आ
ख्यालों की गुफ्तगू
तुझे सुनाऊँ
एक वादे की
शाख पर ठहरी
मोहब्बत तुझे दिखाऊँ
हुस्न और इश्क की
बेपनाह मोहब्बत के
नगमे तुझे सुनाऊँ
हुस्न : इश्क , क्या तुमने कल चाँद देखा ?
मैंने उसमें तुम्हें देखा
इश्क : हाँ , कोशिश की
लेकिन मुझे सिर्फ तुम दिखीं
चाँद कहीं नही
हुस्न : आसमान पर लिखी तहरीर देखी
इश्क : नहीं , तेरी तस्वीर देखी
हुस्न : क्या मेरी आवाज़ तुम तक पहुँचती है ?
इश्क : मैं तो सिर्फ तुम्हें ही सुनता हूँ
क्या कोई और भी आवाज़ होती है ?
हुस्न : मिलन संभव नही
इश्क : जुदा कब थे
हुस्न : मैं अमानत किसी और की
तू ख्याल किसी और का
इश्क : या खुदा
तू मोहब्बत कराता क्यूँ है ?
मोहब्बत करा कर
हुस्न-ओ-इश्क को फिर
मिलवाता क्यूँ नही है ?
इश्क के बोलों ने
हुस्न को सिसका दिया
हिमाच्छादित दिल की
बर्फ को भी पिघला दिया
इश्क के बोलो के
दहकते अंगारों पर
तड़पते हुस्न का
जवाब आया
तेरी मेरी मोहब्बत का अंजाम
खुदा भी लिखना भूल गया
वक़्त की दीवार पर
तुझे इश्क और
मुझे हुस्न का
लबादा ओढा गया
हमें वक़्त की
जलती सलीब पर
लटका गया
और शायद इसीलिए
तुझे भी वक़्त की
सलाखों से बाँध दिया
मुझे भी किसी के
शीशमहल का
बुत बना दिया
तेरी मोहब्बत की तपिश
नैनो से मेरे बरसती है
तेरे करुण क्रंदन के
झंझावात में
मर्यादा मेरी तड़पती है
प्रेमसिन्धु की अलंकृत तरंगें
बिछोह की लहर में कसकती हैं
हिमशिखरों से टकराती
अंतर्मन की पीड़ा
प्रतिध्वनित हो जाती है
जब जब तेरे छालों से
लहू रिसता है
देह की खोल में लिपटी
रूहों के यज्ञ की पूर्णाहूति
कब खुदा ने की है ?
हुस्न की समिधा पर
इश्क के घृत की आहुति
कब पूर्णाहूति बन पाई है
फिर कहो, कब और कैसे
मिलन को परिणति
मिल पायेगी
हुस्न - ओ - इश्क
खुदाई फरमान
और बेबसी के
मकडजाल में जकड़े
रूह के फंद से
आज़ाद होने को
तड़फते हैं
इस जनम की
उधार को
अगले जनम में
चुकायेंगे
ऐसा वादा करते हैं
प्रेम के सोमरस को
अगले जनम की
थाती बना
हुस्न और इश्क ने
विदा ले ली
रूह के बंधनों से
आज़ाद हो
अगले जनम की प्रतीक्षा में
मिलन को आतुर पंछी
अनंत में विलीन हो गए
41 टिप्पणियां:
हुस्न : इश्क , क्या तुमने कल चाँद देखा ?
मैंने उसमें तुम्हें देखा
इश्क : हाँ , कोशिश की
लेकिन मुझे सिर्फ तुम दिखीं
चाँद कहीं नही
वाह ये हुस्न ओर इश्क की
जुगलबन्दी तो बढ़िया रही!
.ओह्ह!! आपने तो मुहब्बत की पूरी दास्तान ही लिख दी...हुस्न,इश्क,मिलन,विछोह..सब कुछ...बहुत ही सुन्दर भाव सम्प्रेषण
हुस्न : मिलना संभव नहीं
इश्क: जुदा कब थे
वाह वाह वंदना जी...अब इसके बाद कुछ कहने को रह ही क्या जता है....लाजवाब रचना...
नीरज
मुझे मौन कर दिया आपने....
सच में प्रेम से सराबोर है यह रचना....
तारीफ के काबिल है... पर शब्द नहीं हैं
मीत
हुश्न: मिलन संभव नहीं
इश्क: जुदा कब थे ?
