मुझे पता था
जाओगे एक दिन
तुम भी छोड़कर
टूटे हुए मकबरों पर
कौन चराग जलाता है
शायद तभी शाम अब
दिया बाती नहीं करती
जानती है ना कोई नहीं आएगा
बुझे चराग रौशन करने
क्या हुआ जो आज
एक सच और टूट गया
यूँ भी मरे हुए को ही
दुनिया भी मारती है
क्या हुआ जो तुमने भी
ज़ख्मो पर नमक छिड़क दिया
आखिर कब सिसकती
शामों को सुबह मिली है
जाओगे एक दिन
तुम भी छोड़कर
टूटे हुए मकबरों पर
कौन चराग जलाता है
शायद तभी शाम अब
दिया बाती नहीं करती
जानती है ना कोई नहीं आएगा
बुझे चराग रौशन करने
क्या हुआ जो आज
एक सच और टूट गया
यूँ भी मरे हुए को ही
दुनिया भी मारती है
क्या हुआ जो तुमने भी
ज़ख्मो पर नमक छिड़क दिया
आखिर कब सिसकती
शामों को सुबह मिली है
26 टिप्पणियां:
खूबसूरत कविता...एक नहीं दिशा देरही है आपकी कवितायें...प्रेम का एक औ आयाम
bahut acchi rachna...
toote hue makbaron par chiraag kaun jalaata hai....
aapki kavita me roohaniyat hai....acchi hai....
jo khud me behosh ho gaya fir koi nasha use hosh me nahi laa sakta...prem ki gahanta ko darshaati ...rachna ...
यूँ भी मरे हुए को ही
दुनिया भी मारती है
हताशा को दर्शाती अभिव्यक्ति
बहुत खूबसूरत कविता है.
आखिर कब सिसकती
शामों को सुबह मिली है
वाह, बहुत सुन्दर तरीके से आपने दिल के दर्द को शब्द दिए हैं ...
मार्मिक प्रस्तुति .आभार
ओह!
इतनी निराशा भरी रचना!
--
हर रात की तारीक़ी,
लाती है उजाले का पैगाम!
और चक्र चलता रहता है
सुख और दुख का!
विश्वास रखिये, हर सिसकती शाम को सुबह मिलेगी।
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (04.06.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
चर्चाकार:-Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
स्पेशल काव्यमयी चर्चाः-“चाहत” (आरती झा)
एक मार्मिक प्रस्तुति,लेकिन अति सुंदर,धन्यवाद
इतनी निराशा ...कविता अच्छी है वैसे.
बहुत ही अच्छा लिखा है ... ।
दर्द भी वही ज्यादा सताता है जहा चोट पहले से होती है , मार्मिक सच उजागर करती पंक्तियाँ
Loving the creation Vandana ji ...badhaii
टूटे हुए मकबरों पर
कौन चराग जलाता है...
बहुत मार्मिक प्रस्तुति...दर्द अंतर्मन को भिगो देता है..बहुत सुन्दर..आभार
gamon men doobone vali kvita
kitni achchi kavita likhi hai.....wah.
यूँ भी मरे हुए को ही
दुनिया भी मारती है
सच है.... गहन अभिव्यक्ति
बहुत भावपूर्ण....कुछ निराश लगी.
'आखिर कब सिसकती
शामों को सुबह मिली है '
.........वेदना का स्वर बहुत प्रभावी है
मार्मिक अभिव्यक्ति ......
पाठकों की अनुभूतियों के साथ तादात्म्य दर्शाती सुंदर कविता।
मन के दर्द को सुन्दर रुप से उभारा
टूटे मकबरों पे कौन चिराग जलाता है.
बहुत खूबसूरत रचना. जिंदगी के दर्द को समेटे हुए दिल के भाव.
बहुत खूब.
बहुत खूबसूरत.....कितना दर्द भर दिया इन पंक्तियों में......शानदार |
आखिर कब सिसकती
शामों को सुबह मिली है
dard se bhara hua hai daaman ,khoob
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