Wah wah kya baat hai ji ...
damdaar mazedar rasili kavita.
bahut sundar bhavabhivyakti.
वाह वंदना जी..........
बहुत कोमल सी अभिव्यक्ति....
अनु
परस्पर निर्भरता में ही जीवन है। इसलिए,क्या धूप क्या छाया-साहचर्य सबको चाहिए।
बढ़िया !
बहुत सुन्दर भावनात्मक रचना!...आभार!
बहुत ही सुन्दर भाव.....वंदना जी ये 'अग्निगंधा' भी कोई फूल होता है क्या ? मुझे पता नहीं है इस बारे में।
यूँ ही नहीं धूप ने साये के आगोश में पनाह ली होगी...
छाँव की तलाश तो सभी को होती है... गर्मी की तपिश में शीतलता प्रदान करती सुन्दर रचना
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना...
उसकी तलाश उस धूप से तभी तो बेपरवाह है
सच है .... बहुत गहरी अभिव्यक्ति ....
बहुत से सवालों को हल करते हुए ख़ुद सवाल खड़ा करती हुई बेहतरीन तख़लीक़.
नेह की बूंदें दो ही क्यों ?
जितनी भी हों क़ुबूल होनी चाहिएं.
बेहतरीन रचना..
और तलाश जारी है॰.....
सुंदर...
beautiful lines ful of emotions and
deep thought near to heart insisting to think .VERY VERY VERY NICE LINES .
beautiful lines ful of emotions and
deep thought near to heart insisting to think .VERY VERY VERY NICE LINES .
bahut khoob
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
सुंदर कविता। स्वागत है।
सुंदर कविता। स्वागत है।
बहुत गहरी अभिव्यक्ति.
इस सुन्दर कविता के लिए बधाई.
sundar gahan abhivyakti
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