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शनिवार, 16 मई 2020

कितने विवश हैं

कौन हो तुम?
और क्यों हो तुम ?
किसे जरूरत तुम्हारी ?

न किसी बहीखाते में दर्ज हो
न किसी आकलन में
न उन्हें परवाह तुम्हारी


कीड़े मकौडों से
मरने के लिए ही तो पैदा होते हो
मौत से भागते फिरते हो
लेकिन कहाँ बच पाते हो?

सरकार के लिए वोट बैंक भर हो
मान लो और जान लो
तुम मरते रहोगे
वो बस आंकड़े दर्ज करते रहेंगे
और हो जायेगी इतिश्री

तो क्या हुआ
घर पर माँ की आँखें इंतज़ार में पथरा जायेंगी
तो क्या हुआ
पत्नी की मांग सूनी पगडण्डी सी नज़र आएगी
तो क्या हुआ
बच्चों की किलकारियां वक्त से पहले दफ़न हो जायेंगी

यहाँ सुविधाओं की अट्टालिकाएं महज कोरा भ्रम भर हैं
विदेशी भारतीयों को मिला करती हैं वी आई पी सुविधाएं
उड़न खटोलों पर है उनका ही एकाधिकार
तुम्हारा पसीना हो या खून
बस बहने के लिए ही बना है
बताओ तो
क्या तुम्हें नमन कर देने भर से हो जायेंगे हम उऋण?


आज जी भर कर कोसने को मन कर रहा है सिस्टम को, सरकार को, असंवेदनशीलता को........मजदूर रोज मर रहे हैं, मीडिया चीख रहा है, जनता चीख रही है, सुनवाई के नाम पर कानों में तेल डाले बैठे हैं अगली घटना के इंतज़ार तक .......क्या एक बार सभी मजदूरों को आश्वासन नहीं दिया जा सकता था? क्या पता नहीं वो कितना पढ़ा लिखा है और कितना अनपढ़? कैसे वो ट्रेन ऑनलाइन बुक कर सकता है? कितने विवश हैं आज हम मौत का नंगा नाच देखने को  

8 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

वाकई दुखद स्थिति है।
लाकडाउन करने में यदि 4 घंटे का नहीं बल्कि 4 दिन का समय दिया होता तो यह हालत नहीं होती।

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

सच को आइना दिखाती रचना ।

kuldeep thakur ने कहा…


जय मां हाटेशवरी.......

आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
17/05/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......

अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद

अजय कुमार झा ने कहा…

जाने क्यूँ सदियों से गरीबों की नियति में यही लिखा है और किसी को भी सच में ही इनकी कोई फ़िक्र नहीं होती | न कुदरत को न सरकार को | बहुत ही दर्दनाक स्थिति है

संगीता पुरी ने कहा…

ओह्ह्ह्ह ---- विवशता ! लाचारी !
दिल भर आ रहा है !

Onkar ने कहा…

विचारणीय

Admin ने कहा…

Bhot hi sundar kavita
www.khetikare.com

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बहुत भावपूर्ण लिखा है. मजदूरों की लाचारी बेबस कर रही है. जाने क्यों सरकार इनके प्रति इतनी असंवेदनशील है.