मैंने कहा था ना
जो नकाब डला है
डाले रहने दो
मत करो बेनकाब
एक बार यदि
बेनकाब हो जाये
फिर कितनी सदायें भेजो
कितने ही सितारे
आसमा में टांको
कितना भी अब
दुल्हन को सजाओ
कोई भी चूनर उढाओ
एक बार बेनकाब होने पर
अक्स सच बोल देता है
और फिर ये तो
एक रिश्ता था
तुम्हारा और मेरा
अन्जाना रिश्ता
कहा था ना
मिलने की ख्वाहिश को
ज़मींदोज़ कर दो
मगर तुम नहीं माने
और देखा
जब से मिले हो
सारे भ्रम टूट गए
और तुम जो मुझमे
अपना अक्स देखते थे
वो आईने भी टूट गया
जानती हूँ तभी
तुमने अब मेरी
मिटटी पर अपने
निशाँ छोड़ने बंद कर दिए
जानती हूँ तभी तुमने
अपने आसमाँ अलग बना लिए
काश ! तुमने पर्दा ना हटाया होता
तो चाँद घूंघट में ही रहा होता
यूँ बेबसी की आग में ना जल रहा होता
सच की आँच में झुलसा ना होता
और तेरा पैमाना ना छलका होता
जीने के लिए किवाड़ की ओट ही काफी होती है
जो नकाब डला है
डाले रहने दो
मत करो बेनकाब
एक बार यदि
बेनकाब हो जाये
फिर कितनी सदायें भेजो
कितने ही सितारे
आसमा में टांको
कितना भी अब
दुल्हन को सजाओ
कोई भी चूनर उढाओ
एक बार बेनकाब होने पर
अक्स सच बोल देता है
और फिर ये तो
एक रिश्ता था
तुम्हारा और मेरा
अन्जाना रिश्ता
कहा था ना
मिलने की ख्वाहिश को
ज़मींदोज़ कर दो
मगर तुम नहीं माने
और देखा
जब से मिले हो
सारे भ्रम टूट गए
और तुम जो मुझमे
अपना अक्स देखते थे
वो आईने भी टूट गया
जानती हूँ तभी
तुमने अब मेरी
मिटटी पर अपने
निशाँ छोड़ने बंद कर दिए
जानती हूँ तभी तुमने
अपने आसमाँ अलग बना लिए
काश ! तुमने पर्दा ना हटाया होता
तो चाँद घूंघट में ही रहा होता
यूँ बेबसी की आग में ना जल रहा होता
सच की आँच में झुलसा ना होता
और तेरा पैमाना ना छलका होता
जीने के लिए किवाड़ की ओट ही काफी होती है
38 टिप्पणियां:
और तुम जो मुझमे
अपना अक्स देखते थे
वो आईने भी टूट गया
जानती हूँ तभी
तुमने अब मेरी
मिटटी पर अपने
निशाँ छोड़ने बंद कर दिए
मार्मिक अभिव्यक्ति ... प्रवाहमयी रचना
खूबसूरत रचना...
हंसी के फव्वारे
हर बार एक नया विचार कौधता हैं शब्द आ जातें हैं और एक सृष्टि हो जाती है,
(कितने ही सितारे
आसमा में टांको
कितना भी अब
दुल्हन को सजाओ
कोई भी चूनर उढाओ
एक बार बेनकाब होने पर
अक्स सच बोल देता है)
वन्दना जी के ये शब्द दिल को कहीं गहराई तक लग से जातें हैं एक नश्तर की तरह.... और काव्य की पूर्ण सौंदर्य और पूर्णता की परिणति होती है.
सच है कभी कभी परदा रहना ही अच्छा होता है ... सच सामने आ जाए तो उत्सुकता ख़त्म हो जाती है ....
बहुत सुंदर प्रसतुति !!
मैंने कहा था ना
जो नकाब डला है
डाले रहने दो
मत करो बेनकाब
एक बार यदि
बेनकाब हो जाये
..आपकी इस खूबी को सलाम है शब्दों में गहराई उंडेल देती है आप .....बहुत खूब
मैंने कहा था ना
जो नकाब डला है
डाले रहने दो
मत करो बेनकाब
एक बार यदि
बेनकाब हो जाये
..आपकी इस खूबी को सलाम है शब्दों में गहराई उंडेल देती है आप .....बहुत खूब
kabhi kabhi parda na uthe to hi behtar .
marmik abhivyakti.
nisandeh lekhan kafi paripakv hua hai aapka.
prbhavi rachna.
