पृष्ठ

अनुमति जरूरी है

मेरी अनुमति के बिना मेरे ब्लोग से कोई भी पोस्ट कहीं ना लगाई जाये और ना ही मेरे नाम और चित्र का प्रयोग किया जाये

my free copyright

MyFreeCopyright.com Registered & Protected

शनिवार, 22 अगस्त 2009

आरजू

चंचल चपल हे मृगनयनी
नयन बाण से बिद्ध ह्रदय लो
अधरामृत का लेप लगाकर
प्रेम को आधार बनाकर
होशो-हवास पर मोहिनी बरसाकर
मुझको अपना श्याम बना लो
महारास की शीतल बेला में
रूप-लावण्य का रंग बिखरे है
पायल की छम-छम छंकारों पर
प्रीत का बादल नृत्य किए है
दास को प्रेम सुधा का पान कराकर
जीवन का अलंकार बनाकर
अपने हृदयांगन का प्रहरी बना लो
चंचल चपल हे मृगनयनी
मुझको अपना दास बना लो

25 टिप्‍पणियां:

श्रीमती अमर भारती ने कहा…

रचना में भाव बहुत बढ़िया संजोए हैं आपने।
पूरी अभिव्यक्ति में ध्वन्यात्मकता देखते ही बनती है।
बधाई!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

ji vandana ji aaj main english roman men comment karta hoon.
aapki rachana men ek anoothapan dekhane ko mila hai.
yadi chandbadh hoti to ise gane men maza aa jata.
fir bhi ye rachana mujhe bahut badhia lagi.
badhai.

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

वंदना जी,आप ने बहुत ही बढ़िया कविता रची है..
धन्यवाद स्वीकारे..

Vinay ने कहा…

आपकी हिन्दी रचना सचमुच बहुत अच्छी है!
---
1. चाँद, बादल और शाम
2. विज्ञान । HASH OUT SCIENCE

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

बहुत सुंदर.

ओम आर्य ने कहा…

बहुत ही सुन्दर ........बधाई

M VERMA ने कहा…

होशो-हवास पर मोहिनी बरसाकर
मुझको अपना श्याम बना लो
क्या भाव है. सशक्त शब्दो के सार्थक प्रयोग से रचना की खूबसूरती बढ गयी है.

kshama ने कहा…

एक खनकती हुई रचना ..पढ़ते हुए लगा ,मानो , एक झंकार -सी सुनायी दे रही हो ..!

राकेश कुमार ने कहा…

एक नायक और नायिका के प्रेम सम्बन्धो को सुन्दर श्रिन्गारिक भाव के साथ रचना करने की आपकी प्रेरणास्पद कोशिश अत्यन्त सुन्दर है.

एक-एक पन्क्ति अपने श्रिन्गार प्रधान भावो के द्वारा जैसे प्रेम सुधा बरसाती प्रतीत होती है,पन्क्तियो के द्वारा उन सुन्दर भावो को आपने छुने की कोशिश की है जो हर प्रेमी अपनी नायिका मे तलाश करता है.

वैसे भी प्रेम के उन विलक्षण क्षणो मे नायक अपनी नायिका के समस्त हाव भाव को प्रक्रिति से तुलना करने की कोशिश करता है और जैसे समूची स्रिष्टि को अपनी नायिका के समीप प्राप्त करने की चेष्टा करता है वह उसी त्रिप्ति का आभास करता है जैसे कोई चकोर वर्षा के प्रथम बून्द से.

वैसे भी हर नायक अपनी नायिका मे उसी राधा के पवित्र प्रेम की तलाश करता है जो आज भी भारतीय समाज मे पूजा के योग्य है और नायिका अपने प्रियतम मे सदैव से ही श्याम के अद्भुत प्यार को पाने की चेष्टा करती है.

बधाई सुन्दर रचना के लिये, इसी तरह और परिष्क्रित कर लिखते रहिये .

सादर

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया कविता..बधाई!

