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गुरुवार, 24 नवंबर 2011

काश मैं वसीयत कर पाती..........


काश मैं वसीयत कर पाती
कभी सोचा ही नहीं इस तरफ
आज सोचती हूँ तो लगता है
किस किस चीज की वसीयत करूँ
कौन सा सामान मेरा है
और बैठ गयी जमा घटा का हिसाब रखने
सबसे पहले तो बात की जाती है
धन दौलत की
और मैं सोच रही थी
कौन सी दौलत किसके नाम करूँ
रुपया पैसा तो मेरे पास नहीं
और ये कभी मैंने कमाया भी नहीं
और कमाती तो भी उसे क्या सहेजना
तो कौन सी दौलत किसके नाम करूँ
क्या अपने विचारों की दौलत
की भी कभी वसीयत की जाती है भला
और ये तो गली गली में पड़े मिलते हैं
वैसे भी जब आज इनका कोई मोल नहीं
तो इनकी वसीयत करने से क्या फायदा
कौन सहेजना चाहेगा
तो फिर कौन सी वस्तु है जिसकी
वसीयत की जा सकती है
आज ना कोई संस्कारों की खेती करता है
ना करना चाहता है
आउट डेटिड चीजों का कब मोल रहा है
तो क्या अपने लेखन की वसीयत करूँ
मगर क्यों और किसके नाम
ये भी तो हर जगह कचरे सा पड़ा दिखता है
इसका कहाँ कोई मोल लगाता है
फिर क्या है मेरे पास जिसकी वसीयत करूँ
मेरा दिल उसके भाव ही बचे
मगर उसे किसके नाम करूँ
बार बार हर तरफ देखा
उसे भी जो पास होकर दूर है और
उसे भी जो दूर होकर भी पास है
मगर फिर भी
बीच में एक गहरा आकाश है
वैसे भी आकाश को कब
किसने छुआ है
किसने उसको मापा है
जो आज मैं उस आकाश
पर एक सितारा अपने नाम का जडूँ
सारा हिसाब लगा लिया
हर गुना भाग कर लिया
जमा और घटा करके
सिर्फ सिफ़र ही हाथ लगा
और यही निष्कर्ष निकला
हर इन्सान की किस्मत
इतनी बुलंद नही होती 

कि वसीयत कर पाए
और फिर जहाँ सिर्फ
सिफ़र बचा हो वहाँ
शून्यों की वसीयतें नहीं की जातीं…………

35 टिप्‍पणियां:

Nirantar ने कहा…

bahut achhee tarah se samjhaayaa aapne ,vaakai sab shuny hai
badhaayee

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब ... शून्य की वसीयत नहीं की जाती ... पर जीवन एक शून्य ही तो है ... जैसे पृथ्वी भी एक शून्य है ...

कुमार पलाश ने कहा…

अन्यथा नहीं लीजियेगा.....विम्ब तो ठीक है किन्तु कविता सपाट हो गई है...

आर्यावर्त डेस्क ने कहा…

बढ़िया
आर्यावर्त
http://www.liveaaryaavart.com/

कुमार राधारमण ने कहा…

मुझे वह विज्ञापन याद आ रहा है जिसमें छत से टपकी एक बूंद वसीयत की रकम के पहले ही डिजिट पर आ गिरती है..........
वसीयत की चिंता उत्तराधिकारी करते हैं,कर्ता नहीं।

बेनामी ने कहा…

शुन्य की वसीयत एक गुरु अपने परम शिष्य को ही कर सकता है शायद.........सुन्दर रचना|

रविकर ने कहा…

पाठक गण परनाम, सुन्दर प्रस्तुति बांचिये ||
घूमो सुबहो-शाम, उत्तम चर्चा मंच पर ||

शुक्रवारीय चर्चा-मंच ||

charchamanch.blogspot.com

Unknown ने कहा…

एक बेहतरीन काव्य , अधोपांत पढ़ा मन नहीं भरा फिर पढ़ा साधुवाद

केवल राम ने कहा…

विचारणीय .....!

