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रविवार, 21 फ़रवरी 2016

संवेदनहीन होना


मैं नहीं चढ़ाती अब किसी भी दरगाह पर चादर
फिर चाहे उसमे किसी फ़क़ीर का अस्तित्व हो
या आरक्षण का या अफज़ल की फांसी के विरोध का
या फिर हो उसमे रोहित वेमुला
या उस जैसे और सब
जिनके नाम पर होती हैं अब मेरे देश में क्रांतियाँ

भुखमरी बेजारी महंगाई
किसान द्वारा आत्महत्या
रोज एक जैसी ख़बरों ने
इतना संवेदनाओं के चूल्हे को लीपा
कि अब
जड़ हो गया है एक पूरा साम्राज्य

ये जानते हुए भी
कि आजकल नहीं बदला करती तस्वीर किसी भी क्रांति से
बेवजह भटकाए जाते हैं मुद्दे
मैंने दे दी है अंतिम आहुति
राष्ट्र के हवन में
अपनी हहराती भावनाओं की

बस यही है कारण
मर चुकी हैं संवेदनाएं मुझमे .........

4 टिप्‍पणियां:

विरम सिंह ने कहा…


आपकी लिखी रचना पांच लिंकों का आनन्द में सोमवार 22 फरवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद

Onkar ने कहा…

सटीक रचना

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (22-02-2016) को "जिन खोजा तीन पाइया" (चर्चा अंक-2260) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

आजकल के हालात पर सटीक लिखा है दी ..पर कहाँ हो पातें हैं हम संवेदनहीन ...दर्द तो होता है न ..ये सब देखकर