दर्द की नदी में
छप छप करते नंगे पाँव
आओ
तुम और मैं खेलें
एक बार फिर इश्क की होली
उदासियों के चेहरे पर
बनाते हुए आड़ी तिरछी रेखाएं
आओ
तुम और मैं लायें
एक बार फिर इश्क का मौसम
सूनी आँखों के संक्रमण काल में
डालकर बेखुदी की ड्राप
आओ
तुम और मैं करें
एक बार फिर इश्क का मोतियाबिंद दूर
रकीब के दरवाज़े पर
सजदा करते हुए
आओ
तुम और मैं बनाएं
एक बार फिर इश्क को खुदा
प्यास के जंगल में
खोदकर आँसुओं का कुआं
आओ
तुम और मैं बुझायें
एक बार फिर इश्क की अबूझ प्यास
यहाँ सुलग रही हैं भट्टियाँ सदियों से
इश्क का घी है कि खत्म ही नहीं होता
सुकून के लम्हे इश्क की तौहीन है रब्बा
क्योंकि
बेपरवाही इश्क की लाचारी है आदत नहीं
फासले हों तो तय करे कोई ...
2 टिप्पणियां:
सुन्दर प्रस्तुति
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २५ जून २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति मेरा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
निमंत्रण
विशेष : 'सोमवार' २५ जून २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के लेखक परिचय श्रृंखला में आपका परिचय आदरणीय 'प्रबोध' कुमार गोविल जी से करवाने जा रहा है। जिसमें ३३४ ब्लॉगों से दस श्रेष्ठ रचनाएं भी शामिल हैं। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
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