लो फिर दिन ढल गया
शाम हो गयी
मगर बता है ए दिल
आज कौन सी बात
खास हो गयी
क्या दिन अपने वक्त
पर नही ढला
या सांझ ने आने से
मना किया
या भोर ने रूप बदल लिया
बता ना
आज तुझे क्या हुआ
जो दिल ढलने का
तुझ पर असर हुआ
लगता है
कोई बिछडा रकीब तुझे मिल गया
जो दिन ढलने का तुझे गम हुआ
या शायद
कोई आंसू कहीं उलझ गया
जो आँख की किरकिरी बन गया
बता ना
आज मौसम कैसे बदल गया
लगता है
सांझ की चौखट पर पाला पड गया
तभी तू भी इतना बिखर गया
जानता है ना
पाला पडी फ़सलो मे फ़ूल नही उगा करते ……………
शाम हो गयी
मगर बता है ए दिल
आज कौन सी बात
खास हो गयी
क्या दिन अपने वक्त
पर नही ढला
या सांझ ने आने से
मना किया
या भोर ने रूप बदल लिया
बता ना
आज तुझे क्या हुआ
जो दिल ढलने का
तुझ पर असर हुआ
लगता है
कोई बिछडा रकीब तुझे मिल गया
जो दिन ढलने का तुझे गम हुआ
या शायद
कोई आंसू कहीं उलझ गया
जो आँख की किरकिरी बन गया
बता ना
आज मौसम कैसे बदल गया
लगता है
सांझ की चौखट पर पाला पड गया
तभी तू भी इतना बिखर गया
जानता है ना
पाला पडी फ़सलो मे फ़ूल नही उगा करते ……………
23 टिप्पणियां:
अब आप सर्दी खत्म होने पर पाला ले आई हैं ... गर्माहट महसूस कीजिये ... चारों ओर फूल खिले दिखेंगे :):) गहन अभिव्यक्ति ... मनोदशा को वर्णित करती हुई रचना
अच्छी अभिव्यक्ति ।।
वाह!
सच्चाई को आइना दिखाती खूबसूरत रचना!
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति ,इस सुंदर रचना के लिए वंदना जी बधाई,...
NEW POST ...फुहार....: फागुन लहराया...
खाद पानी मिलता रहे तो --नामुमकिन भी नहीं :)
या शायद ...(नहीं,यकीनन)... कोई आंसू(ही)कहीं उलझ गया ...
जो आँख की किरकिरी बन गया....
गर्मी आते-आते पाला मारे जारहा....
आपकी रचना रोचक होती है.... !!
अंकुरण की प्रतीक्षा है...
Phir ekbaar tumne kamaal kar dikhaya! Wah!
जीवन कभी कभी ऐसे ही मोड़ ले लेता है..
ठीक कहा है..'पाला पड़ी हुई फसल पे फूल नहीं खिला करते..'
bat bahut sahi aur gahari kahi hai lekin us soch kar badalne kee to soch sakate hain.
kya andaz hai......wah.
बहुत ख़ास है आपकी अभिव्यक्ति..
kya kahun main.... shabd hi nahi mil rahe...behtareen kahun ya adbhut... ye samjh nahi aa raha... bas itna hi kah paaunga ki kash shabdon ko itne jaaduyi dhang se pirone kee kala mujh mein bhi hoti...
फिर से उपजाऊ किया जा सकता है उसे :)
बढ़िया रचना.
बिछड़ा प्रेमी भी दिन के ढलने का इंतज़ार करता है ताकि पीड़ा को अधिक शिद्दत से महसूस किया जा सके.
सच जीवन में कभी कभी जब मन की उलझन गहराती है तो फिर तुषारापात से कम नहीं होती....
बहुत बढ़िया रचना ..
सुबह होती है शाम होती है
उम्र युहीं तमाम होती है ......
जड़ता में गति ढूँढने का प्रयास अनवरत चलता रहता है ....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
जब दिल लिखता है तो फ़िर जाने क्या और कितना सच लिख जाता है । फ़ागुन का स्वागत करिए ...और हां ..लिखती रहिए । हम पढ रहे हैं
सुन्दर भाव .
इस रचना में छुपी एक ऐसी पीड़ा है जो मन को छूती है।
पाला पड़ी फसलों में फूल नहीं उगा करते ...
वाह !
मन को छू गई !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
आभार !
एक टिप्पणी भेजें