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गुरुवार, 22 मार्च 2012

फिर लाशों का तर्पण कौन करे ?



यहाँ ज़िन्दा कौन है
ना आशा ना विमला
ना लता ना हया
देखा है कभी
चलती फिरती लाशों का शहर
इस शहर के दरो दीवार तो होते हैं
मगर कोई छत नहीं होती
तो घर कैसे और कहाँ बने
सिर्फ लाशों की
खरीद फरोख्त होती है
जहाँ लाशों से ही
सम्भोग होता है
और खुद को वो
मर्द समझता है जो शायद
सबसे बड़ा नामर्द होता है
ज़िन्दा ना शरीर होता है
ना आत्मा और ना ज़मीर
रोज़ अपनी लाश को
खुद कंधे पर ढोकर
बिस्तर की सलवटें
बनाई जाती हैं
मगर लाशें कब बोली हैं
चिता में जलना ही
उनकी नियति होती है
कुछ लाशें उम्र भर होम होती हैं
मगर राख़ नहीं
देखा है कभी
लाशों को लाशों पर रोते
यहाँ तो लाशों को
मुखाग्नि भी नहीं दी जाती
फिर लाशों का तर्पण कौन करे ? 

28 टिप्‍पणियां:

India Darpan ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
इंडिया दर्पण की ओर से शुभकामनाएँ।

India Darpan ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
इंडिया दर्पण की ओर से शुभकामनाएँ।

Noopur ने कहा…

Kuch sawalo ka koi jawab nai hota...... :(

mridula pradhan ने कहा…

behad marmikta liye hue....dil ko chooti hai.....

रविकर ने कहा…

वीभत्स चेहरे ||

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

वीभत्स स्थिति का सटीक वर्णन ... छोटी छोटी बच्चियाँ भी लाश बना दी जाती हैं ...

Rajesh Kumari ने कहा…

vicharniye man ko uddvelit karti hui rachna.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मार्मिक चित्रण

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

अनावृत सत्य... झकझोरती रचना...
सादर.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

रचना में मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया है आपने!

Rachana ने कहा…

bahut dard bhara hai parandu sach yahi hai .
rachana

रचना ने कहा…

what a poem vandana
says every thing
please repost it on naari kavita blog
let it come into mass circulation

great work great expression

it touched my soul

संगीता पुरी ने कहा…

सटीक अभिव्‍यक्ति !!

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

marmsparshi

PRAN SHARMA ने कहा…

ACHCHHEE RACHNA KE LIYE AAPKO BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA .

Dr Xitija Singh ने कहा…

aaj itne samaye baad aayi hoon .. aur dekh rahi hoon ki aapki rachna mein aur bhi gehrai aur dard hai ... behtareen prastuti ..

मनोज कुमार ने कहा…

कुछ आध्यात्मिक एंगल से इसे देखने की कोशिश की।
चित्र नायाब है।

Dr Varsha Singh ने कहा…

सार्थक पोस्ट ..!
नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएँ|

संध्या शर्मा ने कहा…

मार्मिक चित्रण...

***Punam*** ने कहा…

sachchaayi khuli aankhon se aisi hi dkhayi deti hai...!
log aurat ki is sthiti ka andaaza hi nahin laga sakte...!
sundar chitran...lekin vibhats....!!

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत जबरदस्त!!

sangita ने कहा…

satik rachna par man ki atarvyatha tees koi samajhta nahin .marmik jhakjho diya aapki post men.aabhar.

बेनामी ने कहा…

उफ्फ्फ....................मार्मिक, बेहतरीन.........हैट्स ऑफ इसके लिए।

अति Random ने कहा…

ये ऐसा लाशें हैं जो एक दूसरे को लाश बनने का संबल दे रही हैं लगातार
काश बंद हो इनका ये खोखला नारीवादी प्रशिक्षण
और नामर्दों की दुनिया में निरी औरत बनने के ख्वाब और संस्कारों को तिलांजलि दे सकें ये लाशें....

Onkar ने कहा…

bahut prabhavshali abhivyakti

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

no words to say bahut achchi abhiwyakti.....mere blog pr aapke darshan kb honge?///

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

लाश को प्रतीक के रूप में प्रयोग कर आपने जि़ंदगी की एक बड़ी सच्चाई को अनावृत्त किया है।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मार्मिक चित्रण ... जब पूरा शहर ही लाश बन गया है तो सच में तर्पण करने कौन आएगा ...