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बुधवार, 14 मार्च 2012

देखें कब आस की पगडण्डी ख़त्म होती है ...............




सुनो ........
हाँ ...........
क्यूँ इतनी उदास हो तुम आज?
.......................
क्या आज फिर?
.........................
कुछ तो कहो ना
........................
देखो तुम्हारा मौन
मुझे झुलसाता है
कुछ तो कहो ना

क्या कहूं?
 
कुछ नहीं है कहने को
बस जीना है
इसलिए जी रही हूँ
किसके लिए ?
ये भी पता नहीं

फिर आज इतनी उदासी क्यूँ?
 
आज फिर कौन सी
शाख टूटी है सपनो की

छोड़ो , क्या करोगे जानकर 

जब तक जान है इस लाश में
इसे तो ढोना ही होगा ना

लगता है आज कहीं फिर से
 
आसमां रोया है
कोई चक्रवात
जरूर आया है
तभी आशियाँ उजाड़
नज़र आता है
ये बिखरे खामोश  मंज़र
अपनी कहानी खुद
बयां कर रहे हैं
अच्छा बताओ
क्या मैं तुम्हारा नहीं ?
क्या तुम मुझसे भी
अपना दर्द नहीं कह सकतीं
क्या अभी तक मैंने
वो जगह नहीं पायी
तुम्हारे दिल के मंदिर में
जहाँ एक प्रतिमा स्थापित
होती है
बोलो ना ..................

तुम परेशान मत हो 

कोई बात नहीं
ज़िन्दगी कब किसकी हुई है
जिसे मैंने चाहा
वो मेरा ना बना
और जिसने मुझे चाहा
मैं उसकी ना बन सकी
शायद यही ज़िन्दगी का
दस्तूर है
यही चाहत की परिणति है
जिसे हम चाहते हैं
वो मिलता नहीं और
जो मिलता है उसे
चाह पाते नहीं
पता नहीं क्यूँ
उसी पर सब कुछ
कुर्बान करना चाहते हैं
और उसी से प्रेम का
प्रतिकार चाहते हैं
जिसमे चाहत होती ही नहीं

शायद यही मोहब्बत की
 
जंग होती है
जहाँ मोहब्बत बेमुकाम होती है
सभी अपनी अपनी
चाहतों के साथ
जीते हैं और मरते हैं
मैं जानती हूँ

तुम्हारी चाहत को
तुम्हारे जूनून को
मगर क्या करूँ
जिससे चाहती हूँ
चाहत का हासिल
वहाँ तो सिर्फ बुझे
चराग मूँह चिढाते हैं
और तुम .........जानती हूँ
मेरी हर ख्वाहिश को
ज़िन्दगी बना लोगे
मुझसे पहले मुझे जान लोगे
मगर क्या करूँ
इस दिल का
ये कहीं और ठौर पाता ही नहीं
जिद पर अड़ा है
रूह की मीन
प्यासी है
जलती है तड़पती है
पर ???????????????

फिर भी वहीँ 
जा जाकर 
उसी आँच से 
लिपटती है 
जो मेरा वजूद ही
मिटाती है 
देखा 
कितनी मजबूर हूँ
और तुम भी
कोई भी किसी का
दुःख नहीं पी सकता 
तुम तो शायद मेरे
दर्द को जी भी लोगे
मगर मैं ...........
मैं कौन सी चिता जलाऊँ 
जिसमे अपना अक्स मिटाऊँ 


बस करो ...........
इतना दर्द क्यूँ सहती हो
मुझे दे दो .............




अपने अपने दर्द खुद ही पीने पड़ते हैं 
जैसे तुम जानकर हलाहल पी रहे हो
जानते हो ......मैं तुम्हें नहीं चाह सकूंगी कभी
फिर भी कोशिश कर रहे हो
बस ऐसे ही ..........तुम्हारी तरह
मैं भी अपने शिव का हलाहल 
पी  रही हूँ और शायद 
जी रही हूँ..........बिना किसी आस के 
देखें कब आस की पगडण्डी ख़त्म होती है ...............

37 टिप्‍पणियां:

Aruna Kapoor ने कहा…

प्रेमी और प्रेमिका की विरह वेदना....सुन्दर वार्तालाप...मन को छू गया!

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

क्या कहूँ...
भावों की सशक्त अभिव्यक्ति का आशीर्वाद आपको मिला हुआ है..
बहुत सुन्दर.

सादर.

