जाने कौन सी
वो पीड़ा है
जो दर्द बनकर
लफ़्ज़ों में
उतर आती है
मगर मुझसे
ना मिल पाती है
जब जब अंतस में
कुलबुलाती है
दर्द का दरिया बन
बह जाती है
मगर मुझसे ना
रु-ब-रु हो पाती है
पीड़ा का स्वरुप
ना जाना कभी
उसका मर्म स्थान
भी ना पाया कभी
ना कभी सींचा ही
अश्रु बिंदु से
मगर फिर भी
खेत में पड़े बीज
अंकुरित हो ही जाते हैं
फसल लहलहा जाती है
मगर पीड़ा का बीज
ना खोज पाती है
कौन सा दर्द
सैलाब लाता है
कौन सा पत्थर
दर्द जगाता है
जो मील का
बन जाता है
ना जान पाती है
मगर पीड़ा फिर भी
जाग जाती है
लफ़्ज़ों के माध्यम से
पन्नो को भिगो जाती है
मगर मुझसे
तब भी ना
मिल पाती है
पीड़ा का दर्शन
ना हो पाता है
पीड़ा का ना जाने
ये कैसा मुझसे नाता है
मुझमे ही समाती है
और मुझे ही
ना समझ आती है
फिर हल कहाँ से पाऊँ
निराकार में व्याप्ति है
साकार ना हो पाती है
फिर कैसे पीड़ा को मूर्त रूप दे पाऊँ?
वो पीड़ा है
जो दर्द बनकर
लफ़्ज़ों में
उतर आती है
मगर मुझसे
ना मिल पाती है
जब जब अंतस में
कुलबुलाती है
दर्द का दरिया बन
बह जाती है
मगर मुझसे ना
रु-ब-रु हो पाती है
पीड़ा का स्वरुप
ना जाना कभी
उसका मर्म स्थान
भी ना पाया कभी
ना कभी सींचा ही
अश्रु बिंदु से
मगर फिर भी
खेत में पड़े बीज
अंकुरित हो ही जाते हैं
फसल लहलहा जाती है
मगर पीड़ा का बीज
ना खोज पाती है
कौन सा दर्द
सैलाब लाता है
कौन सा पत्थर
दर्द जगाता है
जो मील का
बन जाता है
ना जान पाती है
मगर पीड़ा फिर भी
जाग जाती है
लफ़्ज़ों के माध्यम से
पन्नो को भिगो जाती है
मगर मुझसे
तब भी ना
मिल पाती है
पीड़ा का दर्शन
ना हो पाता है
पीड़ा का ना जाने
ये कैसा मुझसे नाता है
मुझमे ही समाती है
और मुझे ही
ना समझ आती है
फिर हल कहाँ से पाऊँ
निराकार में व्याप्ति है
साकार ना हो पाती है
फिर कैसे पीड़ा को मूर्त रूप दे पाऊँ?
38 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर वंदना जी..........
ह्रदय के कोमल भावों की सहज अभिव्यक्ति.....
अनु
बहुत सुन्दर ...अद्भुत भाव..
kalamdaan
बहुत सुन्दर ...अद्भुत भाव..
kalamdaan
बहुत सुन्दर ...अद्भुत भाव..
kalamdaan
एक ही रास्ता हैःपीड़ा को उसकी पूर्णता में महसूस किया जाए,ताकि जब उसकी वापसी हो,तो कुछ भी नया न लगे और जो नया नहीं होगा,उससे ध्यान हट ही जाएगा...धीरे-धीरे।
भावपूर्ण रचना.
बहुत बड़ा सवाल है यह .
komal bhaav liye sundae rachana
ek najar mere blaag men
अद्भुत
sundar bhavon se saji shandar post
पीड़ा अपने तक ही रहे तो अच्छा है ... अन्यथा कभी कभी मजाक बन जाती है ... भावपूर्ण रचना ...
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
कल 18/04/2012 को आपके इस ब्लॉग को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
... सपना अपने घर का ...
उस पीड़ा की वेदना जीकर एक स्त्री स्वयं कविता सी बन जाती है .... लिखी हुई , पढ़ पाना न पढ़ पाना तो संयोग है
वाह!
बहुत सुन्दर!
शायद इसीलिए भगवान ने आँसू बनाये हैं !
बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति !
आभार !
चरफर चर्चा चल रही, मचता मंच धमाल |
बढ़िया प्रस्तुति आपकी, करती यहाँ कमाल ||
बुधवारीय चर्चा-मंच
charchamanch.blogspot.com
bahut khoob ......vandana jee marmik abhiwyakti....
पीडा ही है जो हमारे अंदर सृजन की शक्ती जगाती है ।
बहुत मार्मिक ।
komal bhavon se saji kavita badhai
rachana
पीड़ा का हल पाना सरल है।
जिससे हमें प्यार होता है, उसके लिए हम जितनी पीड़ा उठाते हैं उतना ही सुख मिलता है।
तब पीड़ा पीड़ा नहीं रहती। पीड़ा सुख का कारण बन जाता है।
लड़की अपना मायका छोड़कर ससुराल जाती है, पीड़ा उठाती है। पति का प्यार मिले तो उसे फिर यह पीड़ा किंचित भी पीड़ा नहीं लगती।
लोगों के साथ हमारे रिश्ते बदलते रहते हैं।
मालिक के साथ हमारा रिश्ता स्थायी है।
उस एक मालिक से प्रेम कीजिए।
स्थायी प्रेम आपको पीड़ा से स्थायी मुक्ति देगा।
कुछ मेरे अपने मन की सी बात ...... गहरी अभिव्यक्ति...
पीड़ा को मूर्त रूप देने की जद्दोजहद
बहुत सुन्दर
SAHAJ BHASHA MEIN BHAAV KEE SUNDAR
ABHIVYAKTI .
there is no comfort in the pain.
nice post with deep feelings.
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर अद्भुत अभिव्यक्ति की बेहतरीन रचना लिखी, वंदना जी,...
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...
umda rachna ...........
पीड़ा का मूर्त रूप हो ही नहीं सकता ... वह तो बस महसूस करने की होती है ... तीस भी उठेगी ... पन्ने भी भीगेंगे ....पर दिखेगी नहीं ...
बहुत ही खूबसूरत कविता |
बहुत गहन भाव ....
सुंदर रचना ....वंदना जी ....
शुभकामनायें ...!!
बेहतरीन
सादर
जो बहता है, वह बहने दो।
peeda hi jeevan ko naya roop deti hai vandana . har srujankarta ek nayi peeda se gujarta hia. aapne bahut accha likha . badhayi .
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना....
कविता अभिधेयात्मक एवं व्यंजनात्मक शक्तियों को लिए हुए है।
आध्यात्मिक राह के पथिक की पुकार ...
पीड़ा का ना जाने
ये कैसा मुझसे नाता है
मुझमे ही समाती है
और मुझे ही
ना समझ आती है
फिर हल कहाँ से पाऊँ
निराकार में व्याप्ति है
साकार ना हो पाती है
फिर कैसे पीड़ा को मूर्त रूप दे पाऊँ?
मन के कोमल भावों की सहज अभिव्यक्ति,हुयी है आप की इस कविता में
भावपूर्ण सुन्दर अभिव्यक्ति
Touched my heart....very nice :) :)
मन के कोमल भावों को मूर्त रूप से बांधने हेतु बधाई ।
एक टिप्पणी भेजें