छंदबद्ध कविता
गेयता रस से ओत प्रोत
जैसे कोई सुहागिन
सोलह श्रृंगार युक्त
और दूसरी तरफ
अतुकांत छन्दहीन कविता
जैसे कोई विधवा श्रृंगार विहीन
मगर क्या दोनों के
सौष्ठव में कोई अंतर दीखता है
गेयता हो या नहीं
श्रृंगार युक्त हो या श्रृंगार विहीन
आत्मा तो दोनों में ही बसती है ना
फिर चाहे सुहागिन हो
या वैधव्य की ओढ़ी चादर
कैसे कह दें
आत्मिक सौंदर्य
कला सौष्ठव
वैधव्य में छुप गया है
वैधव्य हो या अतुकांत कविता
भाव सौंदर्य - रूप सौन्दर्य
तो दोनों में ही समाहित होता है
ये तो सिर्फ देखने वाले का
दृष्टिकोण होता है
कृत्रिम श्रृंगार से बेहतर तो
आंतरिक श्रृंगार होता है
जो विधवा के मुख पर
उसकी आँख में
उसकी मुस्कराहट में
दर्पित होता है
तो फिर कविता का सौंदर्य
चाहे श्रृंगारित हो या अश्रृंगारित
अपने भाव सौंदर्य के बल पर
हर प्रतिमान पर
हर कसौटी पर
खरा उतारकर
स्वयं को स्थापित करता है
यूं ही नहीं वैधव्य में भी आकर्षण होता है ..........
5 टिप्पणियां:
अद्भुत प्रतीकों का प्रयोग - सटीक अभिव्यक्ति
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 15 जून 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
वंदना जी अतुकांत कविता विधवा नहीं होती , हा ये सीधी सादी सपाट जरूर होती है जिसमे कोई भी डेकोरेशन नहीं होता जैसे पीज़ा मे टोप्पिंग्स । वंदना जी आपने तो इस विधा को ही नकार दिया , भले ही इसमे आकर्षण दिखे। अतुकांत कविता सीधी संवाद करती है हृदय की अंतरध्वनि से , और बाहरी भावनाओं की संवेदनशीलटा से भी। आपकी बहुत सी कवितायें , तुरंत निकली प्रतीत होती हैं और प्रहार करती है ... विधवा नहीं होती कविता। और अगर होती भी हो तो उसे पुनर्स्थापना का अधिकार तो है ही....
@महेश कुश्वंश जी जो आप कह रहे हैं वो ही मैंने कहा है लेकिन शायद आप तक पहुंचा नहीं ... अतुकांत को जिस तरह सिरे से ख़ारिज किया जाता है साहित्य में ये उसके लिए कहा है जिस तरह समाज में एक विधवा को इसी नज़र से देखा जाता है जैसे अब उसकी उपयोगिता ही ख़त्म हो गयी हो इसलिए विधवा सिर्फ प्रतीक भर है ....और न ही कविता को विधवा कहा है . ये उन लोगों की सोच के प्रति है जो ऐसा सोचते हैं .
Anupam shabdawali madhurya se bhari...
Amulya kriti.
Bhawadiya.
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