न जाने किसके अख्तियार में हैं
मुद्दा ये है, कि हम प्यार में हैं
वो कह दें इक बार जो हमको अपना
हम समझेंगे उनके दिल-ओ-जान में हैं
अब पराई अमानत है न परायेपन का भरम
कमाई है दिल की दौलत बस इस गुमान में हैं
नज़र तुम्हारी उठे या हमारी गिरे
मुद्दा अब अंखियों के ईमान में है
नज़र भर देखने की मोहलत किसे
बंदगी तो अब रुख के हर आयाम में है
2 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (28-09-2018) को "आओ पेड़ लगायें हम" (चर्चा अंक-3108) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब
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