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मंगलवार, 1 नवंबर 2011

क्या जरूरी है हर बार त्याग राम ही करे............300

सर्वस्व समर्पण किया था तुम्हें
सात फेरों के सात वचनों के साथ
सात जन्म के लिए 
बांध ली थी तुम संग जीवन डोर
उम्र की सीढियां चढ़ती रही
रोज एक नयी आग सुलगती रही
अपना प्रेम अपना विश्वास अपना वजूद
सब तुम पर ही लाकर ठहरा दिया था
और तुम्हारे लिए
मेरा वजूद क्या था
या क्या है
बस यही ना जान पाई
सिर्फ तन का ही संगम हुआ
जीवन भागीरथी में
कभी मतभेद बढे 
तो कभी चाहतें परवान चढ़ीं
कभी तुम्हारे फरेब ने 
आत्मा को कचोट दिया
कभी तुम्हारे झूठ ने 
मुझे छलनी किया
फिर भी सात जन्मों के बँधन 
की हर रस्म निभाती रही
कभी मन से तो कभी तन से
और था भी क्या मेरे पास
सिवाय मन और तन के
मगर तुम्हारे अहम् ने
हर जगह मुझे प्रताड़ित किया
फिर भी ना उफ़ किया
लेकिन नहीं पता था 
तुम अपने अहम् को 
पोषित करने के लिए
हर सीमारेखा लाँघ जाओगे
जिसमे मेरे वजूद को भी
ढहा जाओगे 
मेरे स्वाभिमान की लाश पर
अपने नपुंसक अहम् की 
दीवार खडी कर जाओगे
एक सीमा होती है ना
सागर की भी 
उसमे भी सुनामियां आती हैं 
जब समवायी हद से बाहर हो जाये
और लगता है शायद
अब वो वक्त आ गया है
आखिर कब तक  तुम्हारे 
तुच्छ अहम् की खातिर 
खुद की आहुति देती
एक ही चीज  तो मेरी अपनी थी
मेरा स्वाभिमान..................
और तुमने उसे भी रौंद  दिया
सिर्फ गैरों की खातिर
और अपने अहम् के पोषण के लिए
असत्य संभाषण का सहारा लिया
कहो कब तक और क्यों 
तुम्हारी ही खातिर जीती रहूँ
और बेइज्जती के कडवे घूँट पीती रहूँ
इसलिए आज एक निर्णय ले ही लिया
वरना शायद खुद की नज़रों में गिरकर
जीना आसान नहीं होता
मैंने तुम्हें रस्मो रिवास के 
हर बँधन से मुक्त किया
अब ना तुम से
तन का रिश्ता रहा ना मन का
लो मैंने पानी पर दीवार बना दी है
इस पार मेरा जहान
उस पार तुम्हारा
एक छत के नीचे रहते हुए भी
जो दिखाई नहीं देतीं
वो अदृश्य दीवारें बहुत मजबूत होती हैं
हाँ मैंने आज तुम्हें तन और मन से त्याग दिया है
क्या जरूरी है हर बार त्याग राम ही करे
लो आज सीता ने तुम्हारा त्याग किया ................

42 टिप्‍पणियां:

सदा ने कहा…

बहुत ही गहन भावों का समावेश ...बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

आशा बिष्ट ने कहा…

saskat abhivyakyti...woh adrishya deewaren bahut majboot hoti hai.....ekdam sahi baat..

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

लो आज सीता ने
तुम्हारा त्याग किया ................

परुष के अहम् को चोट पहुंचाती रचना .. नारी के स्वाभिमान को बचाने में सक्षम रही है ..

अच्छी प्रस्तुति

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत ही गहन भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

चिन्तन का नयापन।

ZEAL ने कहा…

Great Satire Vandana ji , Beautifully written..

mridula pradhan ने कहा…

uthal-puthal machati behad nazuk kavita.....

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

दो वर्षों से लगभग आपको नियमित तौर पर पढ़ रहा हूं.. आपकी कविता के बढ़ते आयाम का साक्षी हूं.. आज कि कविता एक अलग भाव की कविता है... शुभकामनाएं !

रचना ने कहा…

kyaa baat haen

yae hi haen aaj ki samay ki maang

aur kyaa kavita ban gayee haen ki auro ko bhi padhvaane kaa man ho rahaa haen

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत ही गहन भावो और सुन्दर विचारो से सजा सशक्त अभिव्यक्ति...

बेनामी ने कहा…

बहुत सुन्दर भावों से भरी पोस्ट.......पसंद आई|
फुर्सत मिले तो हमारे ब्लॉग 'जज़्बात' पर भी नज़र डालें |

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत मर्मस्पर्शी...गहन भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति...

