कभी कभी दुनिया किसी की कैसे बदल जाती है
इसकी एक दास्ताँ ये अलबेली सुनाती है
यूँ तो उसका इक नाम भी है
अच्छा खासा बड़ा व्यापार भी है
हाई सोसाइटी में ऊंची शान भी है
अपनी एक पहचान भी है
पर कभी कभी किसी मोड़ पर
जब किस्मत पलटी खाती है
तब छम्मकछल्लो कोई जीवन में आती है
जिसके रूप सौंदर्य के आगे सारी अक्ल
घुटनों को छोड़ तलवों से भी बाहर निकल जाती है
और वो सम्मोहन जाल में यूँ फँस जाता है
फिर परकटे पंछी सा फ़डफ़डाता है
पर बाहर ना निकल पाता है
ऐसा ही कुछ उसके साथ हुआ
रूप पर ऐसा निसार हुआ
घर बार छोड़ने को तैयार हुआ
जब देखा पगला गया है
तो शिकार तो होना ही था ......सो हो गया
बिना कुछ जाने बूझे
इस मधुर जाल में खो गया
कुछ साल यूँ ही निकल गए
अब वो काम धंधे में बिजी हुआ
और उस रूपमती का भी कायापलट हुआ
हाई प्रोफाइल सोसाइटी में जाती थी
पर अक्ल के मामले में मात खा जाती थी
बस रूप और पैसे के घमंड पर इतराती थी
अब किट्टी पार्टी हो या खरीदारी
उसका तकिया कलाम इक बन गया था
जब भी शौपिंग करने जाती या
बाजी कोई हार जाती
बस एक ही बात थी दोहराती
"मोहन के बापू का हाथ ज़रा तंग है"
वरना ऐसी चीजों की मेरे यहाँ ना कोई कमी है
कभी कोई भिखारी कुछ मांगता था
तब भी यही वो दोहराती थी
"मोहन के बापू का हाथ ज़रा तंग है"
वरना तुम जैसे भिखारियों की रोज लाइन लगती है
बस चिल्लर ही नहीं मिलती है
किसी संस्था का उद्घाटन हो या भाषण हो
रूपमती का एक ही नारा था
"मोहन के बापू का हाथ ज़रा तंग है"
इस नारे ने प्रसिद्धि बहुत दिला दी थी
पर मोहन के बापू की तो वाट लगा दी थी
बेचारा मोहन का बापू अब होश में आया था
मुझसे तो बेहतर फ़ाक्ता था
जो कबूतर उडाया करता था
यहाँ तो इज्जत का कबूतर हर जगह उड़ता है
पीठ पीछे उसे हर कोई सिर्फ यही कहता है
"मोहन के बापू का हाथ ज़रा तंग है "
इज्ज़त का फालूदा बन गया है
फिर चाहे वो लाखों का दान दे देता है
पर इस तकिये कलाम से ना मुक्ति पाता है
रूप के जाल में फँसा उसका मन पंछी
अब बिलबिलाता है
पर उगल पाता है ना निगल पाता है
सपनों में भी बस यही दिखाई देता है
कानों में भी बस यही सुनाई देता है
"मोहने के बापू का हाथ ज़रा तंग है"
और मोहन का बापू बस
अपने हाथ मलता रहता है
और एक ही घोषणा करता है
"मोहन के बापू " के टैग से
कोई आज़ाद करा दे
मेरी खोयी इज्ज़त कोई लौटा दे
तो उसे मुँह माँगा ईनाम दूँगा
तो दोस्तों कोई उपाय जरूर बतलाना
साँप के मुँह में छछूंदर है
क्या करे ज़रा बतलाना
वरना तो सभी जानते हैं
"मोहन के बापू का हाथ ज़रा तंग है "
देखो तुम ना कहीं कभी ऐसे फँस जाना
रूप के साथ गुणों को भी आँक लेना
वरना तुम्हें भी पड़ेगा ऐसे ही पछताना
और ज़िन्दगी भर यही पड़ेगा दोहराना
जिसके बारे में सभी जानते हैं
"मोहन के बापू का हाथ ज़रा तंग है ":)))))))))))
34 टिप्पणियां:
वाह: बहुत सुन्दर...
:-) pasand aai rachnaa
bahut acchhi rachna...kitni aasani se jeevan kii ek acchhi seekh de di aapne..