संध्या सिंह ने कहा…

बहुत सुंदर रचना एक प्रश्न छोडती हुई

Ankur Jain ने कहा…

खूबसूरत रचना....

संध्या शर्मा ने कहा…

सोच रही हूँ सही कहा है आपने हर इन्सान की किस्मत इतनी बुलंद नहीं होती की वसीयत कर पाये...

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

वाह आदरणीय वंदना जी...
बहुत खूब सहेजा है आपने भावों को...
सुन्दर रचना...

वैसे (एक अलग परिप्रेक्ष्य में) भारत ने शून्य की अमूल्य वसीयत दुनिया को दी जिस पर वैश्विक अर्थव्यवस्था आधारित है....:))

सादर....

shikha varshney ने कहा…

वाह वाह वाह ...क्या भाव हैं क्या उकेरे हैं शब्द..बहुत ही बढ़िया.यूँ भावों की वसीयत करने की जरुरत नहीं वे अपने आप ही हक के तौर पर ट्रान्सफर हो जायेंगे :)

Amrita Tanmay ने कहा…

रचना सार्थक है . बहुत सुंदर ..

Unknown ने कहा…

यह तो सच है...कि वसीहत करने के लायक कुछ है नहीं और विचारों कि होती नहीं ,तो हम-आप
श्रद्धा,विश्वास और स्नेह कि वसीहत करे जो अमिट और अचल है.....जो हमारे पास भरपूर है......

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत गहरे भाव..

kshama ने कहा…

Shonnyon kee waseeyaten nahee kee jaateen...!Kitnee badee baat kah dee!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

वंदना जी,
वसीयत उसको की जाती है
जो उसकी कद्र करे चाहे अपने
विचार हो या लेखनी,...अच्छी पोस्ट,

PK SHARMA ने कहा…

aapke liye to bus ek hi shabd niklta hai ,
wahhhhhhhhhhhhhh

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

bahut acchi rachana hai...

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

amma yaar itna udas hone ki kya baat hai ?????? ham bhi vaseeyat ka hak rakhte hain. ham apni vaseeyat apni dairies ko kar jayesge...ha.ha.ha.

hamari dairy ka ek ek prisht hamari vaseeyat bayaan karega....aur ek waqt to aisa aayega...jab hamare bacchhe hamare mukaam par pahunchege...aur hamari dairy ki kami mehsoos hogi tab vo hamari vasiyat padhenge...aur hamari aatma sukoon payenge.

मनोज कुमार ने कहा…

हर गुना भाग कर लिया पर सिफ़र ही हाथ लगा ... बहुत खूब!!

***Punam*** ने कहा…

आपकी रचना सोचने को विवश करती है...कि क्या है हमारे पास??

कुछ भी तो नहीं......!!

PRAN SHARMA ने कहा…

ACHCHHEE VICHARPRADHAN KAVITA KE
LIYE AAPKO BADHAEE AUR SHUBH KAMNA.

अनुपमा पाठक ने कहा…

दिल के अमूल्य भावों का मूल्य समझने वाले उसे अवश्य संजो लेंगे, बिना किसी वसीयत के...

www.navincchaturvedi.blogspot.com ने कहा…

वसीयत को ले कर बहुत सुंदर कल्पना और उस से भी बेहतर उस का शब्दांकन।

सदा ने कहा…

वाह ....बहुत खूब ..बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

राजेश उत्‍साही ने कहा…

जब वसीयत करें तो हमें याद रखें। कुछ तो होगा ही हमारे लिए भी आपके पास।

Pallavi saxena ने कहा…

विचारणीय प्रस्तुति ....

Crazy Codes ने कहा…

Vandana ji... vasiyat jab v banaye mujhe apne shabdon aur khayaalon ka uttradhikari bana dijiyega... the nice on as usual...

Shah Nawaz ने कहा…

Gehri Samvednaen prakat ki hai aapne... Behtreen likha hai...

mridula pradhan ने कहा…

bahut suruchipoorn tareeke se likhi hai.......

विशाल ने कहा…

बहुत सुन्दर.
शून्य की वसीयत नहीं होती.

Onkar ने कहा…

सच, यहाँ अपना कुछ भी नहीं है