संध्या शर्मा ने कहा…

क्या जरूरी है हर बार त्याग राम ही करे
लो आज सीता ने तुम्हारा त्याग किया ................
आखिर कब तक देती आहुति अपने स्वाभिमान की .....गहन भावों का समावेश ...

shikha varshney ने कहा…

क्या बात है ...व्रावो....सीता को अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए खुद ही कदम उठाना होगा.

रचना दीक्षित ने कहा…

क्या जरूरी है हर बार त्याग राम ही करे
लो आज सीता ने तुम्हारा त्याग किया.

स्त्रियों की व्यथा को खूबसूरती से कविता में उतारा है. बधाई.

Sunil Kumar ने कहा…

कई अर्थों को समेटे हुए एक अच्छी रचना बधाई

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

एक छत के नीचे रहते हुए भी ,
जो दिखाई नहीं देती
वो अदृश्य दीवारें
बहुत मजबूत होती है...
बहुत ही गंभीर भावों की
अभिव्यक्ति.... !!

रचना दीक्षित ने कहा…

गंभीर विषय, गहरी बातें, सोचने को मजबूर करतीं.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
छठपूजा की शुभकामनाएँ!

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

dard chhalkati, nari ki halat ka saty darshati samvedansheel rachna.

kshama ने कहा…

Zabardast!

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

excellent.

***Punam*** ने कहा…

लगता है कि पूरी रचना मेरे ज़ज्बातों पर ही लिख दी है आपने....!!
कोई कैसे इस तरह कि भावनाओं को इतनी खूबसूरती से पिरो सकता है...!!
इंसान अपना स्वाभिमान बचा ले जाए तो उसका आत्मविश्वास भी वापस आ जाता है और एक नई जिन्दगी...एक तरह से पुनर्जन्म हो जाता है उसका..! बस मन को उसकी सीमा के बाहर ले जा कर मजबूत करना होता है...!
फिर राम और सीता,कृष्ण और राधा... सब यहीं मिल जाते हैं !!
कभी अपने आस-पास...
कभी अपने आप में भी....!!

मनोज कुमार ने कहा…

तीन सौंवें पोस्ट की बधाई।
एक अलग सोच से लिखी कविता में नारी मन की पीड़ा की अभिव्यक्ति बहुत ही स्पष्ट है।

POOJA... ने कहा…

satya, sateek aur sashakt...
bahut aroori hai ab ki seeta bhi tyaag kare raam ka aur ahsaas dilae ki un saare zakhmo ko sahna kitna mushkil hota hai jo "tyajit" ko hote hai...

Shah Nawaz ने कहा…

Bahut se bhaavo ko samete hue ek behtreen rachna... Badhai...

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

गहन ,नूतन और अर्थपूर्ण चिंतन वंदनाजी ......

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बेहतरीन कविता।
300 वीं पोस्ट के लिए हार्दिक बधाई।

सादर

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

नारी वेदना की मार्मिक प्रस्तुति ............क्रन्तिकारी रचना

S.N SHUKLA ने कहा…

बहुत खूब, बधाई.

वसुन्धरा पाण्डेय ने कहा…

गजब की रचना ...मन में फुलझड़ियाँ भी खिली इस बात पर की क्या जरुरी है हर बार राम ही त्याग करे सीता का.....लो इस बार सीता ने त्याग किया .....इस पंक्ति से बहुत ठंढक मिली वंदना जी ....अद्वितीय रचना !!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

नयी सोच के साथ लिखी कमाल की रचना ... गहन भाव लिए ...

Prakash Jain ने कहा…

behtareen....

bemishaal vyang...

Adhbhut Rachna........

PRAN SHARMA ने कहा…

EK MUDDAT KE BAAD NAYE AAYAAM
STHAAPIT KARTEE KAVITA PADHNE KO
MILEE HAI . KAVITA KEE ANTIM PANKTIYAN SAALON SAAL DIL-O-DIMAAG
MEIN GOONJTEE RAHENGEE .

वाणी गीत ने कहा…

अहम को तोडा जाए मगर स्वाभिमान बरकरार रहे, इस परिप्रेक्ष्य में स्त्री ता द्वारा परित्याग किया जाना इतना नहीं अखरता ...
300वी पोस्ट की बहुत बधाई!

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच-687:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

Human ने कहा…

bhaawpoorna shabdon ko kalambadhh kia hai,achhi prastuti.

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

सशक्त अभिव्यक्ति...३००वीं पोस्ट की बधाई|

palash ने कहा…

आज के पुरुष् वादी सोच पर करारा प्रहार करती है आपकी रचना.....

daanish ने कहा…

स्वाभिमान के अहसास से जुड़ी हुई
अद्भुत रचना ....

कुमार राधारमण ने कहा…

खेद है,पसंद नहीं आई।

प्रेम सरोवर ने कहा…

आपके पोस्ट पर आना बहुत ही अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।