कौन हो तुम?
और क्यों हो तुम ?
किसे जरूरत तुम्हारी ?
और क्यों हो तुम ?
किसे जरूरत तुम्हारी ?
न किसी बहीखाते में दर्ज हो
न किसी आकलन में
न उन्हें परवाह तुम्हारी
न किसी आकलन में
न उन्हें परवाह तुम्हारी
कीड़े मकौडों से
मरने के लिए ही तो पैदा होते हो
मौत से भागते फिरते हो
लेकिन कहाँ बच पाते हो?
मरने के लिए ही तो पैदा होते हो
मौत से भागते फिरते हो
लेकिन कहाँ बच पाते हो?
सरकार के लिए वोट बैंक भर हो
मान लो और जान लो
तुम मरते रहोगे
वो बस आंकड़े दर्ज करते रहेंगे
और हो जायेगी इतिश्री
मान लो और जान लो
तुम मरते रहोगे
वो बस आंकड़े दर्ज करते रहेंगे
और हो जायेगी इतिश्री
तो क्या हुआ
घर पर माँ की आँखें इंतज़ार में पथरा जायेंगी
तो क्या हुआ
पत्नी की मांग सूनी पगडण्डी सी नज़र आएगी
तो क्या हुआ
बच्चों की किलकारियां वक्त से पहले दफ़न हो जायेंगी
घर पर माँ की आँखें इंतज़ार में पथरा जायेंगी
तो क्या हुआ
पत्नी की मांग सूनी पगडण्डी सी नज़र आएगी
तो क्या हुआ
बच्चों की किलकारियां वक्त से पहले दफ़न हो जायेंगी
यहाँ सुविधाओं की अट्टालिकाएं महज कोरा भ्रम भर हैं
विदेशी भारतीयों को मिला करती हैं वी आई पी सुविधाएं
उड़न खटोलों पर है उनका ही एकाधिकार
तुम्हारा पसीना हो या खून
बस बहने के लिए ही बना है
बताओ तो
क्या तुम्हें नमन कर देने भर से हो जायेंगे हम उऋण?
विदेशी भारतीयों को मिला करती हैं वी आई पी सुविधाएं
उड़न खटोलों पर है उनका ही एकाधिकार
तुम्हारा पसीना हो या खून
बस बहने के लिए ही बना है
बताओ तो
क्या तुम्हें नमन कर देने भर से हो जायेंगे हम उऋण?
आज जी भर कर कोसने को मन कर रहा है सिस्टम को, सरकार को, असंवेदनशीलता को........मजदूर रोज मर रहे हैं, मीडिया चीख रहा है, जनता चीख रही है, सुनवाई के नाम पर कानों में तेल डाले बैठे हैं अगली घटना के इंतज़ार तक .......क्या एक बार सभी मजदूरों को आश्वासन नहीं दिया जा सकता था? क्या पता नहीं वो कितना पढ़ा लिखा है और कितना अनपढ़? कैसे वो ट्रेन ऑनलाइन बुक कर सकता है? कितने विवश हैं आज हम मौत का नंगा नाच देखने को
8 टिप्पणियां:
वाकई दुखद स्थिति है।
लाकडाउन करने में यदि 4 घंटे का नहीं बल्कि 4 दिन का समय दिया होता तो यह हालत नहीं होती।
सच को आइना दिखाती रचना ।
जय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
17/05/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
जाने क्यूँ सदियों से गरीबों की नियति में यही लिखा है और किसी को भी सच में ही इनकी कोई फ़िक्र नहीं होती | न कुदरत को न सरकार को | बहुत ही दर्दनाक स्थिति है
ओह्ह्ह्ह ---- विवशता ! लाचारी !
दिल भर आ रहा है !
विचारणीय
Bhot hi sundar kavita
www.khetikare.com
बहुत भावपूर्ण लिखा है. मजदूरों की लाचारी बेबस कर रही है. जाने क्यों सरकार इनके प्रति इतनी असंवेदनशील है.
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