धर्म और जाति दो हथियार
वो चलाएंगे बार बार
उनका सिक्का यहाँ चलेगा
ऐसे ही उनका शासन बढेगा
क्यों मचाते तुम चीख पुकार
करो अपना कर्म बारम्बार
ऊँगली से उन्हें जिताते रहो
खुद को मझधार में डुबाते रहो
देश न आगे बढे, चलेगा
मगर उनका दबदबा बना रहेगा
कत्लोगारत उनकी पहचान
बस उनसे ही है हिन्दुस्तान
तुम कौन हो क्या हो नहीं जानते
हुजूर सत्ताधारी तुम्हें नहीं पहचानते
बस इक दिन ही तुम्हारा जोर चलेगा
फिर तो बेटा तू ही कोल्हू में पिसेगा
बस इतना ही है आचार विचार
सोच समझ तू कर व्यवहार
1 टिप्पणी:
प्रशंसनीय
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