मेरी उबलती ख़ामोशी के तहखानों में
दरकते ख्वाबों के पैबंद
अब कहानी नहीं कहते
नहीं मिलता कोई सिपहसलार
नहीं होता कोई नया किरदार
रेशम की फंफूंद जमी काइयों पर
गुलाब नहीं उगा करते
किनारों पर ही अलाव जलते हैं
दहकते खौलते कडाहों में आहत
रूहों पर कुण्डियाँ नहीं लगतीं
कोई सांकल होती जो नहीं
फिर गिरह की उलझी गांठों में
अवसाद के ढेर लगाते संगमरमरी
पत्थरों पर पैर रखते ही छाले
यूँ ही ना फूट पड़ते .............
होते हैं कुछ कारण अपनी चिता को आग लगाने के भी
और खामोश चिताओं के ठन्डे शोलों में छुपे
राज़ बहुत गहरे होते हैं .................
फिर उम्र भर चाहे कितना ही सर्द रहे मौसम ..........
26 टिप्पणियां:
बेहतरीन भाव पूर्ण सार्थक रचना, शुभकामनाएँ।
अपनी चिता को आग लगाने के भी कुछ कारण होते हैं।
एक बहुत बड़ी सच्चाई है यह।
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
दरकते ख्वाब और उबलती खामोशी ...बहुत कुछ कह गयी ... अच्छी प्रस्तुति
होते हैं कुछ कारण अपनी चिता को आग लगाने के भी
और खामोश चिताओं के ठन्डे शोलों में छुपे
राज़ बहुत गहरे होते हैं .................
फिर उम्र भर चाहे कितना ही सर्द रहे मौसम ......
behad bhavapoorn rachana abhivyakti...
क्या एहसास उकेरे हैं शब्दों में
बहुत कुछ अपने पीछे छिपाए... गंभीर रचना...
सादर.
बहुत सुंदर सार्थक रचना, बेहतरीन भाव पुर्ण प्रस्तुति.......
MY RESENT POST ...काव्यान्जलि ...:बसंती रंग छा गया,...
खामोश चिताओं के ठन्डे शोले में छिपे राज बहुत गहरे होते हैं ...
ज़र्द ख़ामोशी बेजुबान तस्वीरें बहुत बोलती हैं !
बेहतरीन !
गहरी ... आक्रोश की अभिव्यक्ति है जैसे ... कुछ है जो जैसे फंसा हुवा है अंदर ...
सही है --
क्या क्या दफनाया गया
कब क्या जलाया गया -
कोई न जान पाए
दिल में दफनाते गए, खले-गले घटनीय ।
उथल-पुथल हद से बढ़ी, स्वाहा सब अग्नीय ।।
दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com
behad bhawpoorn.....
वाह जी बहुत सुंदर
आपकी एक पुरानी रचना याद आई...शायद अभी कुछ दिनों पहले लिखी!!!!
बहुत भावपूर्ण...
सादर.
Wah! kya likhtee ho!
उबलती ख़ामोशी और खामोश चिताओं के ठन्डे शोलों में छुपे गहरे राज़ बहुत कुछ कह गए... गंभीर रचना
बहुत ही बढि़या प्रस्तुति ।
पीड़ा की गहन , मार्मिक अभिव्यक्ति..
बहुत ही सुन्दर रचना..
bahut hi sundar aur shandar post.
आत्महंता कारणों को कोई कारण भी तो हो..
बहुत सी वजहें होती हैं ...स्वयं को मारने की ....बहुतसे हादसे होते हैं...वजूद मिटाने के लिए.....मर्मस्पर्शी रचना!.
मार्मिक उम्दा अभिव्यक्ति!!
उर्मिला की पीडा को आपने बखूबी चित्रित किया है । सुंदर रचनी ।
वंदना जी नमस्कार...
आपके ब्लॉग 'जिंदगी एक खमोश सफर' से कविता भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 23 अगस्त को 'होते हैं कु छ कारण अपनी चिता को आग लगाने के भी...' शीर्षक के कविता को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaksarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव
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