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रविवार, 20 मई 2018

आओ फासलों को गुनगुनाएं

मैं एक चुका हुआ ख्याल हूँ
तू क्यूँ उम्मीद की गाँठ बाँधता है
मुसाफिर चलता चल जहाँ ले जाएँ कदम
कि सूखे हुए दरख़्त हरे नहीं हुआ करते
नदी वापस नहीं मुड़ा करती
और रूहें आलिंगनबद्ध नहीं हुआ करतीं

इक सोये हुए शहर के आखिरी मकान पर दस्तक
नहीं तोड़ा करती शताब्दियों की नींद

आओ फासलों को गुनगुनाएं
इश्क न जन्मों का मोहताज है न शरीर का ...




12 टिप्‍पणियां:

'एकलव्य' ने कहा…

आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २१ मई २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

निमंत्रण

विशेष : 'सोमवार' २१ मई २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के लेखक परिचय श्रृंखला में आपका परिचय आदरणीय गोपेश मोहन जैसवाल जी से करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

'एकलव्य' ने कहा…

आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २१ मई २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

निमंत्रण

विशेष : 'सोमवार' २१ मई २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के लेखक परिचय श्रृंखला में आपका परिचय आदरणीय गोपेश मोहन जैसवाल जी से करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

Mohinder56 ने कहा…

बहुत बढिया

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (22-05-2017) को "आम और लीची का उदगम" (चर्चा अंक-2978) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

kuldeep thakur ने कहा…

जय मां हाटेशवरी...
अनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 22/05/2018 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

Sudha Devrani ने कहा…

वाह!!!!
क्या बात है...

Rohitas Ghorela ने कहा…

सही कहा है
इश्क किसी का भी मोहताज़ नहीं।

खूबसूरत रचना

रेणु ने कहा…

अत्यंत प्रशंसनीय रचना !!!! ये रूहानी प्रेम का अद्भुत गान है | देह से दूर प्रेम की अनुभूतियों को लाजवाब लफ्ज मिले हैं | हार्दिक शुभकामनाये आदरणीय वन्दना जी |मन को छू निकल गये आपके शब्द |

रेणु ने कहा…

अत्यंत प्रशंसनीय रचना !!!! ये रूहानी प्रेम का अद्भुत गान है | देह से दूर प्रेम की अनुभूतियों को लाजवाब लफ्ज मिले हैं | हार्दिक शुभकामनाये आदरणीय वन्दना जी |मन को छू निकल गये आपके शब्द |

रेणु ने कहा…

अत्यंत प्रशंसनीय रचना !!!! ये रूहानी प्रेम का अद्भुत गान है | देह से दूर प्रेम की अनुभूतियों को लाजवाब लफ्ज मिले हैं | हार्दिक शुभकामनाये आदरणीय वन्दना जी |मन को छू निकल गये आपके शब्द |

रेणु ने कहा…

अत्यंत प्रशंसनीय रचना !!!! ये रूहानी प्रेम का अद्भुत गान है | देह से दूर प्रेम की अनुभूतियों को लाजवाब लफ्ज मिले हैं | हार्दिक शुभकामनाये आदरणीय वन्दना जी |मन को छू निकल गये आपके शब्द |

Meena sharma ने कहा…

मन को गहराई तक छूते हुए शब्द। अद्भुत अभिव्यक्ति।