अलविदा मत कहा करो
किसी के दिल पर क्या गुजरी
ये तुम क्या जानो
तेरे जाने और आने के
बीच का वक्त
कैसे गुजरता है
ये तुम क्या जानो
रोज मिलने को दिल
कितना तड़पता है
ये तुम क्या जानो
बातों की महावर लगाने को
दिल कितना मचलता है
दीदार का काजल लगाने को
नज़रें कितना तरसती हैं
ये तुम क्या जानो
लबों पर अल्फाजों का
तबस्सुम खिलाने को
दिल कितना भटकता है
ये तुम क्या जानो
दिलो की ये दूरी मिटाने को
कुछ पल तेरा साथ पाने को
दिल कितना सुबकता है
ये तुम क्या जानो
तेरे गीतों में ढल जाने को
तेरी काव्य धारा बन जाने को
दिल कितना सिसकता है
ये तुम क्या जानो
इसलिए
कभी अलविदा मत कहा करो
31 टिप्पणियां:
बातों की महावर लगाने को
दिल कितना मचलता है
क्या बिम्ब उभारा है आपने.
अलविदा शब्द ही बहुत आहत करता है. और फिर किसी अज़ीज के द्वारा कहे जाने पर तो --------
कुछ पल दूर रहने के बीच के समय को किस खूबसूरती से शब्दों में पिरोया है आपने। बहुत ही अच्छा लगा पढकर।
bahut hi sundar abhiwyakti
Bahut bahut sunder rachna hai... merii taraf se badhaayee sweekar karein aur yu hi likhtii rahein..
सुंदर लिखा है..अलविदा न कहा करे कोई
सच कहा........... अलविदा एक ऐसा शब्द है जी दिल में कितने अनजाने डरे डरे ख्वाब भर देता है............ लाजवाब रंग में रंग है दिल के भावों को........... अच्छी रचना
Bahut bahut sunder kaqvita hai... yu hi likhtii rahein..”
thanks
आपने अपने मनोभावों इतने अच्छे ढंग से
संजोया है कि मुख से वाह...वाह... ही
निकलता है।
इतही सफाई से हृदय की वेदना को प्रकट
तो बस वन्दना ही कर सकती है।
बधाई।
Apke Khayal ko salam. APke Shabdon ka aroh-abroh jeevan se milta hai. khub likha hai. likhte rahen
बहुत ही बढ़िया अच्छी रचना . आभार.
waah kya gazab ki tadap hai alfazon mein,sidhi dil tak utar gayi,shandar rachana.
मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत सुंदर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लिखी हुई आपकी ये रचना काबिले तारीफ है!
एक सुन्दर विरह गीत की रचना की है आपने, सुन्दर बिम्बो एवम प्रतीको के माध्यम से भावो की अभिव्यक्ति,
तेरे जाने और आने के
बीच का वक्त
कैसे गुजरता है
ये तुम क्या जानो
इसी तरह
बातों की महावर लगाने को
दिल कितना मचलता है
दीदार का काजल लगाने को
नज़रें कितना तरसती हैं
ये तुम क्या जानो
मै अपनी रचनाओ मे हमेशा कहा करता हू कि विरह प्रेम का सौन्दर्य है और आपने इस सौन्दर्य को बडी सुन्दरता से रेखान्कित किया है.
जितना सुन्दर कविता का टाईटल उतनी ही सुन्दर रचना, बधाई आपको.
राकेश
vandana ji , kya kahun .. shabd nahi hai ji ..aapne to bhaavnaao me dubokar is kavita ko janam diya hai...ek ek pankti to bus jaane kya kya kahti chali jaati hai...
nishabd hoon ji
जिस दिन अलविदा हमने कह दिया उस दिन तुम भी तड़प जाओगे ,
ना दीदार होगा हमारा तब लौट के आओगे ....? तब आने से क्या करेंगे हम और तुम ? ना राह होगी ना मंजिल भी ....
http://beshak.blogspot.com
jindagi: jiyo har pal
आप भी कभी हमें 'अलविदा ' न कहना ...आपकाभी हमेशा इंतज़ार रहता है ..!
