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शुक्रवार, 7 अगस्त 2009

देखा है कभी

इस शहर के हर शख्स की
आँख में उबलता आक्रोश
देखा है कभी
अपने वजूद से लड़ते
आदमी का रूप
देखा है कभी
सीने में धधकता
ज्वालामुखी लिए हर शख्स
रोज कैसे मर-मरकर जीता है
देखा है कभी
कब , किस मोड़ पर ये
ज्वालामुखी फट जाए
और किसी नुक्कड़ पर
सीने की भड़ास ,अपनी बेबसी
उतारता आदमी
देखा है कभी
परेशानियों से जूझता
ज़िन्दगी से लड़ता आदमी
देखा है कभी
रोज नए ख्वाब बुनता
और फिर रोज
उन ख्वाबों के टूटने पर
टूटता - बिखरता आदमी
देखा है कभी
जीवन जीने की
जद्दोजहदसे परेशान
कभी हालत से लड़ता
तो कभी ख़ुद से लड़ता आदमी
देखा है कभी

34 टिप्‍पणियां:

adil farsi ने कहा…

kya khoob.. kavita hai

vijay kumar sappatti ने कहा…

amazing poem , rozmarra ki zindagi se do chaar hote halaat ka acha bayaan kiya hai aapne .

regards

vijay
please read my new poem " झील" on www.poemsofvijay.blogspot.com

ओम आर्य ने कहा…

आदमी ऐसा ही होता है ......अच्छे भाव

Arshia Ali ने कहा…

Roj hee dekhte hain.
{ Treasurer-TSALIIM & SBAI }

kshama ने कहा…

हाँ ..वंदनाजी ...देखा है बहुत बार ..हर शहर में अनेकों आदमियों को ..! इसीलिए आपकी रचना का हरेक शब्द सही लगता है ...

Prem Farukhabadi ने कहा…

देखा है कभी
रोज नए ख्वाब बुनता
और फिर रोज
उन ख्वाबों के टूटने पर
टूटता - बिखरता आदमी
देखा है कभी
जीवन जीने की
जद्दोजहदसे परेशान
कभी हालत से लड़ता
तो कभी ख़ुद से लड़ता आदमी
देखा है कभी

aapke bhav sachmuch jindgi ke kafi kareeb hain.dil se badhai!!!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

वन्दना जी।
इस सुन्दर कविता में आपने वाकई सारे जहाँ का दर्द और हकीकत
उडेल कर रख दी है।
जो नही भी देखा था उसे आपकी कविता ने दिखा दिया।
बधाई।

राकेश कुमार ने कहा…

वन्दना जी,

एक सामयिक विषय पर इतनी सुन्दर कविता तुरत फुरत बना डाली आपने, बारूद के ढेर पर बैठे महानगरो की व्यथा को अत्यन्त सुन्दर ढन्ग से चित्रित किया है.


देखा है कभी
अपने वजूद से लड़ते
आदमी का रूप
देखा है कभी
सीने में धधकता
ज्वालामुखी लिए हर शख्स
रोज कैसे मर-मरकर जीता है

सचमुच महानगरो की यही व्यथा है,

देखा है कभी
रोज नए ख्वाब बुनता
और फिर रोज
उन ख्वाबों के टूटने पर
टूटता - बिखरता आदमी


बहुत खूबसूरत रचना वन्दना जी,ईश्वर आपकी प्रतिभा को इसी तरह नये आयाम देते रहे.

सादर
राकेश

Arshia Ali ने कहा…

Kabhee nahee.
{ Treasurer-T & S }

Vinay ने कहा…

really good post

M VERMA ने कहा…

इस शहर के हर शख्स की
आँख में उबलता आक्रोश
देखा है कभी
विखराव के बिखरने पर आक्रोश को खूबसूरती से बयान किया है.
बेहतरीन रचना

vallabh ने कहा…

वंदना जी हर मोड़ पर ऐसा आदमी दिखता है..... बस पहचानने की जरूरत है....
दिल को छूने वाली रचना है.. बधाई...

मोहन वशिष्‍ठ ने कहा…

वाह जी वाह वंदना जी काबिलेतारीफ बहुत ही बेहतरीन रचना है दिल को छू गई

दिगम्बर नासवा ने कहा…

MAANA KI TOOTA HUVA, BIKHRA HUVA HAI AABMI....PAR FIR BHI JEEVAN SE JOOJHTA, HAALAT SE LADTAA HAI AADMI... GAJAB KI ABHIVYAKTI HAI AAPKI....DIL KO HILAATI HAI AAPKI YEH RACHNA....

vikram7 ने कहा…

ati sundar

प्रिया ने कहा…

ek shabd "behtareen"

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

Badhaiyaa

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

बेहद प्रभाव शाली अभिव्यक्ति
आभार एवं बधाइयां

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

आदमी की आदमियत आज सही में ही कहीं बौनी हो गई है.

Akanksha Yadav ने कहा…

Sundar bhav..sarthak jajba...lajwab prastuti.

शब्द-शिखर पर नई प्रस्तुति - "ब्लॉगों की अलबेली दुनिया"

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

har kadam par aisa tootata bikharta aadmi dekha hai hamne...
ham bhi to kai baar toote aur bikhre hain..
bahiut hi sateek abhivyakti aapki..
badhai..

लोकेन्द्र विक्रम सिंह ने कहा…

हाँ देखा तो हूँ इसे लेकिन हर जगह अलग-अलग मोड़ पर लेकिन आपकी कविता ने उन्हें समेट कर इक ही जगह पर दिखा दिया............
बेहतरीन रचना........

Renu Sharma ने कहा…

bahut khoob ,
vanadna ji !!
kafi arse baad aana huaa lekin achchhi rachna padhkar man khush huaa .
renu...

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

har koi khud se hi lad raha hai........wajood ke liye.........
ek laajawaab kavita,.........

readelicious.........

Crazy Codes ने कहा…

roj dekha hai aise aadmi ko... har chauk chaurahon par dikhta hai... apne hi andar dikhta hai...

kavita ke bhaav achhe hai...

Batangad ने कहा…

हर रोज देखते हैं।

नीरज गोस्वामी ने कहा…

वंदना जी बहुत सार्थक रचना...आपकी लेखनी को सलाम...
नीरज

निर्मला कपिला ने कहा…

इस शहर के हर शख्स की
आँख में उबलता आक्रोश
देखा है कभी
वन्दनाजी समाज मे आज के आदमी के लिये इतनी संवेदनायें बहुत बडिया ढंग से चित्रित की हैं बहुत सटीक अभिव्यक्ति है शुभकामनाये

Preeti tailor ने कहा…

इतने संघर्ष के बाद भी कभी अपनी उम्मीद न छोड़ना और झुझते रहना ही इंसान की फितरत है और इसी लिए हम जिन्दा है ....
पोस्ट बहुत पसंद आई ...

~PakKaramu~ ने कहा…

Pak Karamu reading your blog

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

har mod par khada hai ye aadmi. mera bharat mahaan.

Arkjesh ने कहा…

aaha bahut badhiyaa header hai !

yatharthapark samwedansheel kavitayen

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामना और ढेरो बधाई .

दर्पण साह ने कहा…

dekha hai kabhi....


"कभी हालत से लड़ता
तो कभी ख़ुद से लड़ता आदमी
देखा है कभी"

dekha nahi to dekho abhi.

vah vandan ji wah !!

aapmein kavita kehne ke saare gun develop ho gaye hain...