क्या मैं इंसान हूँ?
क्या मुझमें
संवेदनाएं हैं ?
जब किसी का दर्द
मुझे विचलित नही करता
किसी के दुःख से
मैं द्रवीभूत नही होता
किसी की खुशी से
मैं खुश नही होता
किसी के लिए भी
मेरे दिल में
अहसास नही होते
मैं अपनी ही धुन में
बेखबर ,
अपने सुख के लिए ही
जीना चाहता हूँ
क्या मैं इंसान हूँ?
ना अपना देखता हूँ
ना पराये को
जो हूँ बस मैं हूँ
मैं किसी भी
हादसे को देखकर भी
अनदेखा कर देता हूँ
मगर अपने साथ हुए
हर हादसे के प्रति
मैं दुखित हो जाता हूँ
कभी बोध नही कर पाता
दुख तो सबका बराबर है
क्या मैं इंसान हूँ?
एक धमाके से
घरों को बरबाद करता हूँ
घरों के सूने आँगन से
सिसकती आहों से
मुझे कोई सरोकार नही
बस मैं जो चाहता हूँ
वो पाना चाहता हूँ
फिर चाहे किसी का
आँगन सूना हो
या मांग सूनी हो
कोई अनाथ हो या
किसी के सर से ही
बाप का साया उठे
मुझे तो सिर्फ़ अपना
आँगन सजाना है
अपने दर्द से निजात पाना है
क्या मैं इंसान हूँ?
संवेदनहीन ,संवेदनाशून्य,
निर्मम ,निष्ठुर
क्या मैं इंसान हूँ ?
9 टिप्पणियां:
ek achchha saval aaj ke insaan ke liye...
आज के इंसान के चरित्र पर करारा तमाचा मारा है आपने इस रचना के माध्यम से...जितनी प्रशंशा की जाये कम है...एक एक शब्द हथोडे की तरह चोट करता है..वाह.
नीरज
anupam,sarahniya rachna, main is samband men neeraj ji se lafz-b-lafz sahmat hun.
आदमी ही चोर है और आदमी मुँह-जोर है ।
आदमी पर आदमी का, हाय! कितना जोर है।।
आदमी आबाद था, अब आदमी बरबाद है।
आदमी के देश में, अब आदमी नाशाद है।।
आदमी की भीड़ में, खोया हुआ है आदमी।
आदमी की नीड़ में, सोया हुआ है आदमी।।
आदमी घायल हुआ है, आदमी की मार से।
आदमी का अब जनाजा, जा रहा संसार से।।
ati sundar
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चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें
सशक्त रचना.
कुछ सोचने को विवश करती हुई रचना
बधाई
एक बेहतरीन सवेंदनशील रचना। और आज का सच भी। सच दिल खुश हो गया पढ़कर। बस ऐसे ही लिखती रहे अपने भाव।
KYA MAIN INSAAN HOO SOCHNE KO MAJBOOR KARTI EK RACHNA .KISI NE SACH HI KAHA HEY PARAYA DARD JO APNAYE USE INSAAN KAHTEY HEY . ASHOK KHATRI BAYANA RAJASTHAN
KYA MAIN INSAAN HOO SOCHNE KO MAJBOOR KARTI EK RACHNA .KISI NE SACH HI KAHA HEY PARAYA DARD JO APNAYE USE INSAAN KAHTEY HEY . ASHOK KHATRI BAYANA RAJASTHAN
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