दिल माँ का किसी को समझ आता नहीं
फूल कौन सा है जो अंत में मुरझाता नहीं
वो देगी बद्दुआ तो भी दुआ बन जायेगी
इतनी सी बात कोई उसे समझाता नहीं
फूल कौन सा है जो अंत में मुरझाता नहीं
वो देगी बद्दुआ तो भी दुआ बन जायेगी
इतनी सी बात कोई उसे समझाता नहीं
तेरे गुस्से पर भी उसे गुस्सा आता नहीं
मगर तेरा बचपना है कि जाता नहीं
तेरे दर्द से पिघलती है जो दिन-ब-दिन
उसकी हूक का मर्म तुझे समझ आता नहीं
मगर तेरा बचपना है कि जाता नहीं
तेरे दर्द से पिघलती है जो दिन-ब-दिन
उसकी हूक का मर्म तुझे समझ आता नहीं
तू लेने हाल माँ का कभी आता नहीं
उसके क़दमों तले जन्नत है जान पाता नहीं
वो आईना है तेरे आने वाले कल का
अभिमानी मगर कल अपना संवार पाता नहीं
उसके क़दमों तले जन्नत है जान पाता नहीं
वो आईना है तेरे आने वाले कल का
अभिमानी मगर कल अपना संवार पाता नहीं
6 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 08 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बहुत बहुत ही भावुक रचना।
"
माँ को हर बार समझने जाता हूँ
पर उनकी ममता से परे
मैं कभी जा ही नहीं पाता हूँ"
बहुत सुंदर रचना
बहुत सुंदर हृदय स्पर्शी रचना मन को आडोलित करती ।
वाह।
अभिमानी मगर कल अपना संवार पाता नहीं
nice post
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