ढूंढती हूँ मानस का मोती
शायद कहीं मिल जाए
जो छूट गया है आँगन में
फिर से मुझे मिल जाये
इक नदी सी मुझमे बहती थी
अठखेलियाँ लेती थी
दिन रात की कशमकश में
कोई अधूरी सुबह मिल जाये
अमराइयों की छांह तले
कहीं कोई शाम मिल जाये
जो मुझे मुझसे मिला जाये
और पीर सारी ले जाए
उर की धधकती ज्वाला में
ना स्नेह का कोई गीत जगा
बरसों तलाशा है जिसको ,वो
कहीं ना मन का मीत मिला
जिस्म की आग में पिघलते
सारे लोह खण्ड ही मिले
वक्त के तंदूर में जलते
रूह के भग्नावशेष मिले
पर मन के दरिया में बहता
कोई ना ऐसा गीत मिला
जो मानस का मोती बन पाता
मुझे जीने का सबब दे पाता
शायद कहीं मिल जाए
जो छूट गया है आँगन में
फिर से मुझे मिल जाये
इक नदी सी मुझमे बहती थी
अठखेलियाँ लेती थी
दिन रात की कशमकश में
कोई अधूरी सुबह मिल जाये
अमराइयों की छांह तले
कहीं कोई शाम मिल जाये
जो मुझे मुझसे मिला जाये
और पीर सारी ले जाए
उर की धधकती ज्वाला में
ना स्नेह का कोई गीत जगा
बरसों तलाशा है जिसको ,वो
कहीं ना मन का मीत मिला
जिस्म की आग में पिघलते
सारे लोह खण्ड ही मिले
वक्त के तंदूर में जलते
रूह के भग्नावशेष मिले
पर मन के दरिया में बहता
कोई ना ऐसा गीत मिला
जो मानस का मोती बन पाता
मुझे जीने का सबब दे पाता
30 टिप्पणियां:
सही लिखा है आपने
जिस्म की आग में पिघलते
सारे लोह खण्ड ही मिले
वक्त के तंदूर में जलते
रूह के भग्नावशेष मिले
तो अद्भुत है
जिस्म की आग में पिघलते
सारे लोह खण्ड ही मिले
वक्त के तंदूर में जलते
रूह के भग्नावशेष मिले
पर मन के दरिया में बहता
कोई ना ऐसा गीत मिला
जो मानस का मोती बन पाता
मन की छटपटाहट को कहती भावपूर्ण अभिव्यक्ति
bahut badiya likha aapne
jeene ka sabab aaj hindi blogging hain hum sab lekhoin ke liye. aapki kavitaai dhar tej ho rahi hai. shubh kavya kamneyen.
जिस्म की आग में पिघलते
सारे लोह खण्ड ही मिले
वक्त के तंदूर में जलते
रूह के भग्नावशेष मिले
भावमय करते शब्द इन पंक्तियों के ..।
अच्छा लगा पढ़ना .... लगा खुद को ही पढ़ रही हूँ ....
बहुत ही बढ़िया लिखा है
जिस्म की आग में पिघलते
सारे लोह खण्ड ही मिले
वक्त के तंदूर में जलते
रूह के भग्नावशेष मिले ...
बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..अंतस की वेदना बहुत गहराई तक उतर आयी है...उत्कृष्ट प्रस्तुति..आभार
वाह वाह वाह...कितना प्रवाह पूर्ण. बहुत ही अच्छा लगा पढ़ना.
बहुत सुन्दर शब्द संयोजन.
Bahut achchha likhati hai...
bahut bhawuk vandna ji
आपकी यह मार्मिक और उत्कृष्ट प्रविष्टी कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी है!
जिस्म की आग में पिघलते
सारे लोह खण्ड ही मिले
वक्त के तंदूर में जलते
रूह के भग्नावशेष मिले ..बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
उसी की खोज में हम भी हैं।
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति
अमराइयों की छांह तले
कहीं कोई शाम मिल जाये
जो मुझे मुझसे मिला जाये
और पीर सारी ले जाए...
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! लाजवाब और भावपूर्ण रचना!
सुन्दर पंक्तिया , भावमय करती कविता बधाई
वंदना जी बेहतरीन अंदाज़
इसी कल कि बगीची कि चर्चा मैं शामिल किया गया है
जिस्म की आग में पिघलते
सारे लोह खण्ड ही मिले
वक्त के तंदूर में जलते
रूह के भग्नावशेष मिले
पर मन के दरिया में बहता
कोई ना ऐसा गीत मिला
जो मानस का मोती बन पाता.
वन्दना जी,
आपकी बेहतरीन कविता ने ये मशहूर शेर याद दिला दिया........
ये इश्क नहीं आसां,बस इतना समझ लीजै,
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है।
आग के दरिया में डूब के जाना हर किसी के वश में नहीं....संवेदना से भरी इस मार्मिक रचना की बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद!
प्रवाह पूर्ण सुंदर द्रचना।
bhavpooran abhivyakti
ढूंढती हूँ मानस का मोती ....
बेहतरीन रचना .... संवेदनशील भाव
bahut prabhavit hui aapki kavita se.....
जिस्म की आग में पिघलते
सारे लोह खण्ड ही मिले
वक्त के तंदूर में जलते
रूह के भग्नावशेष मिले
पर मन के दरिया में बहता
कोई ना ऐसा गीत मिला
जो मानस का मोती बन पाता
मुझे जीने का सबब दे पाता
sundar prastuti vandana ji
कोई अधूरी सुबह मिल जाए...वाह वंदना जी ...नूतन अभिव्यक्ति ।
बहुत ही अच्छी कविता...
आभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
hamesha ki tarah ..bemisal...
बहुत ही सुन्दर लिखा है वंदना जी...
बहुत सुन्दर.....बरसों तलाशा है जिसको कहीं न मन का वो मीत मिला......शानदार |
अमराइयों की छांह तले
कहीं कोई शाम मिल जाये
जो मुझे मुझसे मिला जाये
और पीर सारी ले जाए
यह पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं.
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कल 21/06/2011को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की गयी है-
आपके विचारों का स्वागत है .
धन्यवाद
नयी-पुरानी हलचल
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