सुशील छौक्कर ने कहा…

वाह सुन्दर भावों की सुन्दर रचना। पसंद आई जी। पर ये वैसी तो नही है। पर अच्छी है।

नीरज गोस्वामी ने कहा…

शब्द चयन ने मन्त्र मुग्ध कर दिया...उत्तम रचना...बधाई...
नीरज

Kaushal Kishore , Kharbhaia , Patna : कौशल किशोर ; खरभैया , तोप , पटना ने कहा…

सुन्दर विम्ब योजना में प्रेम अनुरोध की कविता.शब्द और भावों का संजोयन - मर्मस्पर्शी.

Razia ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

vandana ji , anupam bhavabhivyakti ke saath ek shaandaar rachna, badhai.

vallabh ने कहा…

sundar rachna .. badhai..

समय चक्र ने कहा…

सुन्दर रचना

गणेश उत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामना

Prem Farukhabadi ने कहा…

vandana ji,
paripakv pyar ki paribhasha is se behtar aur kya ho sakti hai.pathak ko rasmay karne mein saksham.aapne anubhutiyon ko bakhoobi piroya hai.
apka ek kaviyatri ke roop mein vyaktitv aur bhi nikhra hai. meri badhai to apko leni hi padegi.

आनन्द वर्धन ओझा ने कहा…

वंदनाजी,
प्रणय-निवेदन के अद्भुत रेशमी रंग दिखे इस रचना में. बधाई !
मेरे ब्लॉग पर आकर आपने 'रास-लीला' पढ़ी, टिपण्णी दी और मेरी ब्लॉगर मित्र बनीं, आभारी हूँ. मैं यात्राओं में था, लौटा तो आपकी टिपण्णी पढ़ी. इन दिनों नॉएडा में रहना हो रहा है, बीच-बीच में पटना जाना पड़ता है--एक पत्रिका के संपादन के सिलसिले में... कुछ बिखरा-बिखरा-सा है जीवन इन दिनों, फिर भी लिखना-पढना तो होगा ही... saabhivadan...

बेनामी ने कहा…

वंदनाजी,
प्रणय-निवेदन के अद्भुत रेशमी रंग दिखे इस रचना में. बधाई !
मेरे ब्लॉग पर आकर आपने 'रास-लीला' पढ़ी, टिपण्णी दी और मेरी ब्लॉगर मित्र बनीं, आभारी हूँ. मैं यात्राओं में था, लौटा तो आपकी टिपण्णी पढ़ी. इन दिनों नॉएडा में रहना हो रहा है, बीच-बीच में पटना जाना पड़ता है--एक पत्रिका के संपादन के सिलसिले में... कुछ बिखरा-बिखरा-सा है जीवन इन दिनों, फिर भी लिखना-पढना तो होगा ही... sabhivadan...

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

Vandana ji,
होशो-हवास पर मोहिनी बरसाकर
मुझको अपना श्याम बना लो
bahut sundar bhav...ekdam chanakata hua...

Neeraj Kumar ने कहा…

बहुत ही मधुर रचना...रोमांटिक और रोमांचित कर देने वाली...

दर्पण साह ने कहा…

kavita ka bhavpax to sabal hai hi...

...kala paksh bhi uttam hai.

yakeen mainyea agar thodi maatraon ki ginti ki jaiye to ye geet ban sakta hai (geyata aa sakti hai)

"महारास की शीतल बेला में
रूप-लावण्य का रंग बिखरे है
पायल की छम-छम छंकारों पर
प्रीत का बादल नृत्य किए है"

chayavaad aur adhunik-yug se prabhavit rachna prabhavit karti hai.

badhai.

Preeti tailor ने कहा…

shringarras ki ek purn kavita ka bhav

दिगम्बर नासवा ने कहा…

पायल की छम-छम छंकारों पर
प्रीत का बादल नृत्य किए है
दास को प्रेम सुधा का पान कराकर
जीवन का अलंकार बनाकर

GEETIKA KAA ROOP HAI AAPKI SUNDAR RACHNA ..... LAY KE SAATH GAAYE JAANE VALI SUNDAR KRITI .....