मैंने तो जीना कब का
छोड़ दिया है
एक निर्जीव , स्पन्दनहीन
जीवन जी रही थी
फिर तुम ठहरे हुए
पानी में क्यूँ
उम्मीदों के
कंकड़ फेंकते हो
क्यूँ अपेक्षाओं के
बीज बोते हो
संवेदनाओं के बेल -बूटे
सब सूख चुके हैं
जानते हो , मुझे पता है
तुम कभी
खरे नही उतर पाओगे
मेरे सपने ना कभी
समेट पाओगे
मेरे पंखों को उड़ान
ना दे पाओगे
मुझमें आशा का संचार
ना कभी कर पाओगे
मुझे मेरे तिमिर में
अकेला छोड़ दो
अब नही जीना
आशाओं का दामन थाम
मैं खुश हूँ
अपने आशाविहीन
जीवन के साथ
पथ आलोकित है मेरा
मेरे दृढ निश्चय के साथ
जाओ , तुम भी अपना
पथ आलोकित करना
मुझमें ना अपना
संसार ढूंढना
मैंने तो जीना
कब का छोड़ दिया है
28 टिप्पणियां:
इक नया उत्साह लेकर आ गयी है जिन्दगी।
वन्दना के भाव लेकर भा गई है जिन्दगी।।
जाओ , तुम भी अपना
पथ आलोकित करना
बहुत बढ़िया लगी यह लाइन!
इस नये वर्ष में आप हर्षित रहें,
ख्याति-यश में सदा आप चर्चित रहें।
मन के उपवन में महकें सुगन्धित सुमन,
राष्ट्र के यज्ञ में आप अर्पित रहें।।
मैं खुश हूँ--- मैंने तो जीना कब का छोड़ दिया है---
बहुत खूब....
शायद मन की बात मेरे भी !!!
बहुत ही भावुक कर देने वाली रचना ..आभार.
सुंदर.
वाह, सुन्दर रचना, वाह क्या शब्द चुने है, सुन्दर बात कहने के लिये!
कविता के माध्यम से मानवीय भावनाओ के सैलाब की अति सुन्दरतम क्रती ! अति सुन्दर!
बस आप तो यू ही लिखते रहे हमे आप द्वारा रचित हर रचना अनमोल जान पडत्ती है.
बहुत भावपूर्ण सुन्दर रचना है...बधाई।
बहुत गहरी संवेदनाओ को उजागर करती है यह रचना।
मेरे दृढ निश्चय के साथ
जाओ , तुम भी अपना
पथ आलोकित करना
मुझमें ना अपना
संसार ढूंढना
Jeena chod dene par bhi ye zahir karna ki HA ME KHUSH HU....kitna mushkil hota ha...vo sare bhav dikh rahe ha apki kavita me...ek nirasha se bhari kavi jo sirf padi hi nhi mehsoos bhi ki dekhkar...
shubhkamnaye...
behtareen
मैं खुश हूँ
अपने आशाविहीन
जीवन के साथ
अत्यंत भावुक रचना. अनुभूति और भाव सबल पर इतनी विरक्ति क्यों? (क्षमा करें)
नए साल में हिन्दी ब्लागिंग का परचम बुलंद हो
स्वस्थ २०१० हो
मंगलमय २०१० हो
पर मैं अपना एक एतराज दर्ज कराना चाहती हूँ
सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगर के लिए जो वोटिंग हो रही है ,मैं आपसे पूछना चाहती हूँ की भारतीय लोकतंत्र की तरह ब्लाग्तंत्र की यह पहली प्रक्रिया ही इतनी भ्रष्ट क्यों है ,महिलाओं को ५०%तो छोडिये १०%भी आरक्षण नहीं
पथ आलोकित है मेरा
मेरे दृढ निश्चय के साथ
जाओ ,
वाह वंदना जी सही कहा आप अब अपना मार्ग प्रशस्त करें और निश्चय पर अड़े रहें तो मंजिल दूर नहीं
बधाई
kaun jita hai madam chaurasi lakh stashano me aap aurat wali steshan par ham adami wale steshan par duti kar rahe hai jis din duti khatm yanha se naye steshan ki taiyari
बहुत सुन्दर रचना
बहुत बहुत बधाई .....