काश ! तुमने पर्दा ना हटाया होता
तो चाँद घूंघट में ही रहा होता
ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं.
------------------------------------------------
आपका स्वागत है "नयी पुरानी हलचल" पर...यहाँ आपके ब्लॉग की किसी पोस्ट की कल रविवार को होगी हलचल...
नयी-पुरानी हलचल
धन्यवाद!
कहा था ना
मिलने की ख्वाहिश को
ज़मींदोज़ कर दो
मगर तुम नहीं माने
और देखा
जब से मिले हो
सारे भ्रम टूट गए
और तुम जो मुझमे
अपना अक्स देखते थे
वो आईने भी टूट गया....
बहुत गहरे भाव.... मार्मिक अभिव्यक्ति ... सुन्दर रचना........
man ko choo lene vali marmik abhivyakti .aabhar
खूबसूरत कविता.... कविता में भावों का प्रवाह नदी सा है...
और तुम जो मुझमे
अपना अक्स देखते थे
वो आईने भी टूट गया
जानती हूँ तभी
तुमने अब मेरी
मिटटी पर अपने
निशाँ छोड़ने बंद कर दिए...
ohh...!!!!!
Saleem
9838659380
कुछ तथ्य छिपे ही रहें।
vandna ji bahut accha
shabdoon ko badi acchai se sajayahai aapne
बहुत मार्मिक रचना!
जानती हूँ तभी
तुमने अब मेरी
मिटटी पर अपने
निशाँ छोड़ने बंद कर दिए
जानती हूँ तभी तुमने
अपने आसमाँ अलग बना लिए
क्या बात .....बहुत ही सुंदर सटीक भाव
बहुत खूब....
नकाब के हटते ही न जाने
कौन-कौन से राज़ सामने आ जाते हैं...
बेहतर होता कि नकाब ही रहने देते..
उसके पीछे कुछ राज़ छुपे ही रहने देते..!!
बहुत गहरी बात लिखी है ...!!कभी कभी भुलावे में रहना सुखमय भी है ...!!भरम टूटने पर असहाय सा महसूस होता है ....!!
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...!!
एक बार बेनकाब होने पर
अक्स सच बोल देता है
और फिर ये तो
एक रिश्ता था
तुम्हारा और मेरा
अन्जाना रिश्ता
बहुत सुंदर !!
कोमल भावनाओं की कविता !!
आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
खास चिट्ठे .. आपके लिए ...
ख्वाव और हकीकत के बीच झुलाती मानवीय सम्वेदनाओं का सुंदर चित्रण किया गया है इस कविता के माध्यम से. खूबसूरत रचना.
जीने के लिए किवाड़ की ओट ही काफी होती है...
सदैव की तरह एक लाज़वाब प्रस्तुति..बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..आभार
खूबसूरत कविता....
और तुम जो मुझमे
अपना अक्स देखते थे
वो आईने भी टूट गया
जानती हूँ तभी
तुमने अब मेरी
मिटटी पर अपने
निशाँ छोड़ने बंद कर दिए....मन मोह लिया… सुन्दर सार्थक अभिव्यक्ति्…..
waah vandna ji ..bahut sundar...
aapki kalam bahut kuchh kah jati hai har baar...
बहुत सुन्दर गहरी भावपूर्ण.. मार्मिक रचना...
कुछ बातों पर नकाब पड़ा रहना ही अच्छा है
मैंने कहा था ना
जो नकाब डला है
डाले रहने दो
kitni gahri baat ....wah.
और तुम जो मुझमे
अपना अक्स देखते थे
वो आईने भी टूट गया
जानती हूँ तभी
तुमने अब मेरी
मिटटी पर अपने
निशाँ छोड़ने बंद कर दिए
क्या बात है,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना! बधाई!
pyari rachna...
bahut acchi rachna
बहुत उम्दा.....
Regards
Suman
http://tum-suman.blogspot.com
मार्मिक अभिव्यक्ति ... सुन्दर रचना........aabhaar
नूर ही नूर है कहाँ का ज़हूर।
उठ गया परदा अब रहा क्या है॥
रहने दे हुस्न का ढका परदा।
वक़्त-बेवक़्त झाँकता क्या है॥
.......................यगाना चंगेज़ी
एक बार बेनकाब होने पर
अक्स सच बोल देता है
जब से मिले हो
सारे भ्रम टूट गए
और तुम जो मुझमे
अपना अक्स देखते थे
वो आईने भी टूट गया
................सत्य और मार्मिक कविता
एक टिप्पणी भेजें