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मंगलवार, 22 नवंबर 2011

दर्द रोज कहाँ पिघलता है


आज आँसू की कलम बनाई है
दिल में कोई गमी छाई है
शायद मोहब्बत की कोई कली
कहीं फिर किसी ने चटकाई है
तभी तो दिल में इक हूक उठ आई है
पर वो पन्ना नहीं मिल रहा
जिस पर लिख सकती इबारत
बिन स्याही की कलम

लिखेगी भी तो क्या और कहाँ
शायद तभी पन्ने भी लापता हैं
आखिर दर्द की स्याही भी तो सूख चुकी है
सिर्फ़ कुछ सूखी पपडियाँ ही बची हैं
अब कितना ही भिगोना चाहो
दर्द रोज कहाँ पिघलता है
दर्द की पपडियों मे भी तो ज़ख्म पलते है
ये किसी ने ना जाना………

35 टिप्‍पणियां:

Prakash Jain ने कहा…

Dard ka anutha sabdankan...sundar

www.poeticprakash.com

Deepak Shukla ने कहा…

Hi..

Jindgi ke ye sang chalta hai..
Dard na roz hi pighalta hai..

Sundar bhav..

Deepak..

Unknown ने कहा…

सुन्दर रचना

Amrita Tanmay ने कहा…

सही कहा , दर्द बहुत जमा होने के बाद ही पिघलता है. सुन्दर रचना.

Kailash Sharma ने कहा…

दर्द रोज कहाँ पिघलता है
दर्द की पपडियों मे भी तो ज़ख्म पलते है

....अद्भुत...बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति..

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आखिर दर्द की स्याही भी तो सूख चुकी है
सिर्फ़ कुछ सूखी पपडियाँ ही बची हैं

दर्द की इन्तिहाँ को कहती पंक्तियाँ ..

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

sunder rachanaa hai

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

सचमुच दर्द कहाँ रोज पिघलता है...!!!

शिद्दत से अभिव्यक्त हुए हैं भाव...
सादर बधाई....

बेनामी ने कहा…

बहुत सुन्दर वंदना जी.......आंसूओ की कलम.....आप भी कमाल हो क्या बिम्ब प्रस्तुत किया है...........फुर्सत में हमारे ब्लॉग पर भी आयें (अब तो आपको बुलाना पड़ता है )

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

दर्द तो गाँठ बनकर रह जाता है।

Human ने कहा…

बहुत अच्छी रचना ।
भावों को बहुत अच्छे तरह से व्यक्त किया है आपने ।

प्रस्तुत कहानी पर अपनी महत्त्वपूर्ण प्रतिक्रिया से अवगत कराएँ ।

भावना

Human ने कहा…

जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएं !

प्रस्तुत कहानी पर अपनी महत्त्वपूर्ण प्रतिक्रिया से अवगत कराएँ ।

भावना

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

बहुत बढ़िया कविता...

ashokjairath's diary ने कहा…

अच्छा लगा ,,, धन्यवाद

shikha varshney ने कहा…

सही कहा है दर्द इतनी आसानी से कहाँ पिघलता है.

सदा ने कहा…

दर्द रोज कहां पिघलता है ... वाह ...बहुत खूब लिखा है आपने ।

***Punam*** ने कहा…

जब आंसू की कलम बनती है
तो न मिलती है स्याही...
और न लिखने को पन्ने ही मिलते हैं !
बस ज़ज्बात दिल से निकलते है
और दिल पर ही लिखे जाते हैं....!!

कुमार राधारमण ने कहा…

जब बाहर प्रेम न मिले,तो अपने पर भी विचार करना चाहिए।

विभूति" ने कहा…

bhaut hi acchi marmik rachna...

M VERMA ने कहा…

दर्द रोज कहाँ पिघलता है
दर्द की पपडियों मे भी तो ज़ख्म पलते है

बहुत दर्द है .. इन पंक्तियों में

harendra rawat ने कहा…

bahut sundar dil ko chune vaali kavita hai .

डॉ टी एस दराल ने कहा…

दर्द भरी रचना भी आप बढ़िया लिख लेती हैं ।
सुन्दर ।

Shah Nawaz ने कहा…

Dard se bhari ek behtreen rachna...

PK SHARMA ने कहा…

Wahhhhhhhh, Vandna ji kya baat hai

mridula pradhan ने कहा…

aansoo ki kalam....kya soch hai.....lajabab.

रश्मि शर्मा ने कहा…

दर्द कहाँ रोज पिघलता है...!!! वाह...;

Sunil Kumar ने कहा…

दर्द रोज कहाँ पिघलता है
दर्द की पपडियों मे भी तो ज़ख्म पलते है
दिल को छू लेने वाली रचना आभार

सागर ने कहा…

bhaut hi marmik aur bhaavpurn rachna....

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

Behtreen Kavita hai rachi hai Vandana ji.... Abhar

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

यादो से भरी बेहतरीन दर्द भरी सुंदर रचना.बधाई
मेरे नए पोस्ट पर आइये आपका इन्तजार है,...

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत गहन दर्द है जो इस रचना में अभिव्यक्त हुआ है।

गुड्डोदादी ने कहा…

आँसू की स्याही से तेरी ही तस्वीर बनाई है
कैसे सहूँ वियोग तेरा यह तो लंबी जुदाई है

रविकर ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||

बधाई ||

dcgpthravikar.blogspot.com

Ritesh Sinha ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना है...

Aparajita ने कहा…

Very Nice
Sach hai, dard roz kahaan pighalta hai
par fir bhi hmesha hamare sath rehta hai
:(