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शनिवार, 1 जुलाई 2023

चिंतातुर कवि बैठे हैं

 चिंतातुर कवि बैठे हैं

सोचते हुए
ये कहाँ आ गए हम
अब जाएंगे कहाँ
कि आज सँवरा नहीं
फिर कल कैसे संवरेगा
किस चिड़िया के हाथों भेजें संदेसा
जो गगन हो जाये थोड़ा और नीला
कि बाधित न हो उड़ान पंछियों की
कोयल की कुहू कुहू
पपीहे की पीहू पीहू से
होती थी जब सुबहें
वो सुबह कब आएगी
कब सूरज शरमा कर
बादलों के आगोश में सिमट जाएगा
हर मन केवल एक ही फसाना गायेगा
प्रतीक्षा की पाँखें कुम्हला न जाएं
कैसे इस दौर से मुक्ति पाएं
जहाँ राम और रहीम बेबसी की कैद में
एक दूजे को केवल देखने को विवश हैं
कैसे बोलें, प्रश्न मुँह बाए खड़ा है
कोई होता सुनने वाला
तो सुनाते हाल-ए-दिल
जब बदला जाता है इतिहास
तब समय की मूक आवाज़ के क्रंदन से ठहर जाती है पृथ्वी अपनी धुरी पर
और हो जाते हैं कवि चिंतित
कौन सी लिखें कविता
जो हो एक नया सवेरा...



Yatish Kumar जी की वाल पर ये फोटो देखी। फ़ोटो देख पसंद की और आगे बढ़ने लगी किंतु उनके भावों ने जकड़ लिया और इन भावों का जन्म हो गया - गगन गिल जी व् यतीश कुमार जी

2 टिप्‍पणियां:

Onkar ने कहा…

अच्छी रचना

somali ने कहा…

सुंदर