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मंगलवार, 19 नवंबर 2019

ऐसा तो न था कभी देश मेरा....

क्या बना रहे हो क्या बन रहे हैं
क्या दिखा रहे हो क्या दिख रहे हैं
तानाशाहों के राज में समीकरण बदल रहे हैं

कभी धर्म कभी जाति
कभी शिक्षा तो कभी मंदिर मस्जिद
के नाम पर
हंगामों आंदोलनों के शोर
सहमा रहे हैं भविष्य

तो क्या
आने वाली पीढ़ी सीख रही है
अपनी रीढ़ कैसे है सीधी करना?

रोते हुए कहता है अंतर्मन मेरा
ऐसा तो न था कभी देश मेरा....

2 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

सच सब्र कहाँ अब लोगों में, वह देशप्रेम भी अब कहाँ, दिखावा बहुत ज्यादा है आजकल
बहुत सही

बेनामी ने कहा…

सार्थक चिंतन