रचना में इतनी कसक है ,कि , दिल डूब -सा गया ..कुछ लम्हें जो नही भूली ...शिद्दत के साथ याद आ गए ..!
फिर एक बार किसी का बस यूहीँ चले जाना, और लौट के ना आना, याद आ गया...
bahut achcha likha aapne
अलविदा मत कहा करो
किसी के दिल पर क्या गुजरी
ये तुम क्या जानो...khoobsurat kavita...
तेरे गीतों में ढल जाने को
तेरी काव्य धारा बन जाने को
दिल कितना सिसकता है
ये तुम क्या जानो....बहुत ही करीबी एहसास
Vandana ji,
Bahut hi sachchai se virah-vedana ka prakatikaran kiya hai aapne aur bimbon ki aisi rachna ki hai ki anayas hi waah-waah kar utha hriday...shabdon ki ladiyan goonth kar ek mala si bana di
वंदना जी
आपकी कविता में जो अहसास है...और विरह-वेदना को जिस तरह बिम्ब-प्रतिबिम्ब के द्वारा जिस तरह अपने मनोभावों को चित्रित किया है...बहुत ही सुन्दर बन पड़ा है...
यूँ हिन् हमें उच्च-स्तरीय रचना से हर्षित करती रहें...वैसे आप जैसी लेखिका स्वान्त सुखी ही लिखती हैं, जनता हूँ...
बातों की महावर लगाने को
दिल कितना मचलता है
दीदार का काजल लगाने को
नज़रें कितना तरसती हैं
ये तुम क्या जानो
वन्दना लगता है ये हर नारी की व्यथा है उसे जिस्म से अधिक भावनाओं की जरूरत होती है रूह तक उतर जाने की उत्कंठा बातों का महवार और दीदार मे ही उसे सम्पूर्ण रिश्ता दिखाई देता है बहुत सुन्दर कविता विरह वेदना और प्यार अद्भुत संगम बधाई
अलविदा हाँ सच, नहीं कहना चाहिए....
बस वस्ल की जद में रहना चाहिए....!!
अलविदा का मतलब कुछ भी हो सकता है
अलविदा को ही अलविदा कहना चाहिए....!!
bahut umda bhavabhivyakti. badhai.
wao vandan, dil ke armaano ko kitni khoobsurati se abhivyakt kiya h. aapne pyaar ki gahrai ko badi shiddat se prastut kiya h. aur dil se kiya h. buddhi aesi baaten soch hi nahi sakti. so hamesh apne dil ki aawaj ko hi sunti raho, congrats for this beautiful abhivyakti
अलविदा मत कहा करो
किसी के दिल पर क्या गुजरी
ये तुम क्या जानो
तेरे जाने और आने के
अति सुन्दर
वह्ह्ह यार तुस्सी तो छा गये ....."तुम क्या जानो " जी हाँ शब्दों को अच्छा सजाया आपने .....मेरे ब्लॉग पर भी वागत है .......
जय हो मंगलमय हो ....
एक लेहर चल रही थी बातों-बातों में...
मज़ा था पर कुछ अधूरा सा लग रहा था...
शब्दों की पकड़ को अगर सही जगह बैठाया जाए तो संवाद और भाव व्यक्त बखूबी होते है।
निराश मत होइयेगा... ये रचना भी बहुत सुंदर है।
बहुत सुंदर
तेज धूप का सफ़र
लबों पर अल्फाजों का
तबस्सुम खिलाने को
दिल कितना भटकता है
ये तुम क्या जानो
दिलो की ये दूरी मिटाने को
कुछ पल तेरा साथ पाने को
दिल कितना सुबकता है
ये तुम क्या जानो....
...i salute you penning down such a wonderful thoughts, over and over.
bahut hi sundar rachana.kishorda ki yaad aa gayi.
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