किस पर साधा है यह निशाना .... व्यंग में भी सीख देते भाव ... हाथ को इतना खुला मत कीजिये की बाद में तंग होने की दुहाई देनी पड़े ...
Khoob hee kavita likhi hai!
wonderful
साँप के मुँह में छछूंदर है
क्या करे ज़रा बतलाना
वरना तो सभी जानते हैं
"मोहन के बापू का हाथ ज़रा तंग है "... बेचारा मोहन का बापू
संदेशमयी पोस्ट :)
सार-गर्भित, बधाई --
सोनी के मोहन भी चुप हैं ।।
मोहन के बापू हुवे, आज हाथ से तंग ।
मिली नसीहत शुक्रिया, शब्द-भाव से दंग ।
शब्द-भाव से दंग, रखी है गिरवी लाठी ।
करे न सिस्टम भंग, सड़े चरखे संग *माठी ।
है केन्द्रक कमजोर, करें सब मिलकर दोहन ।
धरे हाथ पर हाथ, बैठ सोनी का मोहन ।
*कपास की प्रकार
हा हा हा हा.....आज कुछ अलग ही ढंग हैं :-)
फाक्ता कबूतर उड़ाता था ????????
फ़ाख्ता तो खुद एक पक्षी होता है जहाँ तक मुझे पता है ।
वाह ! ! ! ! ! बहुत खूब सुंदर रचना,
बेहतरीन भाव प्रस्तुति,....
MY RECENT POST ...फुहार....: बस! काम इतना करें....
सही कहा इमरान जी और हमने उसके भी उडवा दिये हैं कबूतर अर्थात बेचारे का कितना बुरा हाल होगा जिसको ऐसी बीवी मिल जाये हा हा हा
किसी पर कोई निशाना नही है संगीता जी बस कल अचानक ये शब्द उतर आये मन मे तो लिख डाले ………हर बार निशाना नही बांधा जाता कुछ हास्य भी ज़िन्दगी मे होना चाहिये बस वो ही निर्मल हास्य है।
वंदना जी मोहन के बापू के माध्यम से बहुत कुछ कह डाला आपने ---------सुन्दर अभिव्यक्ति
एक सद्वाक्य हमारे महापुर्सो ने बतलाया है . सत्त्यम शिवम सुंदरम . जो सत्य है वही शिव है जो शिव है वही सुंदर है. सुंदर वही हो सकता है जिसमे सत्त्यता होगी और शिवात्तव होगा.
इस वर्तमान जीवन में असत्य आकर्षण को सुन्दरता मानते है और जो इस सुन्दरता में फास्ता है उसकी स्थिति ठीक ऐसी ही हो जाती है जैसे मोहन के बापू की हुई है .
आज के बर्तमान परिस्थिति को देखते हुए एक सारगर्भित एवं शिक्षाप्रद कविता .
अच्छा लगा
बहुत खूब।
बहुत सुन्दर सृजन, बधाई.
मेरे ब्लॉग" meri kavitayen" की नयी पोस्ट पर भी पधारने का कष्ट करें.
Waah! Kya likha hai aapne.... Zabardast!
ज़बरदस्त ....सीधे सीधे सही बात समझा दी......
अलग ही रंग की रचना...
सादर।
साधु-साधु
वाह ..बहुत सुन्दर ..
परन्तु 'तारीफ़ करने में हमारा हाथ तंग नहीं है .."....:)))))
kalamdaan.blogspot.in
oh to ye baat thi :-)
वाह ...बहुत खूब ।
हास्य के साथ अच्छी सीख देती रचना... रूप के साथ गुण का होना भी आवश्यक है...
बेहतरीन प्रस्तुति...
बहुत कुछ सिखाती हुई सुंदर कविता।
मोहन के बापू का हाथ जरा तंग है लेकिन मेरा नहीं. बधाई स्वीकारें इस सुंदर प्रस्तुति के लिये.
इस व्यंग की धार के क्या कहने ... बहुत खूब ...
मोहन के बापू का हाथ जरूर तंग होगा, पर आपका हाथ तो तंग नहीं लगा।
बहुत ही कोमल भावनाओं में रची-बसी खूबसूरत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।
char din ki chandni fir andheri rat roop char din ka hota hai gun hi kaam aate hain bahut achchi prerna deti hui post.der se hi sahi padhi par durast padhi.
mphan ke bapu ke dwara bahut kuchh kah diya aapne, ham jaise kunwaro ke liye achchhi seekh hai. shukriya
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