बहुत खूब अनोखा संबाद !
vaah bahut khoosurat bhav...nice poetry
आप की इस कविता में विचार, अभिव्यक्ति शैली-शिल्प और संप्रेषण के अनेक नूतन क्षितिज उद्घाटित हो रहे हैं।
जीवन पर्यंत चलने वाली कहानी हैं प्रेम
कविता बहुत सुन्दर हैं .मैंने तो कविता को दो भागो में बांट कर पढ़ा
विरह वाला भाग दिल को छु गया. क्यों परमात्मा पूर्णाहुति करना भूल जातें हैं?
इश्क की आवाज़ बहुत गहरी होती है .......और बड़ी दिलकश
हुश्न और इसक की गुटरगूं बहुत ही सुन्दर !!!
pahle to aapke blog ka naya roop manbhavan laga ...badhai ...badlav jindagi ka ek achchha pahlu hai ...
aur aaj ki kavita bahut hi khubsurat lagi ..laajavab ...!!!
इश्क-हुस्न के चर्चे हजार यहाँ सुना है
हर किसी को बीमार यहाँ सुना है
संवाद दोनों में अगर हो जाए
तो दोनों का मुहब्बतें इकरार यहाँ सुना है
बहुत बढ़िया रचना ,पढने के बाद मेरे मन से
ये चार पंक्तियाँ ..
प्रेमसिन्धु की अलंकृत तरंगें
बिछोह की लहर में कसकती हैं
हिमशिखरों से टकराती
अंतर्मन की पीड़ा
प्रतिध्वनित हो जाती है
*********
हुस्न की समिधा पर
इश्क के घृत की आहुति
कब पूर्णाहूति बन पाई है
बहुत सुन्दर संवाद हुस्न और इश्क का.......और सम्पूर्ण रचना बस मन में उतरती चली गयी.....
मुहब्बत की जुबां बहुत ही सलीके से बयां की है आप ने
बहुत बहुत आभार
आपने तो कहर ही बरपा कर दिया. कल्पना को शब्दों के सहारे इतनी सुंदर कविता तक पहुंचाना आपके ही बस की बात थी.
अपनी आदत के मुताबिक आज आपको टोक नहीं रहा हूँ, बल्कि आज से टोकना बंद कर रहा हूँ. दुआ करें मैं इस प्रयास में सफल रहूँ.
क्या कहूँ इस सुंदर रचना के लिए? आपने तो निःशब्द कर दिया.... सुंदर लफ़्ज़ों के साथ सुंदर रचना.....
हुस्न और इश्क की पूरी दास्ताँ एक ही कविता में एक जन्म हो गया अब दूसरे जन्म का वादा भी दे डाला बहुत खूब
^जब जब तेरे छालों से
लहू रिश्ता है^
इसमें रिश्ता का प्रयोग गलत है
यहां रिसता होना चाहिए
वर्तनी की गलतियां पोस्ट प्रकाशन से पूर्व पढ़कर दूर कर लेना अच्छा रहता है
क्या संवाद है ....दिल को छूती हुई जाती है रचना..बेहद खुबसूरत.
pawan chandan ji
shukriya galati ki taraf dhyan dilaya vaise meine ye thik kiya tha magar ye google ki hi taraf se problem thi ab dobara dhyan se thik kiya hai.
अभी जब आपकी कविता पढ रहा था तो ना जाने क्यो मन बार बार उद्वेलित हो रहा था, देह और उस देह के रोम रोम से प्रस्फुटित प्रेम की एक दूसरे के प्रति आकान्क्षाओ को रेखान्कित करती हर पन्क्तिया, उन पन्क्तियो के हर शब्द मे मर्यादा की सुसन्सक्रित विवशता, जिस पर केवल हमारा देश गर्व कर सकता है और इस तरह की कवितायो का लेखन इसी धरती से उपजे लोग कर सकते है.
खैर, कविता पढते हुये यह भेद कर पाना नितान्त कठिन था कि आखिर कैसे दोनो को एक दूसरे से अलग कर देखा जाये, देह यदि सागर है तो प्रेम उसकी उमन्गो को अभिव्यक्त करती बलखाती लहरे, देह को यदि जीवन के सन्केत के रूप मे देखे तो पवित्र प्रेम को उसे जीवितता प्रदान करने वाली रूह या आत्मा के रूप मे हमे देखना होगा और दोनो की एक दूसरे के प्रति यही निर्भरता उन्हे अभिन्न बना देती है.
