ना जाने क्या हुआ है कुछ दिनो से
सारे भाव सुप्त हो गये हैं
जैसे जन्मो के थके हों
और अब लुप्त हो गये हैं
कोई छोर नही दिखता
किसी कोने मे , किसी दराज़ मे
किसी अल्मारी मे
कहीं कोई भाव नही मिलता
जैसे गरीब की झोंपडी
नीलाम हो गयी हो
या शाहजहाँ से किसी नेसारे भाव सुप्त हो गये हैं
जैसे जन्मो के थके हों
और अब लुप्त हो गये हैं
कोई छोर नही दिखता
किसी कोने मे , किसी दराज़ मे
किसी अल्मारी मे
कहीं कोई भाव नही मिलता
जैसे गरीब की झोंपडी
नीलाम हो गयी हो
कोहिनूर छीन लिया हो
या मुमताज़ की खूबसूरती पर
कोई दाग लग गया हो
देखा है किसी ने ऐसा
भावों का अकाल
जहाँ सिर्फ दूर दूर तक
सूखा पड़ा हो
हर संवेदना बंजर जमीन सी
फट चुकी हो
और किसी भी बारिश से
जहाँ की मिटटी ना भीजती हो
फिर कौन से बीज कोई डाले
जब मिटटी ही अपनी
उर्वरा शक्ति खो चुकी हो
कहीं देखा है किसी ने
ऐसा भावो का भीषण अकाल
कुछ मिट्टियों को किसी खास
उर्वरक की जरूरत होती है
आखिर दर्द ही तो संवेदनाओं
और भावों की उर्वरा शक्ति है
लगता है एक बार फिर
दर्द का सैलाब लाना होगा
मृत संवेदनाओं को पुनर्जीवित करने के लिए
42 टिप्पणियां:
कभी-कभी ऐसा लगना स्वाभाविक है। यह सच भी है। जब जीवन पूरे साम्य के साथ चल रहा हो। तो पड़ जाता है...भावों का अकाल, संवेदनाओं का सूखा। हमें तमाम सुख घेर लेते हैं। तो हमें खुरदुरी जमीन की बड़ी याद आती है। जहां तकलीफ और दर्द की पगडंडियों से गुजरते हुए...मन का स्पंदन बना रहता है। स्वागत है।
अंतिम पंक्तियाँ निश्चित रूप से आशा का संचार करती हैं ..! लेकिन यह भी सच है की संवेदनाएं कभी मृत नहीं होती ...बस समय और स्थिति का प्रभाव इन पर पड़ता है ..!
कभी सब कुछ थम सा जाता है.
बेहतरीन प्रस्तुति.
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति ।
बधाई ।
कभी कभी जब मन उदास होता है तो सब कुछ बेगाना सा लगता है ।
अवसाद की मनोस्थिति का सुन्दर वर्णन ।
दर्द का सैलाब लाना होगा
वाह! तब तो सभी डूब जायेंगें उसमें.
फिर कौन उबारेगा,वंदना जी.
भाव धीरे धीरे उमड़ेंगे, समय को समय दीजिये।
SUNDAR BHAVABHIVYAKTI KE LIYE BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA.
बहुत मार्के की बात कही आपने।
होता है जीवन में कभी ऐसा - एक शून्य सा ठहर जाता है लेकिन बहुत देर तक संवेदनाएं जड़ नहीं हो सकती हें. बहुत गहरा सच सिमटा है इस कविता में.
जब भावों का अकाल हो तो दर्द से सींच देने से भाव पुर्जागृत हो उठते हैं। बहुत खूब!
मैं तो न जाने कब से वंचित हूँ भावों से .... :):) अब दर्द का सैलाब भी कहाँ से लाएँ ?
भावों के अकाल पर एक से बढ़कर एक बिम्ब. सुन्दर प्रयोग. कुशल अभिव्यक्ति के लिए बधाई.
और कोशिश जारी है......!!
कभी सुख, कभी दुख,
यही ज़िंदगी है,
ये पतझड़ का मौसम,
घड़ी दो घड़ी है,
नए फूल कल फिर,
डगर में खिलेंगे,
उदासी भरे दिन कभी तो ढलेंगे...
जय हिंद...
jindagi ek khamosh safar hai na kabhi kabhi safar me yese padaav aate hain kuch pal susta kar musafir fir chal deta hai.
बहुत खूब
bahut khoob
Kaise likh patee ho itna sundar?
वाह ...बहुत ही बढि़या।
supt aur lupt hone ke babzood ye haal hai......sochti hoon aane ke baad kya hoga.....
वाह ... भावों के अकाल के लिए दर्द का सैलाब लाना ही होगा ...
लाजवाब रचना ...
बहुत ही सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति....
आएंगे भावों के पंछी फिर से मेरे आँगन में
फैला देखूँ नेह के दाने, फिर से मेरे आँगन में
सादर।
भावों और सम्वेदनाओं के अकाल से साक्षात्कार!!
इस अकाल का प्रभाव आजकल हिंदी ब्लॉग जगत पर भी महसुस होता है। :)
लगता है एक बार फिर दर्द का सैलाब लाना होगा ...
बहुत खूबसूरत रचना वंदना जी ...
वाह..संवेदना को क्या खूब उभारा है..सुंदर रचना!!
सुन्दर भावाव्यक्ति....
दर्द को बुलाने की क्या जरुरत है , किसी और का दर्द ही महसूस कर लेते हैं , अगर सम्वेदनाओं के लिए यह आवशयक है तो ....
बहुत सुन्दर भाव पूर्ण अभिव्यक्ति...
सारे भावों का सुप्त होना एक अद्वितीय स्थिति है जिसके लिए ध्यानियों को भी बड़ी साधना करनी पड़ती है। मगर यह उसके समझ से बाहर होगा जिसे दर्द की तलाश है।
bhawanamayi rachna .
bahut sahi aur sarthak post kabhi kabhi zindgi bojh si lagne lagti hai.
बहुत सुंदर रचना,बेहतरीन प्रस्तुति
MY RESENT POST...काव्यान्जलि... तुम्हारा चेहरा.
कल 28/03/2012 को आपके ब्लॉग की प्रथम पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
... मधुर- मधुर मेरे दीपक जल ...
Kuch aise hi bhav ko liye kai varsh purv maine bhi kuch likha tha ... Mann to hai kavi mera per shabd kai gum ho gaye the ... etc... best of luck .... likhti rahiye ...
ना जाने क्या हुआ है कुछ दिनो से
सारे भाव सुप्त हो गये हैं
जैसे जन्मो के थके हों
और अब लुप्त हो गये हैं
बेहतरीन
बहुत सुन्दर .... दर्द का सैलाब आएगा तो कोशिकाए हिल उठेगी !
वंदना जी , बहुत ही सुंदर रचना ..बधाई
बहुत सुन्दर,संवेदनशील रचना..
सुन्दर,, लाजवाब ,,अभिव्यक्ति....
दर्द का सैलाब तो इर्द गिर्द ही है ..
बहुत उम्दा प्रस्तुति!!
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