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मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

फिर कैसे पीड़ा को मूर्त रूप दे पाऊँ ?

जाने कौन सी
वो पीड़ा है
जो दर्द बनकर
लफ़्ज़ों में
उतर आती है
मगर मुझसे
ना मिल पाती है
जब जब अंतस में
कुलबुलाती है
दर्द का दरिया बन
बह जाती है
मगर मुझसे ना 

रु-ब-रु हो पाती है
पीड़ा का स्वरुप 

ना जाना कभी
उसका मर्म स्थान
भी ना पाया कभी
ना कभी सींचा ही
अश्रु बिंदु से
मगर फिर भी
खेत में पड़े बीज
अंकुरित हो ही जाते हैं
फसल लहलहा जाती है
मगर पीड़ा का बीज 

ना खोज पाती  है
कौन सा दर्द 

सैलाब लाता  है
कौन सा पत्थर
दर्द जगाता है
जो मील का
बन जाता है
ना जान पाती है
मगर पीड़ा फिर भी
जाग जाती है
लफ़्ज़ों के माध्यम से
पन्नो को भिगो जाती है
मगर मुझसे
तब भी ना
मिल पाती है
पीड़ा का दर्शन 

ना हो पाता है
पीड़ा का ना जाने
ये  कैसा मुझसे नाता है
मुझमे ही समाती है
और  मुझे ही
ना समझ आती है
फिर हल कहाँ से पाऊँ
निराकार में व्याप्ति है
साकार ना हो पाती है

फिर कैसे पीड़ा को मूर्त रूप दे पाऊँ?

38 टिप्‍पणियां:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत सुंदर वंदना जी..........
ह्रदय के कोमल भावों की सहज अभिव्यक्ति.....

अनु

RITU BANSAL ने कहा…

बहुत सुन्दर ...अद्भुत भाव..
kalamdaan

RITU BANSAL ने कहा…

बहुत सुन्दर ...अद्भुत भाव..
kalamdaan

RITU BANSAL ने कहा…

बहुत सुन्दर ...अद्भुत भाव..
kalamdaan

कुमार राधारमण ने कहा…

एक ही रास्ता हैःपीड़ा को उसकी पूर्णता में महसूस किया जाए,ताकि जब उसकी वापसी हो,तो कुछ भी नया न लगे और जो नया नहीं होगा,उससे ध्यान हट ही जाएगा...धीरे-धीरे।

shikha varshney ने कहा…

भावपूर्ण रचना.

Ayaz ahmad ने कहा…

बहुत बड़ा सवाल है यह .

nanditta ने कहा…

komal bhaav liye sundae rachana

ek najar mere blaag men

आशा बिष्ट ने कहा…

अद्भुत

बेनामी ने कहा…

sundar bhavon se saji shandar post

दिगम्बर नासवा ने कहा…

पीड़ा अपने तक ही रहे तो अच्छा है ... अन्यथा कभी कभी मजाक बन जाती है ... भावपूर्ण रचना ...

सदा ने कहा…

बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

कल 18/04/2012 को आपके इस ब्‍लॉग को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.

आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


... सपना अपने घर का ...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

उस पीड़ा की वेदना जीकर एक स्त्री स्वयं कविता सी बन जाती है .... लिखी हुई , पढ़ पाना न पढ़ पाना तो संयोग है

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

वाह!
बहुत सुन्दर!

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

शायद इसीलिए भगवान ने आँसू बनाये हैं !
बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति !
आभार !

रविकर ने कहा…

चरफर चर्चा चल रही, मचता मंच धमाल |
बढ़िया प्रस्तुति आपकी, करती यहाँ कमाल ||

बुधवारीय चर्चा-मंच
charchamanch.blogspot.com

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

bahut khoob ......vandana jee marmik abhiwyakti....

Asha Joglekar ने कहा…

पीडा ही है जो हमारे अंदर सृजन की शक्ती जगाती है ।
बहुत मार्मिक ।

Rachana ने कहा…

komal bhavon se saji kavita badhai
rachana

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

पीड़ा का हल पाना सरल है।
जिससे हमें प्यार होता है, उसके लिए हम जितनी पीड़ा उठाते हैं उतना ही सुख मिलता है।
तब पीड़ा पीड़ा नहीं रहती। पीड़ा सुख का कारण बन जाता है।
लड़की अपना मायका छोड़कर ससुराल जाती है, पीड़ा उठाती है। पति का प्यार मिले तो उसे फिर यह पीड़ा किंचित भी पीड़ा नहीं लगती।

लोगों के साथ हमारे रिश्ते बदलते रहते हैं।
मालिक के साथ हमारा रिश्ता स्थायी है।
उस एक मालिक से प्रेम कीजिए।
स्थायी प्रेम आपको पीड़ा से स्थायी मुक्ति देगा।

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

कुछ मेरे अपने मन की सी बात ...... गहरी अभिव्यक्ति...

M VERMA ने कहा…

पीड़ा को मूर्त रूप देने की जद्दोजहद
बहुत सुन्दर

pran sharma ने कहा…

SAHAJ BHASHA MEIN BHAAV KEE SUNDAR
ABHIVYAKTI .

Ramakant Singh ने कहा…

there is no comfort in the pain.
nice post with deep feelings.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर अद्भुत अभिव्यक्ति की बेहतरीन रचना लिखी, वंदना जी,...

MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...

Unknown ने कहा…

umda rachna ...........

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

पीड़ा का मूर्त रूप हो ही नहीं सकता ... वह तो बस महसूस करने की होती है ... तीस भी उठेगी ... पन्ने भी भीगेंगे ....पर दिखेगी नहीं ...

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

बहुत ही खूबसूरत कविता |

Anupama Tripathi ने कहा…

बहुत गहन भाव ....
सुंदर रचना ....वंदना जी ....
शुभकामनायें ...!!

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बेहतरीन


सादर

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

जो बहता है, वह बहने दो।

vijay kumar sappatti ने कहा…

peeda hi jeevan ko naya roop deti hai vandana . har srujankarta ek nayi peeda se gujarta hia. aapne bahut accha likha . badhayi .

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना....

मनोज कुमार ने कहा…

कविता अभिधेयात्मक एवं व्यंजनात्मक शक्तियों को लिए हुए है।
आध्यात्मिक राह के पथिक की पुकार ...

vikram7 ने कहा…

पीड़ा का ना जाने
ये कैसा मुझसे नाता है
मुझमे ही समाती है
और मुझे ही
ना समझ आती है
फिर हल कहाँ से पाऊँ
निराकार में व्याप्ति है
साकार ना हो पाती है
फिर कैसे पीड़ा को मूर्त रूप दे पाऊँ?
मन के कोमल भावों की सहज अभिव्यक्ति,हुयी है आप की इस कविता में

vikram7 ने कहा…

भावपूर्ण सुन्दर अभिव्यक्ति

Aparajita ने कहा…

Touched my heart....very nice :) :)

sangita ने कहा…

मन के कोमल भावों को मूर्त रूप से बांधने हेतु बधाई ।