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शुक्रवार, 13 मार्च 2009

टीस

खुशियाँ भी कभी
खुशी से न मिलीं
जब भी मिली
कोई खुशी
अपने साथ
लाखों ग़मों की
सौगात लेकर मिली
दामन था छोटा
किस किस को सँभालते
जो था ज्यादा
उससे ही दामन भर गया
और खुशी जा जाने
कब फिसल गई
हर खुशी ऐसे ही
फिसल जाती है
दामन में न समाती है
ये तो वो अमृत की बूँद है
जो ज़हर में पड़ जाती है
फिर भी असर न दिखाती है

13 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

झोली मे भर दो खुशियों को,
गम का बादल छँट जायें।
सुख का सूरज उगे गगन में,
कुहरा सारा से हट जाये।।

सागर-मन्थन में ही मेरी,
शेष जिन्दगी कट ना जाये।
दामन को इतना फैला दो,
जिसमें अमृत-घट आ जाये।

गरल समेटो हे शिव-शंकर,
सुधा नीर बरसा दो।
यही वन्दना है मेरी,
जीवन फूलों सा सरसा दो।।

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत खूब

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया.

सुशील छौक्कर ने कहा…

बहुत उम्दा लिखा हैं।

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

bahut khoob sunder rachna

Dr. Tripat Mehta ने कहा…

bahut sunder abhivyakti....

Dr. Tripat Mehta ने कहा…

bahut sunder vichaaro ki abhivyakti...

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

sunder rachna, vandana ji, badhai.

समयचक्र ने कहा…

bahut badhiya rachana vandana ji . likhati rahiye . meri dhero shubhakamana .

Prem Farukhabadi ने कहा…

khushi mujhe kabhi khushi se na mili.
jab bhi mili is dil ki kali na khili.
gairon ki khushi ko samjhi apni khushi
meri khushi gairon se jhele na jhili.

Vandanaji,
kya kahen aapki rachna dil ko chhoo nahin payi. aur thoda doob ke rachen rachna.badhaai agli rachna mein doonga.

Preeti tailor ने कहा…

suchmuch bahut kam shabd me sagar sama liya hai

BrijmohanShrivastava ने कहा…

सही है ,हम सोचते हैं खुशी आई ,मगर उसी रस्ते न चाहते हुए भी गम प्रविष्ट हो जाते है ,लगता है खुशी न आती तो ही अच्छा था /यह बात भी सत्य है कि जितना जिसका दमन होता है उतनी ही सौगात मिलती है मगर जब दामन गमों से भरा हो तो खुशी उसमे समां भी कैसे सकती है /

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

वंदना जी
आपकी " टीस " पढ़ी , मैंने भी देखा है कि एक तो खुशियाँ नहीं मिलतीं, और बमुश्किल मिली भी तो उसका सुख समाप्त सा हो चुका होता है.
काश सबके जीवन में खुशियों का ही डेरा हो.
- विजय