इंसान
तुम्हारी फुफकार से भयभीत हैं
आज सर्प भी
ढूंढ रहे हैं अपने बिल
क्योंकि जान गए हैं
उनके काटने से बचा भी जा सकता है
मगर तुम्हारे काटे कि काट के अभी नहीं बने हैं कोई मन्त्र
नहीं बनी है कोई वैक्सीन
हे विषधर
तुम्हारे गरल से सुलग रही है धरा
तो ये नाम आज से तुम्हारा हुआ
सर्पों ने त्याग दिया न केवल नाम
अपितु छोड़ दी है केंचुली भी
कि तुम ही उत्तराधिकारी हो
उनके हर कृत्य के
वंशज बनने हेतु स्वीकारो पद
सर्पों ने ग्रहण कर लिया है संन्यास
10 टिप्पणियां:
सही कहा.सुन्दर रचना
बहुत सही और सटीक।
मर्माघाती ... अत्यंत प्रभावी ।
सही कहा... सुन्दर रचना...
सुन्दर रचना
सही कहा !
विषधर ही होता जा रहा है मानव।
सुंदर सृजन।
बहुत बढ़िया।
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