मै इस कविता के मूल भावो और उद्देश्यो से सहमत होते हुये यह नि:सन्कोच कहना चाहून्गा कि देह की पिपासा को शान्त करने की चाह रखने वाला प्रेम ना तो चिर स्थायी होता है और ना ही इसमे वह लोच होती है जो विपरीत परिस्थितियो मे भी एक दूसरे को बान्धे रखने मे समर्थ हो इसलिये प्रेम की देह को पाने की अमर्यादित लालसा से बेहतर अगले जन्म तक की प्रतीक्षा होती है .
husn aur ishq ka samwaad bahut dard,vireh,sachhayi sab kuchh samaite hai...rachna lambi hone k bawjood bhi padhne k liye baandhe rakhti rahi..himshikhoro,himchhadit aur ghrit ka prayog acchha laga.
bahut paripakv lekhan.badhayi.
एक वादे की शाख पर ठहरी मोहब्बत!!!
ओह! आनन्द गया...बेहतरीन संवाद!!!
एक बेहद अलग अंदाज में लिखी गयी कविता.
शुरू से अंत तक बांधे रखने में कामयाब. बधाईयाँ
http"//iyerexpressions.blogspot.com
वन्दना बहुत सुन्दर शब्दों मे प्रेम को परिभाशित किया है। इस लाजवाब रेअचना के लिये बधाई
हुस्न - ओ - इश्क
खुदाई फरमान
और बेबसी के
मकडजाल में जकड़े
रूह के फंद से
आज़ाद होने को
तड़फते हैं
भावों का बेहतरीन तकरीर है ये रचना. लाजवाब और बहुत कुछ बयान करती हुई.
बहुत खूब
वन्दना जी - प्रेम-भाव की अच्छी रचना।
प्यार की बारिश होती रहती
लेकिन प्यास अधूरी है
आग तड़प की दोनों दिल में
मिलना बहुत जरूरी है
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
इश्क -हुस्न के संवाद से सृजित एक स्मरणीय प्रभाव -उम्दा !
हुस्न : मिलना संभव नहीं
इश्क: जुदा कब थे
सत्य और शास्वत - अति सुन्दर
दहकते अंगारों पर
तड़पते हुस्न का
जवाब आया
तेरी मेरी मोहब्बत का अंजाम
खुदा भी लिखना भूल गया
इश्क..मुहब्बत..मिलन..,विछोह
बहुत ही सुन्दर
लाजवाब रचना
★☆★☆★☆★☆★☆★
'श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता
★☆★☆★☆★☆★☆★
क्रियेटिव मंच
सहमत हूँ राकेश से, देह की संवेदना का प्रेम.
भौतिक-रासायनिक क्रिया है, इसे ना समझो प्रेम.
इसे ना समझो प्रेम, मूल्य यह (जीवन का) सम्पूर्ण.
विश्वासों से प्रारम्भ, यह प्रेम पे होता पूर्ण.
कह साधक कवि तीस में मैं अलबेला मत हूँ.
प्रेम नहीं है संवेदन, जीवन से मैं सहमत हूँ.
मज़ा आ गया ...... सीधे दिल में उतार गयी ..... हुस्न और इश्क़ की लाजवाब गुफ्तगू ........
अच्छा है। आपने प्रेम के अहसास के सकारात्मक पहलू को बखूबी देखा है,पर आपकी उम्र तक मै नहीं मन सकता कि यथार्थ का बोध आपमें न हुआ है । कुछ उस पहलू को भी हमसे बांटिए।
मकर संक्रांति की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ!
बहुत ही सुन्दर और लाजवाब रचना !
हुस्न और इश्क़ की लाजवाब गुफ्तगू ........बस कमाल ही कर दिया वंदना जी .....!!
... बेहद संजीदगी से संवारा गया है रचना को,बधाई !!!!!
vandana ji
deri se aane ke liye maafi chahunga ... kuch uljha hua tha ...
kavitya ki kya tareef karun.. nazm itni khoobsurat ban gayi hai ki kuch kahne ke liye shabd nahi bachte ...
sirf ek line : juda kab the ..... aapki kavita ko itna sashakt karti hai ki kuch aur kahne ke liye nahi bachta ...
is kavita me ek prem ke saare diamensions , aapne sammilit kar diye hai ..
nazm bahut hi rochak andaaz me badhtiu hai aur ek udaas note par jakar khatm hoti hai [ ya phir shuru hoti hai ]
aapki lekhni ko salaam ji
aabhar
vijay
Behad shandaar rachna! kamaal hai!
wowwwwwwwwwwwww kya baat hai kitne sache dil se likha hai apne yeh to kuch kuch meri life par darshata hai apne ek kavita mein poore ishq ki zindagi ko byan kar diya....
उत्तम कविता
अब प्यार इसे नहीं तो किसे कहते है ?
शायद सब कुछ ,
सभी रंग , बहुत ही खुबसूरत
धन्यवाद इसके लिए
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