हर पतझड के बाद शाखाओ पर नये कोपलो को उगते हुये मैने देखा है, बुझे हुये दीपक मे फिर से एक नयी बाती के साथ उजियारे की एक किरण को हम हर शाम देखा करते है, हर अन्धियारे के बाद स्वर्णिम किरणो को स्वयम मे समेटा हुआ अरुणिम भोर हमे रोज जीने की एक नयी उम्मीद जगा जाता है फिर जीवन से नैराश्य क्यो? चारो ओर अपनी सुगन्धि बिखेरती पता नही किन हवाओ मे विधाता ने हमारे हिस्से की खुशी लिखी हो, इसलिये आशाओ का दामन थाम बस पथ पर चलते रहे चलते रहे अविराम हम सब बिना थके. यही जीवन को खूबसूरत तरीके से जीने की कला है.
खुशिया दुख के बाद और प्रसन्नता गम के बाद जीवन को और आलोकित करती है, गम और दुख के बिना जीवन अर्थहीन है, निस्सार है.
एक स्त्री की व्यथा को नैराश्यपूर्ण ढन्ग से चित्रित करने और ऐसी सुन्दर कविता लिखने के लिये बधाई.
जाओ , तुम भी अपना
पथ आलोकित करना
bahut khoob vandana ji, bahut bebaak aur seedhe shabdon men bhav abhivyakt karna aapka hunar hai.
विलक्षण रचना है ये आपकी...वाह...हर शब्द लाजवाब,....
नीरज
मेरे दृढ निश्चय के साथ
जाओ , तुम भी अपना
पथ आलोकित करना
मुझमें ना अपना
संसार ढूंढना
मैंने तो जीना
कब का छोड़ दिया है
खूबसूरत अभिव्यक्ति....पर इतनी हताशा क्यों? सुन्दर शब्दों को संजोया है ..दिल के जज़्बात उभर कर आए हैं आपकी रचना में.....बधाई
मार्मिकता के साथ भावुक कर देने वाली रचना.... आपकी रचनाओं कि यही ख़ास बात है कि ....बाँध कर रखती है..... और दिल को छू जाती है...
I am Very sorry..... for coming late....
शीर्षक के अनुरूप एक प्रसंशनीय रचना है जो निराशा व अकेलेपन को समेटे हुए है !!!
मैंने तो जीना
कब का छोड़ दिया है ...
किसी के लिए जीना यूँ छोड़ना ठीक नही ....... अपने बहुत अनुपम रचना लिखी है ..... अच्छे भाव हैं ....... देरी से आने के लिए क्षमा ... आपको नव वर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएँ .........
vandana ji bahut badhiya rachna ! man ke sampoorn bhavon ko varnit kar diya hai aapne !
सत्य के करीब ले जाती है आपकी रचना।
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बारिश की वो सोंधी खुश्बू क्या कहती है?
क्या सुरक्षा के लिए इज्जत को तार तार करना जरूरी है?
वंदन है वंदना आपका
लिखती हो तुम अच्छा,
लिखूं आपकी कविता पर क्या?
'शिशु' तो है एक बच्चा.
आपका शुभेक्शु
शिशु
मेरे दृढ निश्चय के साथ
जाओ , तुम भी अपना
पथ आलोकित करना
मुझमें ना अपना
संसार ढूंढना
मैंने तो जीना
कब का छोड़ दिया है
मार्मिक अभिव्यक्ति । मगर किसी के लिये आलोकित पथ की कामना करती शुभकामानाये
इतनी निराशा क्यों ?
वन्दना के भावो के दर्द को तो समझो इस दर्द को जिस तराह आपने प्रस्तुत किया है वह लेखन वास्तव मे सुन्दर हैं
वन्दना के भावो के दर्द को तो समझो इस दर्द को जिस तराह आपने प्रस्तुत किया है वह लेखन वास्तव मे सुन्दर हैं
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