सदा ने कहा…

अनुपम भाव संयोजन लिए उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति ।

kshama ने कहा…

Zindagee kee haqeeqat bayaan kar dee yahan tumne!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

नाकाम मुहब्बत की पीड़ा को बाखूबी उतारा शब्दों में ...
गज़ब की दर्द भरी नज़्म है ...

संजय भास्‍कर ने कहा…

ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत बढ़िया प्रस्तुति,मन की गहराइयों से निकली भावपूर्ण सुंदर रचना,...

RESENT POST...काव्यान्जलि ...: तब मधुशाला हम जाते है,...

Shanti Garg ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
इंडिया दर्पण की ओर से शुभकामनाएँ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

चाहतें मुकम्मल नहीं होतीं ... प्रवाहमयी रचना ...

रचना ने कहा…

poetically you carved a poetic justice

रविकर ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति ।।

Jeevan Pushp ने कहा…

बहुत कोमल भावपूर्ण प्रस्तुति !
आभार !

jadibutishop ने कहा…

sunder rachna ....
http://jadibutishop.blogspot.com

PRIYANKA RATHORE ने कहा…

bahut khoobsurat ahsas....

***Punam*** ने कहा…

गम का फ़साना तेरा भी है......
मेरा भी.....!!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अन्तहीन राहें हैं ये..

RITU BANSAL ने कहा…

मन को स्पर्श करती धाराएं ..

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी पोस्ट कल 15/3/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
http://charchamanch.blogspot.com
चर्चा मंच-819:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत बढ़िया प्रस्तुति,भावपूर्ण,सशक्त सुंदर रचना,...वंदना जी बधाई

RESENT POST...काव्यान्जलि ...: तब मधुशाला हम जाते है,...

बेनामी ने कहा…

उफ्फ्फ्फफ्फ़.........बहुत ज़बरदस्त है.......बहुत मुश्किल है किसी को समझ पाना......बहुत ही शनदार है ये पोस्ट..........हैट्स ऑफ इसके लिए।

Sumit Pratap Singh ने कहा…

क्या कहूँ?

डा श्याम गुप्त ने कहा…

अन्तर्निहित ये अनबुझ आहें,
प्रीति-राह की अबूझ चाहें ।
भला कौन सुलझा पाया है-
पर इस पर सब चलना चाहें ॥

Kailash Sharma ने कहा…

अंतर्मन की पीड़ा की बहुत मर्मस्पर्शी और भावमयी अभिव्यक्ति...

Maheshwari kaneri ने कहा…

सशक्त और सुन्दर रचना..वंदनाजी बहुत-बहुत बधाई..

Noopur ने कहा…

apki is blogpost ne mera dil jeet liya....ultimate....!!!! :)

Rajput ने कहा…

रूह की मीन प्यासी है ..
जलती है तडपती है .

बेबसी में लिपटी हुई खुबसूरत रचना

PK SHARMA ने कहा…

aap to mere boring blog pr aati nhi , mgr main aapki drd bhri dastaan zarur padhta hoon.......aur mn se ek hi aawaz pata hoon..


waaahhhhhhhhhhh
is dard me bhi kuch baat hai gupta ji.....

PK SHARMA

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

नाकाम मुहब्बत का सुंदर चित्र.

dinesh gautam ने कहा…

बहुत भीगे हुए मन के साथ लिखी हुई एक रचना। पढकर लगा कि इस नम रेत के भीतर वेदना की स्रोतस्विनी बहती है। अपने तो लिखा है ‘‘कोई भी किसी का दुख पी नहीं सकता’’ यह सच है। पर दुख साझा तो किया ही जा सकता है। सुंदर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति।

वाणी गीत ने कहा…

चाहतें बनी ही रहती हैं सतत ,पूरी हो न हो तब भी !
भावमय प्रवाह !

संध्या शर्मा ने कहा…

दर्द और पीड़ा को शब्दों से सजीव कर दिया है आपने... क्या कहूँ शब्द कम हैं तारीफ के लिए... आभार...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

धूप छाँव का यह खेल चलता जाता है

Satish Saxena ने कहा…

सोंचने को मजबूर करती है यह रचना ....
शुभकामनायें !

PRAN SHARMA ने कहा…

BHAAVON AUR SHABDON KE PARAWAAH KE ANOOTHEPAN KE LIYE AAPKO
BADHAAEE .

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत जबरदस्त भाव उकेरे हैं...

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

पगडंडी का बिम्ब लेकर सुंदर सृजन.

mridula pradhan ने कहा…

sashakt.....anupam....